पुराने दौर की मराठी फिल्म ‘सामना’ के चालीस साल पूरे हो गए है। इस मौके पर फिल्म से जुड़े लोगों ने अपनी यादें ताजा की। इस फिल्म को बर्लिन फिल्म फेस्टीवल में खूब सराहना मिली थी
जिस दिलेरी से नीरजा भनोत ने आतंकवादियों का सामना किया वह आज भी काबिल ए तारीफ है। वह अकेली और निहत्थी आतंकवादियों से डरे बिना सारे यात्रियों को बाहर निकालने में जुट गई थीं। जिस फ्लाइट में वह अटेंडेट थीं उसका आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था। अब उन्हीं के जीवन पर फिल्म बन रही है।
किसी साधारण बात को खास बनाने की जो भी संभव कोशिश हो सकती है, विक्रम भट्ट ने की है। थ्रीडी चश्मा, गायब होने वाला नायक, अंग्रेजी फिल्मों की तरह मारधाड़, विज्ञान के (कृपया बेतुका पढ़ें) चमत्कार आदि-आदि। फिर भी बेचारे दर्शक को समझ नहीं आता कि छोटे और ग्लैमरस कपड़ों में सिया वर्मा (अमायरा दस्तूर) दरअसल कैसी वाली पुलिस बनी हैं। रघु राठौर (इमरान हाशमी) पता नहीं कैसे सुपरकॉप बनें हैं जो न पहले अपने पुलिसिए बॉस का खुरपेंची दिमाग समझ पाए न बाद में अपनी पुलिसिया गर्लफ्रैंड का। मतलब दो-दो बार धोखा।
भारतीय जनता पार्टी की सांसद किरण खेर लेस्बियन गे बाइसेक्चुअल ट्रांसजेंडर समुदाय के पक्ष में राय कायम करने के लिए काम करने का फैसला लिया है। किरण का मानना है कि समाज को इन लोगों के प्रति नजरिया बदलना चाहिए
सत्ता में आने के बाद, एक साल से भी कम समय में अब नई सरकार देश की सबसे अहम आर्थिक समस्याओं एवं कम लागत में कारोबार शुरु करने जैसे मुद्दों से निबटने को तैयार है।
विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर वर्ष 2017 तक आठ प्रतिशत पर पहुंच जाएगी और देश में मजबूत विस्तार तथा तेल की अनुकूल कीमतों के चलते दक्षिण एशिया की वृद्धि दर बढ़ेगी।
फिल्म कहानी में सीरियल किलर की भूमिका निभाने के लिए अपार सराहना मिलने के बाद अब शाश्वत चटर्जी एक बार फिर ऐसे ही हत्यारे की भूमिका में नजर आने वाले हैं। बस अंतर इतना है कि 89 में उनका यह किरदार कहीं अधिक जटिल और खूंखार है।
भगवान या उनके नुमाइंदों को कटघरे में खड़ा करने वाली यह हाल ही की तीसरी फिल्म है। ओह माय गॉड, पीके के बाद धरम संकट में फिल्म भी श्रद्धा-विश्वास के बीच की रेखा को समझने की कोशिश करती है। वैसे यकीन मानिए यह किसी साधू-संत से ज्यादा परेश रावल की फिल्म है।