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Search Result : "Editorial"

बीता सुधार का वक्त

बीता सुधार का वक्त

यह बजट फिस्कल, मॉनेटरी और पॉलिटिकल तीनों मोर्चों पर सरकार के लिए बड़ी परीक्षा साबित होने वाला है। अगर...
उभरा नया गुजरात मॉडल

उभरा नया गुजरात मॉडल

सत्ता के लिए धर्म, गुजराती अस्मिता और अंततः पाकिस्तान जैसे प्रचार के औजार बने, उससे चुनाव का एक नया...
लोकतंत्र या भीड़तंत्र!

लोकतंत्र या भीड़तंत्र!

असल में राजनीतिक दल और नेता लोगों को लुभाने के आसान उपाय ढूंढ़ रहे हैं। यही वजह है कि असली मुद्दों की...
नोटबंदी के नफा-नुकसान

नोटबंदी के नफा-नुकसान

नोटबंदी का आम आदमी पर क्या असर पड़ा। इसका सीधा-सा जवाब है कि घटती अर्थव्यवस्था में रोजगार और कारोबार...
बहुत कुछ लगा है दांव पर

बहुत कुछ लगा है दांव पर

गुजरात के चुनाव में किसी भी दूसरे मुद्दे से ज्यादा अहम आर्थिक मुद्दे हैं। नोटबंदी के बाद जीएसटी का...
आर्थिक मोर्चे पर सावधान!

आर्थिक मोर्चे पर सावधान!

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा दोनों के लिए आर्थिक मुद्दों और रोजगार के संकट को हल करने की...
दीवार पर लिखी इबारत

दीवार पर लिखी इबारत

प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का ऐलान करते वक्त जो मकसद बताए थे, वे रिजर्व बैंक की ताजा रिपोर्ट में खारिज होते दिखते हैं। अगर सरकार हकीकत को स्वीकार किए बगैर अपने तर्क देती रही तो अच्छे दिन की ओर बढ़ना आसान नहीं होगा।
फडणवीस के आवास पर भी नियुक्त किया जाना चाहिए उप-लोकायुक्त : शिवसेना

फडणवीस के आवास पर भी नियुक्त किया जाना चाहिए उप-लोकायुक्त : शिवसेना

नगर निकायों के लिए एक उप-लोकायुक्त नियुक्त करने के मुख्‍यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के प्रस्ताव पर तंज कसते हुए शिवसेना ने सोमवार को कहा कि पारदर्शिता के लिए ऐसे अधिकारी की नियुक्ति मुख्यमंत्री के आवास पर भी की जानी चाहिए।
मनमोहन बोले, नोटबंदी का फैसला मौलिक कर्त्‍तव्‍य का उपहास

मनमोहन बोले, नोटबंदी का फैसला मौलिक कर्त्‍तव्‍य का उपहास

पीएम मोदी के कालेधन के खिलाफ नोटबंदी के फैसले पर अर्थशास्त्री और पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अंग्रेजी के प्रतिष्ठित दैनिक 'द हिंदू' में बड़ी ही बेबाकी से विचार रखे हैं। मनमोहन सिंह ने अपने संपादकीय लेख में कहा, ऐसा कहा जाता है, 'पैसा एक विचार है जो आत्मविश्वास को प्रेरित करता है।' लेकिन 8 नवंबर को एक झटके ने करीब 125 करोड़ लोगों के विश्वास को बर्बाद कर रख दिया है। इस फैसले के चलते एक रात में ही 500 और 1000 रुपये के रूप में मौजूद देश की 85 फीसदी मुद्रा बेकार हो गई।
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