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24 जून 2024 · JUN 24 , 2024

जनादेश ’24 /दक्षिण भारत: सेंगोल-नीति के चुनावी प्रभाव

केरल में भाजपा का खाता खुला लेकिन कांग्रेस की जबरदस्त वापसी, तमिलनाडु में बढ़ा भाजपा का वोट
असरः केरल के त्रिशूर में जीते गोपी, और तमिलनाडु के स्टालीन

केरल के जनादेश ने भाजपाविहीन राज्य के रूप में चली आ रही इसकी प्रतिष्ठा को पलट दिया है। यह सूबे के राजनीतिक परिदृश्य में हुआ ऐतिहासिक बदलाव है। पूर्व राज्यसभा सदस्य और अभिनेता से नेता बने सुरेश गोपी ने त्रिशूर लोकसभा क्षेत्र में 74,686 वोटों के  उल्लेखनीय अंतर से शानदार जीत हासिल कर के इतिहास रच दिया है। इस नतीजे से वाम मोर्चा एलडीएफ और कांग्रेसनीत यूडीएफ दोनों खेमों को झटका लगा है।

गोपी ने पारंपरिक कांग्रेस समर्थकों के वोटों का एक बड़ा हिस्सा सफलतापूर्वक हासिल किया है। लोकसभा चुनाव 2019 के प्रदर्शन की तुलना में कांग्रेस प्रत्याशी के परिणाम में 86,965 वोटों की महत्वपूर्ण गिरावट से ऊपर लिखी बात की पुष्टि होती है। इसके विपरीत, एलडीएफ का प्रतिनिधित्व करने वाले सीपीआइ नेता और पूर्व मंत्री वीएस सुनील कुमार पिछले चुनाव की तुलना में अपनी वोट संख्या 16,916 बढ़ाने में कामयाब रहे हैं। इससे वामपंथियों के इस तर्क को बल मिला है कि केरल की छवि को बदलने के लिए कांग्रेस पार्टी जिम्मेदार है। केरल में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने 20 में से 18 सीटों पर जीत हासिल करके अपना गौरवपूर्ण अतीत पुनः प्राप्त कर लिया है।

केरल में भाजपा का खुला खाता

आमतौर पर यह अनुमान लगाया गया था कि सुरेश गोपी अपने संसदीय क्षेत्र में प्रभावशाली प्रदर्शन करेंगे, लेकिन जिस तरह के नतीजे आए हैं उससे भाजपा खेमा भी सुरेश गोपी की शानदार जीत से हैरान रह गया है। त्रिशूर में जीत के अलावा वोट शेयर के मामले में भाजपा की प्रगति पर ध्यान देना जरूरी है। पार्टी का वोट शेयर 2019 में प्राप्त 13 प्रतिशत से बढ़कर 16 प्रतिशत हो गया है।

तिरुवनंतपुरम में भले मौजूदा सांसद शशि थरूर ने रोमांचक मुकाबले में जीत हासिल की, लेकिन कड़ी चुनौती पेश करने में भाजपा के राजीव चंद्रशेखर ने भी कसर नहीं छोड़ी। थरूर ने 16,077 वोटों के मामूली अंतर से जीत दर्ज की है। चंद्रशेखर ने 35.5 प्रतिशत वोट हासिल कर एलडीएफ और यूडीएफ दोनों को हिलाकर रख दिया। यूडीएफ के वोटों में गिरावट तिरुवनंतपुरम में भी स्पष्ट है। एलडीएफ ने अपना वोट शेयर बरकरार रखा है। तिरुवनंतपुरम में कांग्रेस से भाजपा की ओर वोट खिसके हैं।

सीटों की हिस्सेदारी

इन दो निर्वाचन क्षेत्रों के अलावा भाजपा/एनडीए को राज्य के दस लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में औसतन 25 प्रतिशत वोट मिले। तिरुवनंतपुरम और त्रिशूर सहित आठ निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा ने अपना वोट शेयर 20 प्रतिशत से अधिक बढ़ाया। एलडीएफ और यूडीएफ के लिए अधिक चिंता की बात यह है कि भाजपा 11 विधानसभा क्षेत्रों में पहले स्थान पर और सात में दूसरे स्थान पर रही, जो राज्य के चुनावी इतिहास में पहली बार हुआ है।

तमिलनाडु में सीटें नहीं, लेकिन वोट बढ़ा

तमिलनाडु के चुनावी नतीजों के द्रमुक गठबंधन के पक्ष में होने की उम्मीद थी और नतीजे उम्मीद के मुताबिक ही आए। भाजपा ने कम से कम दो सीटें जीतने पर ध्यान केंद्रित किया था, विशेष रूप से कोयम्बटूर जहां से पार्टी प्रमुख अन्नामलाई चुनाव लड़ रहे थे। ये आकांक्षाएं धराशायी हो गईं, लेकिन भाजपा को वोट शेयर में उल्लेखनीय वृद्धि प्राप्त हुई। पार्टी को कुल मतों का 10.69 प्रतिशत प्राप्त हुआ, जो 2019 के 3.5 प्रतिशत से पर्याप्त वृद्धि को दर्शाता है। इस वृद्धि से एनडीए का कुल वोट शेयर बढ़कर 18.2 प्रतिशत हो गया है।

तमिलनाडु में चुनावी परिदृश्य पर 1967 से ही पारंपरिक रूप से द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा का बोलबाला रहा है, हालांकि अब यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा राज्य में मजबूत तीसरी ताकत के रूप में उभरी है- खासकर अन्नाद्रमुक के निराशाजनक प्रदर्शन के मद्देनजर, जो एक भी सीट हासिल करने में विफल रही। यह तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है।

जिन 23 निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा ने चुनाव लड़ा था, उनमें से नौ में भाजपा दूसरे स्थान पर रही- कोयम्बटूर, नीलगिरी, चेन्नै दक्षिण, चेन्नै मध्य, तिरुनेलवली, कन्याकुमारी, तिरुवल्लूर, वेल्लोर और मदुरै। इसके अलावा, भाजपा की सहयोगी पार्टियों पीएमके और डीएमडीके ने क्रमशः धर्मपुरी और विरुधुनगर निर्वाचन क्षेत्रों में दूसरा स्थान हासिल किया है। भाजपा ने इस बार हालांकि कोई सीट नहीं जीती है, लेकिन वोट शेयर में वृद्धि ने पार्टी को 2026 के विधानसभा चुनावों के लिए जबरदस्त आत्मविश्वास दिया है। केरल में भी भाजपा खेमा उत्साहित है और अगले विधानसभा चुनाव में खाता खोलने का लक्ष्य लेकर चल रहा है।

चुनाव से पहले भाजपा का शीर्ष नेतृत्व मानकर चल रहा था कि केरल और तमिलनाडु से उसे दो-दो सीटें कम से कम मिलेंगी। इसके लिए सेंगोल से लेकर द्रविड़ पंडितों को नई संसद के उद्घाटन पर बुलाया, काशी में तमिल संगमम जैसा आयोजन करवाया, सैलानियों को बनारस और अयोध्या घुमाया। ऐसा लगता है कि इसका कुछ लाभ पार्टी को वोट वृद्धि के रूप में बेशक मिला है।  

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