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लीग खेलों से खुला खजाना, निखरे खिलाड़ी

ललित मोदी ने लीक से हटकर क्रिकेट से मोटा मुनाफा कमाने की ख्वाहिश में ट्वेंटी-20 लीग टूर्नामेंट की ऐसी तान छेड़ी कि देश के हर खेलों के लीग टूर्नामेंट के लिए क्या हर छोटे-बड़े उद्योगपति, राजनेता और खिलाड़ी बढ़-चढक़र हिस्सा लेने लग गए।
लीग खेलों से खुला खजाना, निखरे खिलाड़ी

आज से दस साल पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि फ्लडलाइट में दमकता क्रिकेट मैदान और इसकी चकाचौंध किसी और खेल को भी रोशन कर पाएंगी। ललित मोदी ने लीक से हटकर क्रिकेट से मोटा मुनाफा कमाने की ख्वाहिश में ट्वेंटी-20 लीग टूर्नामेंट की ऐसी तान छेड़ी कि देश के हर खेलों के लीग टूर्नामेंट के लिए क्या हर छोटे-बड़े उद्योगपति, राजनेता और खिलाड़ी बढ़-चढक़र हिस्सा लेने लग गए। इसी का नतीजा है कि दुनिया के किसी भी देश में एक साथ न तो इतने लीग मैचों का चलन शुरू हुआ है और न ही विश्व के इतने सारे दिग्गज खिलाड़ी किसी सरजमीं पर एक साथ नजर आ रहे हैं। लीग परंपरा में कबड्डïी और हॉकी जैसे परंपरागत खेल भी शामिल हुए तो यह फिसड्डïी देश खेलों का बादशाह ही बन गया और अभिनय के शहंशाह अमिताभ बच्चन को भी कहना पड़ गया कि अलग-अलग खेलों की लीग नई प्रतिभा के प्रदर्शन के लिए नया मंच पेश कर रही हैं। अब इन लीग प्रतियोगिताओं में व्यापक निवेश वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनता नजर आ रहा है।
सदी के महानायक इस नई सदी में सबसे बड़ा बदलाव यही देख रहे हैं कि आज लोग खेलों को पढ़ाई से कहीं ज्यादा तरजीह देने लगे हैं जहां धन, चकाचौंध, जोश, जुनून और रंगीनियां हैं। इन लीग प्रतियोगिताओं में फिल्मी और क्रिकेट सितारे, रिलायंस, स्टार इंडिया, अमेरिकी कॉर्पोरेट धुरंधर आईएमजी, सैमसंग, पेप्सिको, मारुति सुजुकी जैसे राष्टï्रीय-अंतरराष्टï्रीय प्रायोजक खिंचते चले आ रहे हैं। अकेले फुटबॉल लीग में ही हर टीम की दस साल की फ्रेंचाइजी कीमत ढाई करोड़ डॉलर रखी गई है और आठ टीमों के हिसाब से कुल 1200 करोड़ डॉलर में इन टीमों को खरीदा गया है। क्रिकेट का आईपीएल (इंडियन प्रीमियर लीग) अपने आठ सफल सीजन पूरे कर चुका है। इसके बाद कबड्डïी, फुटबॉल, बैडमिंटन, टेनिस की धमाकेदार सफलता ने न सिर्फ कई प्रतिभाओं को ऐसे खेलों में वैश्विक पहचान बनाने का मौका दिया, जिन खेलों का कोई नामलेवा तक नहीं था, बल्कि दुनिया के चोटी के खिलाडिय़ों के साथ खेलने भी उन्हें अनुभव प्राप्त हुआ। किदांबी श्रीकांत ने दुनिया के चौथे शीर्ष खिलाड़ी बनकर साबित कर दिया है कि अब बैंडमिंटन सिर्फ फिटनेस या टाइम पास का खेल नहीं रह गया है। इन लीग प्रतियोगिताओं में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की अच्छी-खासी दिलचस्पी सिर्फ इसलिए है कि अपने संभावित ग्राहकों की तलाश के लिए उन्हें इससे अच्छा मैदान और कोई नहीं मिल सकता। लिहाजा अब गोल्फ लीग भी शुरू करने की तैयारी चल रही है। टीमों की टाइटिल प्रायोजक कंपनियां बड़े मुनाफे की उम्मीद में दिल खोलकर निवेश कर रही हैं।
नतीजतन, लीक से हटकर शुरू हुए इस जुनून में उन प्रतिभावान खिलाडिय़ों की किस्मत भी पलटी खाने लगी है जो कभी कॉर्पोरेट और राजनीतिक सांठगांठ की मार झेल रहे थे। अब क्रिकेट के पीछे पूरा दिन बर्बाद कर देने वाले दर्शकों की मानसिकता भी बदली है तो जाहिर है कि इन प्रतियोगिताओं के निवेशकों को भी जोखिम की फिक्र नहीं होगी। रॉजर फेडरर, मारिया शारापोवा या राफेल नडाल जैसे धुरंधर टेनिस खिलाड़ी किसी भारतीय टीम का हिस्सा बन जाएं या फिर फुटबॉल के मामले में फिसड्डïी इस देश की धरती पर फ्रेडरिक जुंगबर्ग, डेल पिएरो, डेविड ट्रेजग्वे, माइकल चोपड़ा जैसे सुपरस्टार खेलने को उतरें तो निवेशकों के लिए मोटा मुनाफे की अपेक्षा करना लाजिमी ही है। बैडमिंटन लीग में अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाडिय़ों- लिन डैन और ली चोंग वेई जैसे सितारों की चकाचौंध रही तो देसी खिलाडिय़ों ज्वाला गुट्टïा और पी. वी. संधू की उपस्थिति ने लीग को अपार सफलता दिलाई। अक्टूबर से फुटबॉल का इंडियन सुपर लीग शुरू हुआ तो सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली से लेकर नामी-गिरामी कॉर्पोरेट घरानों में टीमें खरीदने को लेकर होड़-सी मच गई। आईएसएल शुरू होने से पहले ही धोनी दावा कर चुके थे कि यह आईपीएल की तरह लोकप्रिय होगा। मुफ्त में प्रचार पाने और कमाई करने की आस में बहुत सारे फिल्मी सितारों ने भी इसमें बढ़-चढक़र हिस्सा लिया। भारत के हर गांव-शहर, गली-मोहल्ले में कबड्डïी हो या फुटबॉल या हॉकी खेली जाती है लेकिन राष्ट्रीय पहचान बनाने वाली  प्रतियोगिता कराने में ये सभी खेल विफल रहे हैं क्योंकि इन्हें पेशेवर अंदाज में अब तक नहीं खेला गया। लीग प्रतियोगिता आने की वजह से ही फुटबॉल केरल, बंगाल, गोवा और पूर्वाेत्तर राज्यों से निकल पाई तो कबड्डïी की जड़ पंजाब, हरियाणा से निकलते हुए दूर-दूर तक फैल गई। अब तो कबड्डïी और टेनिस की ही दो-दो लीग प्रतियोगिताएं शुरू हो चुकी हैं। इसकी बड़ी वजह चैनलों के प्रसारण की आपसी खींचतान भी रही। भारतीय टेनिस खिलाड़ी महेश भूपति की इंटरनेशनल प्रीमियर टेनिस के साथ रोजर फेडरर, मारिया शारापोवा, एना इवानोविच तथा पीट सम्प्रास जैसे दिग्गज जुड़े तो इसी तर्ज पर टेनिस खिलाड़ी विजय अमृतराज की चैंपियंस टेनिस लीग में वीनस विलियम्स, मार्टिना हिंगिस, मार्क फिलिपॉस और डेविड फेरर जैसे स्टार खिलाड़ी अपना जलवा बिखेर चुके हैं।
हालांकि क्रिकेट को छोडक़र अन्य सभी खेलों की लीग अभी शुरुआती दौर में है इसलिए निवेशकों को कमाई की गारंटी पर अंदेशा है। उन्हें लगता है कि सिर्फ टीवी प्रसारण से लोगों में पैठ जमाना महंगा पड़ सकता है और आईपीएल के ठीक बाद टी-20 प्रतियोगिता की तरह अन्य खेलों पर दांव खेलना नुकसानदेह हो सकता है। लिहाजा लीग प्रतियोगिताओं के जरिये खेलों का ढांचा मजबूत करने, अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाडिय़ों की हिस्सेदारी के आश्वासन के बाद ही उद्योगपति निवेश के लिए आगे आ रहे हैं। कुछ खेलों की लीग को कॉर्पोरेट घराने और सितारे मुनाफा कमाने का जरिया नहीं बल्कि शोहरत पाने का जरिया मानते हैं। खिलाड़ी भी लीग की परंपरा को अभी शैशवास्था में मानते हैं और कुछ खिलाडिय़ों का तो यहां तक कहना है कि लीग मैच खेलते हुए उन पर घरेलू खिलाडिय़ों का ठप्पा लग जाता है और उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान नहीं मिल पाती। लंबे टूर्नामेंट खेलने के बाद वे शारीरिक और मानसिक रूप से थक जाते हैं या चोटिल हो जाते हैं। बाइचिंग भूटिया जैसे फुटबॉलर का कहना है कि फुटबॉल लीग में सबसे ज्यादा फायदा युवा और रिटायरमेंट की कगार पर पहुंच चुके खिलाडिय़ों को ही होगा क्योंकि इसमें ज्यादातर खिलाड़ी अपने अंतिम दौर में ही हैं। इन सबके बावजूद सन 2013 में प्रो कबड्डïी लीग से स्टार इंडिया ने 6100 रुपये की कमाई की जबकि हीरो इंडियन सुपर लीग के कारण लगभग तीन करोड़ 40 लाख दर्शक उससे जुड़े। इतनी सारी लीग शुरू होने के बावजूद खेल चैनलों को होने वाली कुल कमाई और दर्शक संख्या का 90 प्रतिशत हिस्सा क्रिकेट के खाते में ही गया है। सन 2013 में विभिन्न खेलों के प्रसारण से भारत को 3850 करोड़ रुपये की कमाई हुई जिसमें से 3450 करोड़ रुपये सिर्फ क्रिकेट से ही आए। आईपीएल को मिलने वाले विज्ञापन की दर प्रति दस सेकंड पर 10 लाख रुपये थी जबकि प्रो कबड्डïी लीग के लिए यही दर सिर्फ 50 हजार रुपये थी। इस लिहाज से क्रिकेट से इतर सबसे बड़ा जोखिम टेलीविजन चैनल ही उठा रहे हैं और बाकी खेलों में भी उनके निवेश की योजना है। स्टार इंडिया ने आने वाले वर्षों में 30 से 40 प्रतिशत राशि फुटबॉल, कबड्डïी और अन्य खेलों के लिए निर्धारित की है जबकि भारतीय प्रसारकों को पता है कि भारत में टेलीविजन पर खेल देखने की संस्कृति उतनी विकसित नहीं है जितना कि अन्य देशों में। बहरहाल, फुटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन और कबड्डïी के प्रति समझ एवं लोकप्रियता बढऩे का अभी और इंतजार करना होगा।   
अन्य खेल भी आईपीएल की राह पर
सुशील दोषी

कहते हैं कि अर्थशास्त्र आदमी को चलाता है। क्रिकेट में आईपीएल की अपार सफलता से प्रेरित होकर अन्य खेलों की लीग भी परवान चढऩे लगी है। फुटबॉल, बैडमिंटन और टेनिस के अंतरराष्ट्रीय खिलाडिय़ों की मौजूदगी सफलता की गारंटी बन गई है। टेलीविजन चैनलों पर इन सभी खेलों के सीधे प्रसारण ने ग्लैमर, शोहरत और दौलत को अपनी खींच लिया है। ऐसे में खिलाडिय़ों की चांदी हो गई है। अभावों की जिंदगी जीता कबड्डïी और बैडमिंटन खिलाड़ी रातों-रात लाखों की बात करने लगा है। ऐसी लीग प्रतिस्पर्धाओं के फायदे और नुकसान दोनों हैं। आप लॉन टेनिस के सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रोजर फेडरर को अपनी आंखों के सामने अपनी ज़मीन पर खेलते देख सकते हैं तो फुटबॉल और बैडमिंटन के दुनियाभर के सितारा खिलाडिय़ों को प्रदर्शन करते देखने की अपनी हसरत भी पूरी कर सकते हैं। खिलाडिय़ों की माली हालत बेहतर हो रही है और भारतीय खिलाडिय़ों को अंतरराष्टï्रीय स्तर के खिलाडिय़ों के साथ स्पर्धा करने का मौका मिल रहा है। इससे कई नए खिलाड़ी इन खेलों की तरफ अग्रसर होंगे और नई प्रतिभाएं लगातार उभर कर सामने आती रहेंगी। खेल अब सपना और गहरा लगाव नहीं बल्कि व्यवसाय बन गया है।
लेकिन इन लीग स्पर्धाओं का आकर्षण कई तरह के नुकसान भी लेकर आता है। क्रिकेट की तरह इनमें मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग की गंदगी भी फैलने की आशंका है। आईपीएल से मिलने वाली मोटी रकम के कारण खिलाड़ी टेस्ट क्रिकेट की गंभीरता को छोड़ रहे हैं। कई खिलाड़ी तो आईपीएल की रकम के लालच में अपने देश के लिए खेलने से कतरा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के ग्लैन मैकग्रा, एडम गिलक्रिस्ट, मैथ्यू हैडन और माइक हसी इसके उदाहरण हैं। वेस्ट इंडीज के क्रिस गैल और ड्वेन ब्रावो का भी यही हाल है। श्रीलंका के लसिथ मलिंगा भी अपनी ऊर्जा आईपीएल के लिए बचाना चाह रहे हैं और इसलिए अपने देश के लिए टेस्ट क्रिकेट नहीं खेल रहे हैं। आईपीएल कई अंतरराष्ट्रïीय हस्तियों को लील चुका है। चिंता की बात यह है कि विभिन्न खेलों में क्लब टीम खरीदने वालों का खेलों से कोई ताल्लुक नहीं होता इसलिए हम देखते हैं कि शाहरूख खान क्रिकेट की शान सुनील गावस्कर पर फिकरा कस देते हैं या कोई शराब कंपनी का मालिक राहुल द्रविड़ की क्रिकेट की काबिलियत पर सवाल उठा देता है। लोगों के पास पैसा आ गया है, तो वे टीम खरीद लेते हैं पर खेलों के संस्कार वे कहां से लाएंगे? वे तो महज सौदागर हैं, जो खेलों के जरिये अपनी सितारा हैसियत और रकम तेजी से बढ़ाना चाहते हैं। अन्यथा स्पॉट फिक्सिंग और मैच फिक्सिंग के आरोपों से घिरे राजस्थान रॉयल्स के मालिक राज कुंद्रा का खेलों से क्या ताल्लुक? जब गलत लोग खेलों मे पैसों के बल पर प्रवेश लेगें तो खेल कभी न कभी प्रदूषित जरूर होंगे। क्रिकेट के आईपीएल की देखा-देखी अन्य खेल और खिलाड़ी भी व्यावसायिक सफलता के दरवाजे जरूर खटखटा रहे हैं। पर हर चीज की अति उसी को निगल जाती है। यह मानी हुई बात है कि समाज में चरित्र का पतन और पैसों का महत्व बढ़ा है। पर जागरूक समाज वही कहलाता है, जो संतुलित व्यवहार का पालन करवाए। किसी विद्वान ने कहा है कि जिंदगी की सर्वश्रेष्ठï चीजें (हवा, पंछी, पानी, नजारे) मुफत में ही मिलती हैं पर आज के खिलाड़ी कह रहे हैं कि अगर ऐसा है तो ये चीजें कबूतरों को दे दो, हमें तो बस पैसा चाहिए।
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राष्ट्रीय खेलों से सुधरेगी दशा
उत्तराखंड को राष्ट्रीय खेल-2018 के आयोजन की मंजूरी मिलने से इस नवगठित राज्य में जबर्दस्त उत्साह पैदा हो गया है। उत्तराखंड में अभी खेलों की हालत दयनीय है जिस कारण राज्य के खिलाड़ी मजबूरन पलायन कर रहे है। सूबे को बने 14 वर्ष हो गए हैं लेकिन खेलों की स्थिति बदतर ही होती गई है। राज्य से कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी उभरे हैं, जिनमें मुक्केबाज प्रियंका चौधरी, हॉकी की वंदना कटारिया और जूनियर महिला क्रिकेट टीम एकता बिष्ट शामिल हैं जबकि बहुत सारे खिलाडिय़ों ने अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई है। इसके बावजूद यहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव बना हुआ है और खिलाडिय़ों का पलायन जारी है। महेंद्र सिंह धोनी और उन्मुक्त चंद जैसे क्रिकेटर इसकी जीती-जागती मिसाल हैं। राष्ट्रीय खेलों की घोषणा के बाद अब यहां वर्षों से लंबित खेल नीति लागू होने जा रही है और खेलों के आयोजन में सूबे के मुखिया खासी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, आधारभूत संरचना के लिए 2200 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित है जिसमें लगभग 75 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार और शेष राशि राज्य सरकार देगी। प्रदेश के देहरादून, हल्द्वानी और टिहरी में राष्ट्रीय खेलों की 32 प्रतियोगिताओं और 4000 स्पर्धाओं का आयोजन होगा जिनमें लगभग 14 हजार खिलाड़ी हिस्सा लेंगे। इन खेलों के आयोजन के लिए राज्य में खेल गांव, अत्याधुनिक स्टेडियमों आदि का निर्माण होगा, जिससे भविष्य में ही यहां अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का माहौल बनेगा। हल्द्वानी में अभी अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम का निर्माण चल रहा है। इसके लिए वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री डॉ. इंदिरा हृदयेश ने कमर कसी हुई है। जाहिर है कि छोटे राज्यों और छोटे शहरों में खेल आयोजनों की एक नई परंपरा शुरू हुई है।

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