Advertisement

कई मोर्चों पर संकट में कांग्रेस? पंजाब घमासान के बीच अब बारी पायलट के ‘उड़ान’ की! जानें- राजस्थान में क्या होने वाला है

भले ही पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा हो लेकिन, इसकी आंच अब...
कई मोर्चों पर संकट में कांग्रेस? पंजाब घमासान के बीच अब बारी पायलट के ‘उड़ान’ की! जानें- राजस्थान में क्या होने वाला है

भले ही पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा हो लेकिन, इसकी आंच अब राजस्थान कांग्रेस के भीतर लहरने लगी है। एक साल से अधिक समय से भीतर-ही-भीतर सही वक्त का इंतजार करने वाले पायलट खेमा को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ खुराक मिल गया है। यही वजह है कि राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट अब अपने आलाकमान को खुद की अहमियत को बताने और कमान में परिवर्तन का बिगुल बजाने के लिए सितंबर के दूसरे सप्ताह बाद से दो बार दिल्ली का दौरा कर चुके हैं। पहली मुलाकात 17 सितंबर को हुई है। गौरतलब है कि इसी दिन राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने भी दिल्ली में आलाकमान से मुलाकात की है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी लगातार पायलट को मनाने में लगे हुए हैं। हालांकि, राज्य के नेता कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं। आउटलुक से बातचीत में पायलट खेमे के कट्टर समर्थक और गहलोत सरकार पर लगातार हमला बोलने, भ्रष्टाचार का आरोप लगाने वाले रमेश मीणा सिर्फ इतना कहते हैं, “पायलट को लेकर फैसला आलाकमान को करना है। चुनाव में अभी वक्त है। सीएम गहलोत को लेकर पार्टी की क्या रणनीति है, ये वही जानें।“ जबकि कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता सत्येंद्र राघव कहते हैं, "पंजाब और राजस्थान, दोनों राज्य की अलग-अलग परिस्थिति है। पायलट युवा नेता हैं जबकि गहलोत अनुभवी हैं।" बदलाव की संभावना को लेकर राघव कहते हैं, "अभी हमें इंतजार करना होगा। फैसला आलाकमान को लेना है।"

आलाकमान द्वारा कैप्टन अमरिंदर का इस्तीफा लेने के बाद से पायलट खेमा को ये विश्वास हो चला है कि अब पार्टी सीएम गहलोत के खिलाफ रणनीति बना सकती है। दरअसल, कैप्टन को हटाकर सीधे तौर पर शीर्ष नेतृत्व ने संदेश दिया है कि कुर्सी किसी की भी जा सकती है। लेकिन, राजनीतिक जानकार बताते हैं कि पायलट खेमा जितना मजबूत है उतना ही गहलोत खेमा भी। यहां के विधायक खुलकर आमने-सामने आने से परहेज नहीं करते हैं। आउटलुक से वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मीप्रसाद पंत कहते हैं, "सीएम गहलोत का लंबा अनुभव है। कलह से बचा जाए, इसीलिए मंत्रिमंडल विस्तार को कई महीनों से टाला जा रहा हैं। पार्टी किसी भी सूरते हाल में गहलोत को नाराज नहीं करेगी। नुकसान उसे पता है।"

लेकिन, राजनीतिक जानकार मानते हैं कि असली ‘खेल’ उस वक्त से शुरू होगा जब मंत्रिमंडल विस्तार में किसे जगह मिलती है और किसे नहीं, ये स्पष्ट हो जाएगा। दरअसल, जून के महीने में 6 बार विधायक रहे और पूर्ववर्ती गहलोत सरकार में राजस्व मंत्री की जिम्मेदारी निभा चुके विधायक हेमाराम चौधरी ने इस्तीफा दे दिया था। चौधरी ने अपने विधानसभा क्षेत्र गुड़ामलानी में विकास कार्यों की अनदेखी का आरोप लगाया था। विधानसभा अध्यक्ष को इस्तीफा भेजने के बाद चौधरी ने कहा था, ‘‘कुछ पीड़ा थी। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ही मामला सुलझा सकते हैं।’’ राजनीतिक जानकार इसे बहाने के तौर पर देख रहे हैं। पिछले साल जब कोरोना संकट के बीच सचिन पायलट गुट के 18 विधायकों ने दिल्ली के पास हरियाणा में डेरा डाल दिया था तो उसमें हेमाराम चौधरी भी शामिल थे।

पायलट की तरफ से जिस तरह के संकेत मिल रहे हैं उससे स्पष्ट हो रहा है कि वो अब राज्य का नेतृत्व करना चाह रहे हैं। दिल्ली दौरा के दौरान पार्टी ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीसीसी) का अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया है, जिसे वो खारिज कर चुके हैं। सचिन पायलट का कहना है कि वो इस पद पर काम कर चुके हैं। हालांकि, प्रदेश प्रवक्ता राघव कहते हैं, "ये रूटीन दौरा था। इसे बदलाव से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए।" लेकिन, पिछले साल से ही पायलट खेमा गहलोत पर हावी हैं। 2020 में बगावती तेवर धारण करने के बाद सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री पद से हटा दिया था।

कुछ महीने बाद दो सीटें, बल्लभनगर और धरियावद विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव होने हैं। वहीं, गहलोत के नेतृत्व में तीन सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में दो पर पार्टी ने जीत दर्ज की है। इससे गहलोत खेमा भले ही खुश है लेकिन,पायलट खेमा नाखुश है। क्योंकि, गहलोत असफल होते तो एक और मौका पायलट खेमा को मिल सकता था।

आने वाले वक्त में गहलोत-पायलट के बीच अपने वर्चस्व को लेकर दंगल जारी रहने वाला है। पायलट समर्थकों ने मांग कर रखी है कि पार्टी अगला चुनाव सचिन पायलट के नेतृत्व में लड़े। लेकिन, आलाकमान मंथन करने में जुटा है। वहीं, केंद्रीय भूपेंद्र यादव के “बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के नेतृत्व में अगला विधानसभा चुनाव लड़ने के” ऐलान के बाद से वसुंधरा गुट भी पार्टी के खिलाफ सक्रिय हो चुका है। समर्थकों का मानना है कि राजे के बिना पार्टी का राज्य में कोई जनाधार नहीं है। लेकिन, भाजपा अब नए चेहरे को जगह देने के संकेत दे रही है। अर्थात... संकट दोनों दलों के वरिष्ठ नेता, गहलोत और वसुंधरा राजे पर है?

 

 

 

 

Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad