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विधानसभा चुनाव’24 हरियाणा: चुनौती दोनों तरफ कई

सत्तारूढ़ भाजपा को कल्याणकारी योजनाओं से उम्मीद, तो कांग्रेस लोकसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित, बाकी पार्टियों के लिए संकट
आशीर्वाद की आसः कलायत क्षेत्र की रैली में मुख्यमंत्री सैनी

महाभारत की धरती हरियाणा में एक अक्टूबर को विधानसभा चुनावी रण से पहले सत्तारूढ़ भाजपा सरकार की लोकलुभावन घोषणाओं के बीच दलबदलू टिकटार्थी अपना टिकट पक्का करने के चक्कर में हैं। अप्रैल में लोकसभा चुनाव के मतदान के बाद से ही सभी दलों ने विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी थी। लेकिन उम्मीद से करीब एक महीना पहले चुनावों के ऐलान और आचार संहिता लगने से सत्तारूढ़ भाजपा की चुनावी घोषणाओं की झड़ी भरी बरसात में सूखे का शिकार हो गई। चुनाव के ऐलान के दिन ही हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग ने पुलिस में 5,600 सिपाहियों की भर्तियों की अधिसूचना जारी की। चुनाव आयोग ने प्रक्रिया जारी रखने की इजाजत तो दी मगर नतीजों की घोषणा पर रोक लगा दी है।

एक दशक से ठेके पर कार्यरत 1.20 लाख कर्मचारियों को नौकरी की सुरक्षा के ऐलान का अध्यादेश भी आचार संहिता के पेंच में फंस गया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी 10 सीटें जीतने वाली भाजपा की 2024 के लोकसभा चुनाव में 5 सीटों पर हार से विधानसभा की 90 में से 46 सीटों पर नुकसान को कम करने के लिए अगस्त के पहले पखवाड़े में की गई कई लोकलुभावन घोषणाएं सिरे चढ़ेंगी या नहीं, यह 4 अक्टूबर को चुनावी नतीजों से तय होगा।

अपनी-अपनी यात्राः जजपा के दुष्यंत चौटाला

जनता के बीच जजपा के दुष्यंत चौटाला

चुनावों की घोषणा से हफ्ता भर पहले तीज के मौके पर महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए जींद में मुख्यमंत्री नायब सैनी ने 46 लाख परिवारों को 500 रुपये में गैस सिलेंडर देने की घोषणा की। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में 500 रुपये में गैस सिलेंडर मुहैया कराने की घोषणा की थी, जिसे भाजपा ने विधानसभा चुनाव के लिए अपनी जन-आशीर्वाद यात्राओं और ‘नॉन स्टॉप हरियाणा’ रैलियों की घोषणाओं में शामिल कर लिया है। भाजपा ने इन वादों में गरीब दलित परिवारों की लड़कियों के विवाह की शगुन राशि 41,000 रुपये से बढ़ाकर 71,000 रुपये करने, एक लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवारों को मुफ्त बस यात्रा और वरिष्ठ नागरिकों को तीर्थयात्रा, बीपीएल परिवारों को 100 वर्ग गज के प्लॉट, 3,400 रुपये बेरोजगारी भत्ता, किसानों की 24 फसलों की एमएसपी पर सरकारी खरीद और आबियाना सैस (नहर पानी कर) माफ करने जैसी घोषणाएं की हैं। 

पार्टियों की हिस्सेदारी

आचार संहिता लागू होने से पहले मुख्यमंत्री नायब सैनी के मात्र 74 दिन के कार्यकाल में अधिकतर चुनावी घोषणाओं पर ग्रहण लगने पर हरियाणा के पूर्व गृह मंत्री अनिल विज ने आउटलुक से कहा, “तमाम घोषणाएं लागू हो जातीं, अगर उम्मीद मुताबिक तय समय पर चुनाव होते। तीन हफ्ते पहले चुनाव कराने से लगी आचार संहिता की वजह से कई कल्याणकारी योजनओं की घोषणा नहीं हो सकी और कई घोषित योजनाएं लागू नहीं हो सकेंगी। लेकिन चुनाव के बाद सरकार के गठन के साथ ही भाजपा सरकार अपनी घोषणाओं को लागू करेगी।”

चुनाव से ठीक पहले लोकलुभावन घोषणाओं को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री तथा नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने आउटलुक से कहा, “भाजपा ने 500 रुपये में गैस सिलेंडर जैसी हमारी कई घोषणाएं चुरा ली है इसलिए हमने घोषणाएं करना बंद कर दिया। साढ़े नौ साल में हर मोर्चे पर नाकाम रही भाजपा सरकार ने हार से घबराकर कई आधारहीन घोषणाएं की हैं। किसानों को फसलों पर एमएसपी की गारंटी से पीछे हटने वाली भाजपा संसद में विधेयक क्यों नहीं लाती? जिन फसलों पर मुख्यमंत्री ने एमएसपी पर खरीद का ऐलान किया है, उनमें ज्यादातर की हरियाणा में खेती ही नहीं होती।”   

रोजगार की कवायद

तमाम लोकलुभावन घोषणाओं के बावजूद भाजपा के लिए तीसरी बार सरकार बनाना कड़ी चुनौती है। प्रदेश की सियासत में कभी दबदबा रखने वाले तीन लाल परिवारों में देवीलाल, बंसीलाल और भजन लाल परिवार लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनावों में भी हाशिये पर दिख रहे हैं। कांग्रेस से कड़ी टक्कर के चलते भाजपा पहले ही उसे “हुड्डा पिता-पुत्र पार्टी” बताकर घेर रही है। कांग्रेस में ही कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला के निशाने पर भी हुड्डा पिता-पुत्र हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके पुत्र दीपेंद्र हुड्डा के साथ प्रदेश अध्यक्ष उदयभान ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ यात्रा निकाल रहे हैं तो कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला अलग से ‘बदलाव रैलियां’ कर रहे हैं। कांग्रेस नेताओं में इस होड़ के चलते भितरघात का खतरा है। चुनाव विश्लेषक योगेंद्र कहते हैं, “कांग्रेस को कांग्रेस ही हरा सकती है, वरना लोकसभा चुनाव के नतीजों से कोई संकेत मिलता है तो यही कि उसका प्रदर्शन बेहतर होना चाहिए।”

जाति समीकरण

कांग्रेस की इस गुटबाजी के अलावा भाजपा का तुरूप जाट और गैर-जाट ध्रुवीकरण भी माना जा रहा है। करीब 75 फीसदी गैर-जाट मतदाताओं को साधने के लिए भाजपा लोकसभा चुनाव से एक महीना पहले मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के बजाय ओबीसी चेहरे नायब सैनी को ले आई। मगर उसका यह दांव उम्मीद मुताबिक नतीजे नहीं दे सका। विधानसभा चुनाव से पहले ब्राह्मण मोहन लाल बड़ोली को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर गैर-जाट वर्ग में पैठ बढ़ाने की कोशिश की है।

इधर लाल परिवारों में तीन बार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे बंसीलाल परिवार का कांग्रेस में कोई नामलेवा नहीं रहा। चार बार की विधायक रही उनकी पुत्रवधु किरण चौधरी और एक बार की सांसद पोती श्रुति चौधरी के भाजपा में जाने से कांग्रेस में गुटबंदी का एक सुर कम हुआ है, तो किरण चौधरी को राज्यसभा में भेजकर भाजपा ने उन्हें विधानसभा से दूर कर दिया है।

कांग्रेस का प्रचार करते दीपेंद्र हुड्डा

कांग्रेस का प्रचार करते दीपेंद्र हुड्डा 

तीन बार मुख्यमंत्री रहे भजन लाल का परिवार भी भाजपामय हो गया है। हालांकि कांग्रेस की हुड्डा सरकार में उप-मुख्यमंत्री रहे बड़े बेटे चंद्रमोहन बिश्नोई अभी कांग्रेस में बने हुए हैं पर 2014 के बाद से सक्रिय नहीं हैं। इस बार कालका या पंचकूला से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की उनकी जोर आजमाइश जारी है। सांसद तथा तीन बार के विधायक रहे छोटे पुत्र कुलदीप बिश्नोई को 2024 के लोकसभा चुनाव से दूर रखने वाली भाजपा विधानसभा के लिए कुलदीप को हांसी और उनके विधायक पुत्र भव्य बिश्नोई को आदमपुर से चुनाव लड़ने की तैयारी में है। 

पूर्व उप-प्रधानमंत्री देवीलाल चौटाला के परिवार की इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) 2019 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दोफाड़ होने से मात्र एक सीट पर सिमट गई थी। इसी परिवार की चौथी पीढ़ी दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी पहली बार ही में ही 10 सीटें जीतकर किंगमेकर के रूप में उभरी थी। 40 सीटें जीतकर बहुमत से 6 सीटें दूर रही भाजपा ने साढ़े चार साल जजपा के साथ गठबंधन में सरकार चलाई पर लोकसभा चुनाव से ठीक 50 दिन पहले उसने गठबंधन तोड़ दिया। इससे जजपा के लिए अस्तित्व का संकट बढ़ गया। 2024 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने इनेलो और जजपा को पूरी तरह से हाशिए पर धकेल दिया। देवीलाल परिवार के चार सदस्यों में एक भी अपनी जमानत नहीं बचा पाया। जजपा का मत प्रतिशत एक फीसदी से भी नीचे रहा। 2019 के विधानसभा चुनाव में मात्र एक विधायक अभय चौटाला की जीत तक सिमटी इनेलो ने विधानसभा चुनाव के लिए बसपा से गठबंधन किया है पर लोकसभा चुनावों में भी 1.20 फीसदी मत पा सकी इनेलो के लिए अस्तित्व की लड़ाई आसान नहीं है।

16 अगस्त को चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनाव की घोषणा के कुछ घंटें के भीतर जननायक जनता पार्टी के 10 विधायकों में पांच पार्टी छोड़ गए। दुष्यंत चौटाला के बेहद करीबी माने जाने वाले उकलाना से विधायक अनूप धानक के पार्टी छोड़ने के अगले दिन जजपा छोड़ने वाले विधायकों के इस्तीफों की झड़ी लग गई। रामकरण काला, रामनिवास, राम कुमार, जोगी, राम सिहाग के पार्टी छोड़ने के बाद ईश्वर सिंह और देवेंद्र बबली के भी पार्टी छोड़ने की चर्चाएं हैं। बचे तीन विधायकों में दुष्यंत चौटाला और उनकी मां नैना चौटाला के अलावा जुलाना से विधायक अमरजीत ढांढा होंगे।

कांग्रेस में शामिल हुए शाहबाद से विधायक रामकरण काला के अलावा जजपा के दो विधायकों में देवेंद्र बबली और ईश्वर सिंह भी कांग्रेस के संपर्क में हैं। राज्यसभा के लिए किरण चौधरी के समर्थन में 21 अगस्त को विधानसभा में मतदान के लिए हाजिर रहे जोगीराम सिहाग, अनूप धानक, रामनिवास सूरजाखेड़ा और रामकुमार गौतम भाजपा का दामन थाम सकते हैं। मार्च में भाजपा के जजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद से ही जजपा का संकट गहराने लगा। लोकसभा चुनावों में भी पार्टी के प्रचार से खुद को दूर रखने वाले इन 7 विधायकों का पार्टी के खिलाफ प्रचार जजपा को भारी पड़ा। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष निशान सिंह ने भी कांग्रेस का हाथ थाम लिया।

मुलाकातः भूपेंद्र हुड्डा के परिवार से पति के साथ मिलने पहुंचीं विनेश फोगाट

मुलाकातः भूपेंद्र हुड्डा के परिवार से पति के साथ मिलने पहुंचीं विनेश फोगाट

राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय सिंह चौटाला ने आउटलुक से कहा, “यह कोई नई बात नहीं है। फसली बटेर नेता चुनावी मौसम में दल-बदल करते हैं। देश का राजनैतिक इतिहास रहा है कि प्रधानमंत्री रहे नेता तक ने पार्टी छोड़ी है। चुनावों से ठीक पहले सात विधायकों के पार्टी छोड़ने की परवाह जजपा को नहीं है क्योंकि जमीन से जुड़ी हमारी पार्टी संघर्ष करके शीर्ष पर फिर से आएगी। टिकट न मिलने पर कांग्रेस और भाजपा के भी कई टिकटार्थी जजपा में शामिल होंगे।”

 लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले दूसरे दलों से कांग्रेस में करीब 42 पूर्व सांसद, पूर्व तथा वर्तमान विधायक के शामिल होने से पार्टी प्रदेश अध्यक्ष उदयभान इसे कांग्रेस के पक्ष में लहर मान रहे हैं। आउटलुक से बातचीत में उन्होंने कहा, “लोकसभा चुनाव से 48 दिन पहले मुख्यमंत्री मनोहर लाल को बदल कर भाजपा ने खुद मान लिया कि हरियाणा की जनता अब बदलाव के मूड में है। बदलाव की इस बयार में कई दलों के नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने से टिकटों के लिए मारामारी है। 90 सीटों के लिए कांग्रेस टिकट के लिए 2,556 दावेदारों में पूर्व जजों से लेकर आइएएस तथा आइपीएस अफसर भी शामिल हैं। सबसे अधिक 86 आवेदन जुलाना सीट के लिए आए हैं। टिकटों का फैसला स्क्रीनिंग कमेटी सर्वे रिपोर्ट के आधार पर करेगी।” कांग्रेस आलाकमान ने दो प्राइवेट एजेंसियों से जिताऊ उम्मीदवारों की पहचान करने को लेकर सर्वे कराया है।  

 इधर भाजपा के सेलीब्रिटी खिलाड़ी टिकटार्थियों में कॉमनवेल्थ खेलों की पदक विजेता दंगल गर्ल बबीता फोगाट चरखी दादरी से दूसरी बार चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। 2019 का विधानसभा चुनाव वे निर्दलीय सत्यपाल सांगवान से हार गई थीं। भारतीय कबड्डी टीम के पूर्व कप्तान दीपक हुड्डा ने रोहतक के महम से और उनकी बॉक्सर पत्नी स्वीटी बूरा ने हिसार जिले की बरवाला सीट से भाजपा टिकट की दावेदारी ठोकी है। पेरिस ओलंपिक में पदक से अयोग्य करार दी गई विनेश फोगाट के प्रति सहानुभूति का माहौल भुनाने के लिए कांग्रेस उन्हें उम्मीदवार बना सकती है।

भले ही भाजपा की एक परिवार में दो टिकटें देने की नीति आड़े आ रही है पर बेटे-बेटियों और रिश्तेदारों के लिए भी टिकटें मांगने वाले केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की भाजपा में लंबी कतार है। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह अपनी बेटी आरती राव और कृष्णपाल गुर्जर बेटे देवेंद्र चौधरी के लिए टिकट मांग रहे हैं। भिवानी महेंद्रगढ़ से सांसद धर्मवीर अपने बेटे मोहित चौधरी के लिए टिकट की दावेदारी जता रहे हैं। कुरूक्षेत्र से सांसद नवीन जिंदल मां सावित्री जिंदल के लिए हिसार से टिकट की लॉबिंग कर रहे हैं। कुलदीप बिश्नोई और उनके पुत्र भव्य बिश्नोई टिकट के प्रबल दावेदारों में हैं। हाल ही में राज्यसभा के लिए चुनी गई किरण चौधरी बेटी श्रुति चौधरी के लिए टिकट की दावेदारी जता रही हैं। हरियाणा के राजनैतिक विश्लेषक नवीन पांचाल का कहना है, ‘‘कांग्रेस को बापू-बेटा की पार्टी कहने वाली भाजपा अपने नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट बांटती है तो वह भी परिवारवाद के चक्रव्यूह में घिर जाएगी।”

भाजपा के लिए दस साल की एंटी-इन्‍कंबंसी के अलावा किसान आंदोलन, बेरोजगारी और केंद्र की अग्निवीर योजना जैसे मुद्दे गले की फांस बने हुए हैं। सरकारी भर्ती परीक्षाओं के पर्चे लिक होने की रिकॉर्ड घटनाओं से भी युवा नाराज हैं। यही मुद्दे कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों को अपने हम में लगते हैं।

भाजपा इस बार भी गैर-जाट वोट का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में करने की कोशिश में है, लेकिन लोकसभा चुनावों में उसे उसका ज्‍यादा लाभ नहीं मिल सका। 2014 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद इस धुव्रीकरण के लिए भाजपा ने गैर-जाट चेहरे पहली बार के विधायक पंजाबी चेहरे मनोहर लाल खट्टर पर दांव खेला था। 2019 के विधानसभा चुनाव में सत्ता विरोधी लहर के चलते खट्टर को मुख्‍यमंत्री पद पर दोहराने से भाजपा कमजोर पड़ी। राज्य में 8 फीसदी पंजाबी मतदाताओं की पकड़ जीटी रोड़ से सटे अंबाला, कुरूक्षेत्र, करनाल, पानीपत और सोनीपत जिले की करीब 25 विधानसभा सीटों पर है। इस बार बड़े पंजाबी चेहरों में केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के अलावा पूर्व गृह मंत्री अनिल विज हैं। मंत्री पद से हटाए जाने के बाद विज की सक्रियता घटी है और वे नाराज भी बताए जाते हैं। इसलिए भाजपा को अपने पार्टी के भीतर नाराज नेताओं और कार्यकर्ताओं को एकजुट करने की भी चुनौती है।

आम आदमी पार्टी भी हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपनी हाजिरी लगाने का प्रयास कर रही है। इससे पहले लोकसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक गठबंधन के तहत कुरूक्षेत्र सीट पर आप से लड़े सुशील गुप्ता भाजपा के नवीन जिंदल से हार गए। लेकिन इस बार हरियाणा कांग्रेस के विरोध के चलते चुनावी समझौता जारी नहीं रह सका। आप सभी 90 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी।

जाति, धर्म और क्षेत्र से परे किसान (एमएसपी), जवान (अग्निवीर), नौजवान (बेरोजगारी) और कारोबारी (कानून व्यवस्था) के मुद्दों के आगे तीसरी बार भी विधानसभा चुनाव में भाजपा का गैर-जाट का समीकरण सही बैठता है या नहीं, यह 4 अक्टूबर को चुनाव नतीजे तय करेंगे।

डेरों के फेर में

बाबा शरणः मुख्यमंत्री सैनी राधास्वामी संप्रदाय के बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लों के साथ

बाबा शरणः मुख्यमंत्री सैनी राधास्वामी संप्रदाय के बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्‍लों के साथ

 भाजपा का 2014 के विधानसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा ने खुलकर समर्थन किया था। इस बार भी भाजपा डेरों के फेर में है। चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले ही साध्वियों के बलात्कार और पत्रकार की हत्या के दोषी डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को 21 दिन की पैरोल पर विपक्ष भाजपा सरकार को घेर रहा है। डेरे का समर्थन पाने के लिए चुनावों से ठीक पहले राम रहीम को पैरोल दिए जाने का मामला नया नहीं हैं। 2017 में दोषी ठहराए जाने के बाद से डेरा प्रमुख को 10वीं बार पैरोल दी गई है। पैरोल की अवधि मिलाकर राम रहीम 235 दिन जेल के बाहर रहे। इनमें 6 बार पैरोल हरियाणा, पंजाब या राजस्थान में चुनाव से ठीक पहले इसलिए दी गई ताकि इन राज्यों में उसके अनुयायियों का समर्थन जुटाया जा सके।

मुख्यमंत्री बनने के बाद नायब सैनी राधास्वामी डेरा ब्यास का भी चक्कर लगा चुके हैं। सिरसा में डेरा सरसाई नाथ, डेरा जगमाल और करनाल में उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के आश्रम में मुख्यमंत्री बराबर हाजिरी लगा रहे हैं। लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री रहते मनोहर लाल खट्टर निरंकारी समागम में हाजिरी लगाने गए तो कांग्रेस के भूपेंद्र हुड्डा भी पीछे नहीं रहे।

अहम मुद्दे

बेरोजगारी, महंगाई, कानून-व्यवस्था

किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी

नौकरियों की भर्ती परीक्षाओं के पर्चे लीक

परिवार पहचान पत्र और प्रॉपर्टी आइडी

सरकारी पोर्टल की दुश्वारियां

 

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