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राहुल को रोकने का किताबी दांव

कभी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे नटवर सिंह ने साल 2014 में जब अपनी पुस्तक में यह खुलासा किया था कि 2004 में राहुल गांधी ने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनने से रोका था। उस समय सोनिया और राहुल ने नटवर से मुलाकात कर पुस्तक से कुछ बातों को निकालने के लिए कहा था। बाद में नटवर सिंह ने खुद ही खुलासा कर दिया कि सोनिया और राहुल उनसे मिलने आए थे। किताब के जरिए कांग्रेस में जो नई सियासत शुरू हुई है उससे पार्टी के कई नेता बेचैन हैं।
राहुल को रोकने का किताबी दांव

नटवर सिंह के बाद माखनलाल फोतेदार की किताब सुर्खिंयां बटोर रही है वहीं बताया जा रहा है कि गांधी परिवार के करीबी रहे आरके धवन भी पुस्तक लिख रहे हैं। फोतेदार ने पुस्तक के जरिए सोनिया और राहुल पर निशाना साधा है साथ ही इंदिरा गांधी के हवाले से प्रियंका गांधी को राहुल से योग्य बताया है। फोतेदार के इस खुलासे के बाद कांग्रेस पार्टी और परिवार में बेचैनी बढ़ी है। क्यों‍कि पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की तैयारी चल रही है।

माना जा रहा है कि अगले साल तक पार्टी का नेतृत्व राहुल गांधी संभालेंगे और इसी को लेकर विवाद चल रहा है। कांग्रेस के कई नेता नहीं चाहते हैं कि राहुल को कमान सौंपी जाए वहीं कई समर्थन में भी खड़े हैं। लेकिन फोतेदार ने जो दावा किया है उसको लेकर अंदर ही अंदर बहस छिड़ गई है कि क्या‍ राहुल की जगह प्रियंका गांधी को पार्टी का नेतृत्व दिया जाए। फोतेदार के मुताबिक राजीव गांधी भी इंदिरा गांधी की बात से सहमत थे कि प्रियंका में नेतृत्व करने की क्षमता है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक फोतेदार ने लंबे समय तक इंदिरा गांधी के साथ काम किया था। अगर उन्होने कुछ लिखा है तो जरूर इसमें कुछ न कुछ सच्चाई होगी। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता मानते हैं कि जानबूझकर कुछ बातें लिखी गई हैं ताकि राहुल गांधी की ताजपोशी रूक जाए।  

 दरअसल पार्टी के कई वरिष्ठ नेता नहीं चाहते कि राहुल गांधी को नेतृत्व सौंपा जाए। राहुल के विरोधी एक नेता के मुताबिक कांग्रेस उपाध्यक्ष ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जिससे पार्टी का बड़ा नुकसान हो सकता है। वहीं राहुल के समर्थक नेताओं का कहना है कि नेतृत्व परिवर्तन होना चाहिए तभी पार्टी की कार्यशैली बदलेगी। जो भी हो लेकिन फोतेदार के खुलासे ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच एक नई बहस को जन्म दे दिया है। कुछ समय से प्रियंका लाओ, कांग्रेस बचाओं के नारे नहीं गूंज रहे थे। पार्टी के कई नेता धीरे-धीरे राहुल गांधी के नेतृत्व की स्वीकारोक्ति की ओर बढ़ रहे थे। लेकिन अब इस बात की आशंका बढ़ गई है कि कहीं फिर राहुल के विरोध में स्वर न उठने लगे। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक किसी प्रकार के विरोध से बचने के लिए पार्टी तय समय पहले ही राहुल गांधी की ताजपोशी करके किसी प्रकार के झंझट से छुटकारा पाना चाहती है।

बताया जा रहा है कि सोनिया गांधी और पार्टी के कई नेताओं को संरक्षक और सलाहकार की भूमिका दे दी जाएगी। लेकिन पार्टी के कई नेता आहत भी है कि उनकी सियासत खत्म हो जाएगी। इस बात का संकेत पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश दे चुके हैं। कुछ दिन पहले रमेश ने कहा था कि साठ साल से अधिक उम्र वाले पार्टी नेताओं की छुट्टी हो जानी चाहिए। रमेश को राहुल का नजदीकी माना जाता है। रमेश के इस बयान के बाद से ही पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल की ताजपोशी रोकने की रणनीति बना रहे थे। बताया जा रहा है कि फोतेदार अपनी किताब को अभी नहीं लाना चाहते थे कि कहीं से उन पर दबाव था कि जल्द की किताब के जरिए कुछ खुलासे करे। सूत्रों का कहना है कि किताब के विमोचन की जो तिथि निर्धारित की गई थी उसमें भी बदलाव किया गया है। कारण साफ है कि कहीं न कहीं दबाव है तो कहीं बेचारगी भी है। 

कांग्रेस में राहुल की तोजपोशी को लेकर मंथन चल रहा है। पार्टी नेताओं को इस बात का निर्देश भी दिया गया है कि किताब के संदर्भ में कुछ न कहें। इसलिए पार्टी का कोई भी सदस्य बोलने को तैयार नहीं है। इस बात की भी चर्चा है कि विमोचन समारोह में कौन लोग मौजूद रहेंगे। फोतेदार फिलहाल कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य हैं और पार्टी को सुझाव भी देते हैं। आउटलुक से बातचीत में फोतेदार ने कहा कि जब भी उनसे राय मांगी जाती है वह देते हैं। फोतेदार के निशाने पर राहुल गांधी हैं जिसका जिक्र उन्होने अपनी किताब में किया है। सूत्रों का कहना है कि पार्टी के कई पुराने नेताओं ने राहुल के कमान संभालने पर पार्टी टूट जाने का खतरा दिखाया था। लेकिन आज नहीं तो कल नेतृत्व सौंपना ही इसलिए इस खतरे से निपटने के लिए पार्टी तैयार दिख रही है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक सोनिया गांधी ने साफ कर दिया है कि लोकसभा चुनाव पार्टी एक तरह से राहुल के नेतृत्व में लड़ी थी और बुरी तरह से हार गई। उसके बाद राज्यों में भी चुनाव हार चुकी है, तब भी ज्यादातर कांग्रेस के नेता राहुल के साथ खड़े हैं। राहुल को रोकने के लिए एक दांव और चल रहा है कि उनके नाम पर सहयोगी पार्टियां नहीं आएंगी। लेकिन नीतीश कुमार का हवाला देकर इस आशंका को भी खारिज कर दिया गया।

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