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27 मई 2024 · MAY 27 , 2024

विरासत टैक्स विवाद: क्यों है बवाल

कांग्रेस के घोषणा-पत्र पर हमले के लिए भाजपा ने विरासत कर को मुद्दा बनाकर नए विवाद को जन्म दिया
विरासत टैक्स पर बिना बात असमंजस

आम चुनाव 2024 ऐसे-ऐसे घटनाक्रम और मुद्दे उछाल रहा है, जो हैरान कर देता है। यह तो सही है कि कई चुनावों बाद महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ती गैर-बरारबरी जैसे आम लोगों की जिंदगी से जुड़े आर्थिक मुद्दे बहस के केंद्र में आते दिख रहे हैं। लेकिन चुनावी भाषणों में ये जिस तरह उठ रहे हैं, वह शायद ही कभी सुना गया होगा। मसलन, विरासत टैक्‍स का ही मामला लें। कांग्रेस के घोषणा-पत्र में, जिसे वह न्‍याय-पत्र कहती है, जाति जनगणना और आर्थिक-सामाजिक सर्वेक्षण का वादा है। इसमें दलितों, पिछड़ों, अल्‍पसंख्‍यकों को हक और हिस्‍सेदारी देने के वादे के जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसे “मुस्लिम लीग का घोषणा-पत्र’’ बता दिया। तेलंगाना में एक रैली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा, “हमारी सरकार सत्ता में आती है तो हम सबसे पहले पिछड़ी जातियों, एससी, एसटी, अल्पसंख्यकों और अन्य जातियों की स्थिति जानने के लिए वित्तीय और संस्थागत सर्वेक्षण कराएंगे।”

लेकिन संसाधनों के बंटवारे पर ‘इंडियन ओवरसीज कांग्रेस’ के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने शिकागो से समाचार एजेंसी एएनआइ से बातचीत में कहा, "मसलन, एक उदाहरण अमेरिका के कुछेक राज्‍यों में अरबपतियों पर लगने वाला इनहेरिटेज टैक्‍स की व्‍यवस्‍था है यानी किसी की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का 45% हिस्सा उसके बच्चों और 55% सरकार के पास जाता है। भारत में ऐसी व्यवस्था नहीं है। ऐसे मुद्दों पर बहस और चर्चा करनी चाहिए।"

सैम पित्रोदा के इस बयान को भाजपा ने लपक लिया। नरेंद्र मोदी ने राजस्थान की एक रैली में कहा, “कांग्रेस ने अपने घोषणपत्र में वादा किया है कि अगर वह सत्ता में आती है तो देश में किसके पास कितनी संपत्ति है यह जानने के लिए एक सर्वे कराएगी। यानी आपके पास दो गाड़ी, दो मकान है तो एक ले लिया जाएगा। हमारी बहनों के पास सोना कितना है, इसकी जांच कराई जाएगी और सबको समान रूप से वितरित कर दी जाएगी। ये आपका मंगलसूत्र भी बचने नहीं देंगे और उसे मुसलमानों में बांट देंगे।”

जवाब में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री को पार्टी का घोषणा-पत्र भेजा और चिट्ठी लिखी कि बताइए, कहां लिखा है, जो आप आरोप लगा रहे हो। उन्‍होंने कहा कि प्रधानमंत्री सरेआम झूठ बोल रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "कांग्रेस मेनिफेस्टो में विरासत टैक्स का कोई जिक्र नहीं है। 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस विरासत टैक्स को खत्म कर दिया था। सच्चाई यह है कि अरुण जेटली और जयंत सिन्हा जैसे भाजपा नेताओं ने विरासत टैक्स के पक्ष में वकालत की थी। यह हमारा नहीं बल्कि भाजपा का एजेंडा है।"

विरासत टैक्स को लेकर उपजे इस विवाद के बाद यह सवाल जरूर खड़ा हो गया है कि जिस देश में आर्थिक असमानता अपने उरूज पर है, जहां देश के 1 प्रतिशत लोगों के पास देश की 40 प्रतिशत से अधिक संपत्ति है, वहां विरासत टैक्स लागू करना गलत है या सही? देश में  1953 में संपदा शुल्क (एस्टेट ड्यूटी) की व्‍यवस्‍था लागू की गई थी। उसका मकसद "सामाजिक असमानता पर अंकुश लगाना" था। यह चल और अचल दोनों संपत्तियों पर लगाया जाता था। यह उस पर लागू होता था, जिसकी संपत्ति तब 20 लाख रुपये (आज यह सीमा जरूर करोड़ों रुपयों में होती) से अधिक की होती थी। उस पर 85 फीसदी टैक्स लगता था। लेकिन 1986 में तत्कालीन वित्त मंत्री वी.पी. सिंह ने यह कहते हुए इसे समाप्त कर दिया था कि 1953 का संपदा शुल्क अधिनियम सामाजिक समानता के अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रहा है।

हालांकि, पिछले दो दशक में यह मुद्दा उठता रहा है। 2013 में केंद्रीय बजट से पहले पी. चिदंबरम ने कहा था, “गैर-ऋण राजस्व (नॉन-डेट रेवेन्यू) में वृद्धि की जानी चाहिए। इसलिए, अमीरों को अधिक टैक्स चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए।” फिर 2018-19 के केंद्रीय बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली और वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्‍हा ने विरासत टैक्स की बात उठाई थी।

वरिष्ठ अर्थशास्त्री और लेखक प्रोफेसर अरुण कुमार आउटलुक से कहते हैं कि राजनीतिक मंशा न होने के कारण कोई पार्टी इसे दोबारा लागू नहीं कर पाई। हालांकि क्या इस वक्त भारत में इसकी जरूरत है, इस पर अरुण कुमार कहते हैं, "भारत में आर्थिक असमानता दुनिया में सबसे ज्यादा है। भारत में विरासत टैक्स ही नहीं, बल्कि पूरे टैक्स संरचना में बदलाव करने की जरूरत है।" हाल में, ‘वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब’ ने ‘भारत में आर्थिक असमानता’ नाम से एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें बताया गया है कि देश में आर्थिक असमानता बढ़कर औपनिवेशिक काल के बाद से अपने सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में केवल 167 परिवारों (बिजनेस घरानों) पर उनकी शुद्ध संपत्ति का मात्र दो प्रतिशत टैक्स लगाने से सरकार को जीडीपी का 0.5 प्रतिशत राजस्व हासिल हो सकता है। राहुल गांधी लगातार इसी रिपोर्ट का जिक्र अपनी चुनावी सभाओं में कर रहे हैं। वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण कुमार की मानें तो विरासत टैक्स को सही से लागू किया गया तो इससे सरकारी राजस्व और जीडीपी में वृद्धि होगी जिससे देश के समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।

सैम पित्रोदा के उस बयान को भाजपा ने कांग्रेस घोषणा-पत्र पर हमले का बहाना बनाया, जिसमें एक सवाल के जवाब में उन्होंने अमेरिका में अमीरों पर लगने वाले विरासत टैक्स का हवाला दिया था

सैम पित्रोदा के उस बयान को भाजपा ने कांग्रेस घोषणा-पत्र पर हमले का बहाना बनाया, जिसमें एक सवाल के जवाब में उन्होंने अमेरिका में अमीरों पर लगने वाले विरासत टैक्स का हवाला दिया था

गौरतलब है कि अमेरिका के कुछ राज्‍यों, ब्रिटेन, जापान, फ्रांस और फिनलैंड सहित कई विकसित देशों में 7 प्रतिशत से 55 प्रतिशत तक विरासत टैक्स की व्‍यवस्‍था है। मार्च 2023 में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने तो विरासत टैक्स को बढ़ाकर 60 प्रतिशत के पार करने की वकालत की थी। उन्होंने कहा, "अब समय आ गया है कि सुपर अमीर लोग अपना उचित हिस्सा देना शुरू करें।" उन्होंने विस्तार से बताया कि अमेरिका की 55 सबसे बड़ी कंपनियां अपने 4,000 करोड़ डॉलर के मुनाफे पर कोई फेडरल टैक्स नहीं देती हैं। अमीरों पर अधिक टैक्स लगाने की दलीलें कई देशों में गति पकड़ रही हैं। ब्राजील, जर्मनी, स्पेन और दक्षिण अफ्रीका के वित्त मंत्रियों ने हाल ही में अरबपतियों पर दो प्रतिशत कर लगाने की बात की।

हालांकि आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओइसीडी) की एक स्टडी के मुताबिक, विरासत टैक्स की सरकार के कुल राजस्व में बहुत छोटी हिस्सेदारी है। स्टडी के मुताबिक ओइसीडी ग्रुप के 24 देशों में औसतन कुल टैक्स रेवेन्यू में विरासत टैक्स की हिस्सेदारी मात्र 0.5 प्रतिशत है।

हालांकि अरुण कुमार इन आंकड़ों से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। वे कहते हैं, "1976 में संपत्ति शुल्क के जरिए 300 करोड़ रुपये इकट्ठा हुए। मगर 1996 में भी मात्र 300 करोड़ ही संपत्ति शुल्क वसूला गया। 20 साल बाद भी टैक्स कलेक्शन नहीं बढ़ा लेकिन अमीरों के वेल्थ में 40-50 गुना बढ़ोतरी हुई। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें शेयरहोल्डिंग, फाइनेंसियल एसेट, रियल एस्टेट में कई तरह की सरकारी छूट मिलती थीं।”

दूसरी ओर ग्रोथ स्ट्रैटजिस्ट, दीपक सिंघल आउटलुक से कहते हैं, "विरासत कर लगने से उद्यमिता और नवाचार प्रभावित हो सकता है। इससे देश में हो रहे निवेश पर भी असर पड़ेगा। नीति-निर्माताओं को विरासत टैक्स लगाने से पहले काफी विचार-विमर्श करने की जरूरत है।" जो हो, यह विवाद चुनावी गुगली के लिए गढ़ा गया है। अमूमन पहले ऐसे विवाद नहीं उठते थे। लेकिन इसी बहाने आर्थिक मुद्दों पर बात शुरू हुई।

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