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नेट न्यूट्रेलिटी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री से मिलेंगे सांसद

नेट न्यूटेलिटी के सवाल पर केंद्र सरकार ने चुप्पी साध रखी है। संसद में इस पर तीखी बहस चलाने की तैयारी में हैं कई सांसद। जल्द ही केंद्रीय सूचना एंव प्रौद्योगिकी त्री रविशंकर प्रसाद को ज्ञापन सौंपने की तैयारी चल रही है। आउटलुक को मिली जानकारी के मुताबिक नेट न्यूट्रेलिटी के सवाल पर कई पार्टियों के सांसद साथ आ रहे हैं। जरूरत पड़ने पर वे प्रधानमंत्री से मिलने की तैयारी में हैं।
नेट न्यूट्रेलिटी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री से मिलेंगे सांसद

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) माकपा के लोकसभा सांसद एम.बी. राजेश ने बताया कि इंटरनेट एक जनता की सुविधा का मामला है। अभी तक इसमें अमीरों और गरीबों के लिए अलग-अलग रेट और सुविधा का मामला नहीं है। इसे खत्म करने की तैयारी हो रही है। उन्होंने बताया कि इसके ‌खिलाफ सबसे पहले लोकसभा में उन्होंने आवाज उठाई और इसके बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बोला। चूंकि अब सरकार ने इस पर चुप्पी साध रखी है इसलिए मंत्री को ज्ञापन देने की तैयारी है। नेट न्यूट्रेलिटी यानी इंटरनेट के उपयोग पर किसी भी तरह का आर्थिक भेदभाव नहीं हो।

राजेश ने बताया कि नेट न्यूट्रेलिटी की लड़ाई दरअसल इंटरनेट पर लोकतांत्रिक अधिका‌रों की लड़ाई है। टेलीकॉम कंपनियों ने एक झूठ रचा है कि इंटरनेट डाटा मुहैया कराने में उन्हें घाटा हो रहा है। हकीकत इसके उलट है। उन्होंने बताया कि एयरटेल की डाटा सर्विस से औसत कमाई  2012-13 की पहली तिमाही में 40 रुपये थी जो 2014-15 की पहली तिमाही में 170 रुपये तक पहुंच गई। यानी डाटा सर्विस से कोई भी टेलीकॉम कंपनी घाटे में नहीं है। यह झूठ रचा जा रहा है ‌ताकि जनता के इंटरनेट पर समान अधिकार को छीना जा सके।

राज्यसभा में इस मुद्दे पर मुखर रहे सांसद राजीव चंद्रशेखर का कहना है कि राजनीत‌ि में कुछ लोग चाहते हैं कि इंटरनेट को नियंत्रित किया जाए क्योंकि उन्हें हर स्वतंत्र चीज चुनौती लगती है। इंटरनेट एक लोकतांत्रिक स्पेस है, जिसका मालिक कोई नहीं है। इसे कोई नियंत्रित नहीं करता। ऐसे में इस पर हमला बोलना स्वाभाविक ही है। इंटरनेट पर सबके बराबर हक की लड़ाई दरअसल टेलिकॉम कंपनियों द्वारा इसमें भेदभावपूर्ण रेट व्यवस्था लागू करने के खिलाफ लड़ाई है। सांसद राजीव राज्यसभा के भीतर इस सवाल पर लंबी लड़ाई चलाने के मूड में हैं। गौरतलब है कि पिछले दिनों इस बात का जबर्दस्त हंगामा मचा था जब ये बात सामने आई थी कि टेलीकॉम कंपनियों ने यह दबाव बनाया था कि इंटरनेट सेवा प्रदान करने के लिए अलग-अलग चार्जेस होने चाहिए। एयरटेल और फिल्पकार्ड ने इस बाबत समझौता किया था कि वह विशेष कवरेज देगा। हंगामा मचा तो फिलपकार्ड ने कदम पीछे खींचे। लेकिन जीरो रेटिंग प्लान पर हंगामा हुआ जिसमें विज्ञापन देने वाली इंटरनेट कंपनियों की सेवाओं को अलग से प्रमोशन देने की बात आई। फिर टेलीकॉम नियामक संस्था ट्राई ने इस पर पबिल्क कंसल्टेशन किया। इसमें ट्राई के रवैये को नेट न्यूट्रेलिटी के खिलाफ टेलीकॉम कंपनियों के पक्ष में बताया गया। अभी मामले पर कोई सरकारी निर्णय नहीं हुआ है। 

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