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पुस्तक समीक्षा: राजनीतिक किस्से

राजनीति में शान्ता कुमार उच्च मूल्यों के पक्षधर नेताओं में से एक रहे हैं
राजनैतिक किस्से

राजनीति में शान्ता कुमार उच्च मूल्यों के पक्षधर नेताओं में से एक रहे हैं। 2019 में चुनावी राजनीति से संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपने छह दशक के राजनीतिक अनुभव को पाठको के साथ साझा करने का निर्णय लिया। अब आत्मकथा के रूप में यह पुस्तक सामने है।

शान्ता कुमार ने पहली बार अपने पिता के साथ की स्मृतियों का उल्लेख किया है। वे लिखते हैं, ‘‘पिता सिद्धांत के पक्के और काम में निपुण थे। पर उनमें क्रोध अधिक था। एक बार किसी की पिटाई करने पर पिता जी की शिकायत हुई और विभागीय जांच के बाद उनका तबादला मनाली कर दिया गया।’’ शान्ता कुमार लिखते हैं, ‘‘हुआ यूं कि एक बार एक इंस्पेक्टर निरीक्षण के लिए आया। किसी बात पर उसकी पिता से बहस हो गई। उनके ही कार्यालय में उस इंस्पेक्टर ने पिता को अपशब्द कह दिए। यह बात पिता जी से सहन नहीं हुई और उन्होंने उसे वहीं पीट दिया। पिता जी जब डंडे से उसे पीट रहे थे, तो दफ्तर में हडकंप मच गया। विभागीय जांच का उन्हें सामना जरूर करना पड़ा लेकिन सभी ने एकमत से माना कि इंस्पेक्टर का गाली देना सर्वथा अनुचित था।’’ शान्ता कुमार ने ऐसे ही बहुत से रोचक किस्से बताएं हैं, जिससे उनके जीवन की झलक मिलती है। उन्होंने पुस्तक में अपने बाल्यकाल के संघर्ष की कहानी भी लिखी है। पुस्तक में संघ प्रचारक के रूप में 17 वर्षीय युवा शान्ता कुमार के जीवन यात्रा का पता चलता है। पुस्तक में वे युवा दिनों के प्रेम और उस प्रेम की खातिर लिखी गई पहली कविता के बारे में जब लिखते हैं, तो लगता है जैसे वह पल आज भी उनके सामने मौजूद है।  पाठको को वे अपनी साइकिल गिरवी रखने का किस्सा बड़े रोचक ढंग से बताते हैं। एक बार रोटी के लिए उन्हें यह काम करना पड़ा था। दिल्ली आने के बाद एलएल करने की कहानी, यमुना पार संघ विभाग प्रमुख बनने के बाद की व्यस्तता और जीवन संगिनी संतोष से पहली भेंट इस आत्मकथा को पूर्णता देती है।

इस आत्मकथा के कुछ अध्याय इतने रोचक बन पड़े हैं उनका उल्लेख नितांत आवश्यक है। ‘राजनीति से दूर’ (अध्याय 26) का एक प्रसंग है, ‘‘संतोष को अच्छे कपड़े पहनने का और फिल्में देखने का खूब शौक था। जबकि मैं जब दिल्ली विश्वविद्यालय में वकालत की पढ़ाई कर था तब भी बिना इस्त्री किया कुर्ता-पायजामा पहन कर चला जाता था। कपड़ों के प्रति मेरी जरा भी रुचि नहीं थी। पर फिर सब बदला और एक दिन मेरे बड़े भाई ने संतोष से कहा, ‘‘एक बात के लिए तुम्हें बधाई दूंगा। तुमने शान्ता को अच्छे कपड़े पहनना सिखा दिया है।’’

पुस्तक में कुछ घटनाएं ऐसी भी हैं, जो लेखक को अपने राजनीतिक जीवन में कचोटती रहीं। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री के पद से इस्तीफा देकर महिंदर सोफत (सोलन के भाजपा नेता) के साथ राजनीतिक अन्याय की व्यथा वह नहीं भूलते। अध्याय 44 में उन्होंने महेंद्र सोफत के साथ हुए अन्याय का वर्णन किया है। एक साल में पूरी हुई इस आत्मकथा में कुछ ऐसे राजनीतिक प्रसंग भी हैं, जिन पर यदि नोटिस लिया जाए राजनैतिक हलचल होना तय है।

निज पथ का अविचल पंथी

शान्ता कुमार

प्रकाशक | किताबघर

पृष्ठः 464 | मूल्यः 700

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