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10 जुलाई 2023 · JUL 10 , 2023

पुस्तक समीक्षाः तथ्य, सत्व और नायकत्व

वाणी से प्रकाशित इन तीनों किताबों के विषय भले ही अलग हों, पर इनके बीच एक रागात्मक रिश्ता जैसा है
भारतीय परंपरा की खोज करती किताबें

लगभग चार दशक तक हिंदी पत्रकारिता में सक्रिय रहे हरिवंश अब राजनैतिक नेता के रूप में जाने जाते हैं। वर्तमान में वे राज्यसभा के उपसभापति हैं, परंतु अब भी बड़े दायरे में उनकी पहचान निरंतर लिखने, खूब पढ़ने वाले संपादक और पत्रकार के रूप में बनी हुई है। ‘धर्मयुग’, ‘रविवार’ जैसी पत्रिका में काम करने के बाद लगभग तीन दशक तक उन्होंने ‘प्रभात खबर’ अखबार का संपादकीय नेतृत्व किया- अविभाजित बिहार के रांची शहर से निकलने वाला एक मृतप्राय अखबार, जो बाद में पूर्वी भारत की पहचान और हिंदी की क्षेत्रीय पत्रकारिता में एक मॉडल बना। एक मृतप्राय अखबार को मॉडल अखबार बनाने में हरिवंश के लेखन की भूमिका महत्वपूर्ण रही। वह नियमित रूप से समकालीन, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक विषयों पर लिखने के साथ ही देश-दुनिया, ज्ञान-विज्ञान-तकनीक, किताबों-लेखकों-व्यक्तित्वों, धर्म-अध्यात्म आदि विषयों पर लिखते थे। इस कड़ी और क्रम में रिपोर्ताज, यात्रा-वृत्तान्त, स्मरण आलेख आदि शामिल रहे।

विदित हो कि पत्रकार के रूप में लिखते हुए उनके लेखन का दायरा पत्रकारीय था, परंतु विषय के महत्व और लेखकीय शिल्प की दृष्टि से अनेक आलेख ऐसे हुए जो पत्रकारिता की स्थापित परिभाषा ‘जल्दबाजी में लिखा गया साहित्य’ के दायरे से निकलकर स्थायी साहित्य का रूप लेते गए। हरिवंश के उन आलेखों को संकलित कर अब तक करीब दर्जन भर किताबें आ चुकी हैं। पूर्व में प्रकाशित आलेखों के संकलन से इतर भी स्वतंत्र रूप से लिखित किताबें प्रकाशित हुईं। 2019 की जुलाई में कोरोना का दौर शुरू होने से पहले अंग्रेजी में उनकी एक किताब प्रकाशित हुई। किताब का नाम था, ‘चंद्रशेखर- द लास्ट आइकन ऑफ आइडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स।’ देश के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की इस जीवनी का लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था।

इसी क्रम में हरिवंश की तीन नई किताबें प्रकाशित हुई हैं- ‘सृष्टि का मुकुट: कैलास मानसरोवर’, ‘पथ के प्रकाश पुंज’ और ‘कलश।’ उक्त नामों से एक सीमा तक यह साफ होता है कि एक राजनेता द्वारा लिखी होकर भी ये किताबें राजनीति से इतर विषयों की हैं। इतना ही नहीं, वाणी प्रकाशन से प्रकाशित इन तीनों किताबों के विषय भले ही अलग हों, परंतु इन तीनों के बीच एक रागात्मक रिश्ता जैसा है।

पहली किताब कैलास यात्रा की है। ‘सृष्टि का मुकुट: कैलास मानसरोवर’ एक यात्रा वृत्तान्त है। किताब के लेखक ने 2011 में कैलास की दुरूह यात्रा की थी। दुरूह इस अर्थ में कि तब कैलास की यात्रा के लिए इतने साधन-संसाधन विकसित नहीं हुए थे। तब कैलास यात्रा को दुनिया की सबसे मुश्किल धार्मिक यात्राओं में से एक माना जाता था। वैसे कैलास यात्रा पर, इस किताब से पहले, हिंदी एवं अंग्रेजी सहित भारत की अन्य भाषाओं में नामी साहित्यकारों, बड़े-बड़े विद्वानों, चर्चित घुमक्कड़ों ने कई किताबें लिखी हैं, परंतु हरिवंश ने कैलास यात्रा को एक नए ढंग से लिखने की कोशिश की है। नयापन इस अर्थ में कि यह किताब कई विधाओं के कोलाज की तरह है। इसमें पत्रकारीय दृष्टि से रोजनामचा के रूप में हर दिन का ब्यौरा है, रिपोर्ताज है। किताब में सृष्टि, प्रकृति और ईश्वर के बीच के रिश्ते के साथ-साथ अपने स्तर से उन अनुभूतियों और अनुभवों का बयान-बखान लेखक के आध्यात्मिक रुझान का स्पष्ट रेखांकन करता है। इस किताब में कैलास यात्रा पर लिखी गयी प्राय: सभी किताबों से उद्धरण है। साथ ही अनेक अनुभवों और अनुभूतियों का एक-दूसरे से मिलान और उनका सविस्तार वर्णन लेखक के गहन अध्ययन का अभिसूचक है।

इसी क्रम में दूसरी किताब ‘पथ के प्रकाश पुंज’ है। यह विविध क्षेत्रों और विधाओं से संबंध रखनेवाले देश-दुनिया के अनूठे नायकों का संस्मरण और रेखाचित्र का कोलाज है। वस्तुतः यह अपने समय में धारा बदलकर अपने कर्मों से समाज को आलोकित- प्रकाशित करने वाले कुछ चर्चित-अचर्चित लोगों को समर्पित है। इनमें स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, राममनोहर लोहिया, लालबहादुर शास्‍त्री, बाबा आमटे, जॉर्ज वाशिंगटन, चे ग्वेरा, पुश्किन, क्यूरी, स्टीव जॉब्स, रूसी एम लाला, शंकर दयाल जी, एस के चांद, डॉ. के के सिन्हा, आर के तलवार, शैलेंद्र जैसे नाम हैं- वैसे नाम जिनका लेखक हरिवंश के मानस पर असर है। लेखक ने स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी जैसे नायकों पर तो विस्तार से लिखा ही है, साथ ही रेडियम की खोज करने वाली मैडम क्यूरी जैसी विलक्षण वैज्ञानिक पर भी आलेख है। इस किताब में अनेक नायक ऐसे हैं जिनके बारे में हरिवंश पढ़कर-जानकर प्रभावित हुए लगते हैं। तभी तो उन्होंने अनेक नायकों की मूल भूमि तक जाकर अनुभूति लेने की कोशिश की। और कई ऐसे भी नायक हैं जिनसे हरिवंश का स्वयं का गहरा संबंध रहा। बाबा आमटे के साथ हरिवंश उनके आश्रम में रहे। यात्रा में भी साथ रहे। एस के चांद, शंकर दयाल सिंह, शैलेंद्र आदि वैसे व्यक्तित्व हैं जिनसे हरिवंश का निजी संबंध रहा। इस पुस्तक में उन लोगों का रेखाचित्र है जिन्होंने अलग-अलग तरीके से लेखक के पथ को प्रकाशित किया, उन्हें प्रेरणा दी।

तीसरी किताब है ‘कलश।’ यह भारत की आध्यात्मिक परंपरा पर आधारित पुस्तक है। भारतीय आध्यात्मिक परंपरा के अनूठे, बिरले, दुर्लभ आध्यात्मिक संतों, नायकों, गुरुओं के संग संस्मरण-साक्षात्कार की किताब है। वास्तव में, भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में एक सवाल रहा है, ‘मैं कौन हूं।’ आध्यात्मिकता इसकी खोज से शुरू होकर अमरतत्व तक पहुंचती है। ‘मैं कौन हूं’ प्रश्न का उत्तर तलाशने से लेकर ‘अमरत्व’ के अधिष्ठान के बीच मनुष्य अनेक यात्राओं से गुजरता है। वह अनेक संतों, दिव्य पुरुषों, ज्ञानियों से मिलता है, इस विषय से संबंधित साहित्य पढ़ता है। अध्यात्म में गहरी रुचि रखने वाले लेखक हरिवंश भी इस पुस्तक के माध्यम से आध्यात्मिक पंरपरा के मूल प्रश्नों के साथ ऐसी ही यात्रा में रहते हैं। वह स्वामी प्रभुपाद, पॉल ब्रंटन जैसे लोगों की चर्चा से होते हुए स्वामी सत्यानंद, भाईश्री, स्वामी एम, स्वामी राम जैसे संतों तक पहुंचते हैं। इन सवालों के साथ ही मौत की प्रतीक्षा करती लड़की के प्रसंग से रू-ब-रू होते हैं। महात्मा गांधी ने भी कहा था- “जिसने खुद को नहीं पहचाना, उसने कुछ नहीं जाना।” किताब में रिचर्ड से राधानाथ बनने की कहानी को बड़े ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इससे पश्चिमी सभ्यता की ऊब भी रेखांकित होती है। कुल मिलाकर यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि हरिवंश की ये तीनों किताबें भारतीय परंपरा की खोज की तरह हैं। ये सत्य और तथ्य के साथ सत्व और नायकत्व की खोज करती हैं।

सृष्टि का मुकुट: कैलास मानसरोवर

हरिवंश

प्रकाशक | वाणी प्रकाशन

पृष्ठः 240 | कीमतः 469 रुपये (हार्डकवर)

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पथ के प्रकाश पुंज

हरिवंश

प्रकाशक | वाणी प्रकाशन

पृष्ठः 224 | कीमतः 469 रुपये (हार्ड कवर) 

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कलश

हरिवंश

प्रकाशक | वाणी प्रकाशन

पृष्ठः 304 | कीमतः 554 रुपये (हार्ड कवर)

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