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महाराष्ट्र में डबल इंजन नहीं दोहरा पाया 2014 का प्रदर्शन, जानें कहां चूकी भाजपा

महाराष्ट्र चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने अहमद नगर में मुझसे कहा था कि...
महाराष्ट्र में डबल इंजन नहीं दोहरा पाया 2014 का प्रदर्शन, जानें कहां चूकी भाजपा

महाराष्ट्र चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने अहमद नगर में मुझसे कहा था कि केंद्रीय नेतृत्व ने शिवसेना से गठबंधन करके गलत फैसला किया है। उनका कहना था कि शिवसेना को खत्म करने का सही मौका है। लेकिन चुनाव परिणामों से साफ है कि भाजपा नेता जमीनी हकीकत से दूर थे। अगर भाजपा, शिवसेना का गठबंधन नहीं होता तो शायद चुनाव परिणाम हरियाणा जैसे हो सकते थे। ऐसा इसलिए है क्योंकि भाजपा ने 2014 में बिना शिवसेना के साथ गठबंधन किए 122 सीटों पर जीत हासिल की थी। ऐसे में उसे उम्मीद थी कि गठबंधन के बाद वह अकेले दम पर बहुमत का भी आंकड़ा छू सकती है। लेकिन रूझानों के अनुसार वह 100 पर सिमटती नजर आ रही है। यानी उसे करीब 22-25 सीटों का नुकसान हो रहा है। ऐसा ही हाल शिवसेना का भी होता दिख रहा है। पार्टी को जहां 2014 में 63 सीटें मिली थी उसे भी 56-57 सीट मिलने का ही अनुमान है। कुल मिलाकर भाजपा-शिवसेना गठबंधन सरकार तो बना लेगा लेकिन जैसा वह चुनाव प्रचार के दौरान दो तिहाई बहुमत की बात कर रहे थे। उसे वह काफी दूर रह गए हैं। साफ है कि स्थानीय स्तर पर सरकार के खिलाफ नाराजगी थी। जिसका पूरी तरह से विपक्ष फायदा नहीं उठा सका।

ग्रामीण क्षेत्र में भाजपा-शिवसेना को नुकसान

देवेंद्र फणनवीस सरकार के पिछले पांच साल में कार्यकाल में सबसे ज्यादा संकट की स्थिति में ग्रामीण इलाका ही रहा है। राज्य का मराठवाड़ा क्षेत्र जो भयंकर सूखे से त्रस्त था, वहीं विदर्भ और मुंबई जैसे क्षेत्र बाढ़ से परेशान है। पूरी रिपोर्टिंग के दौरान मुझे सबसे ज्यादा किसान ही नाराज नजर आए। जहां कई किसानों को प्रधानमंत्री किसान योजना के तहत सालाना मिलने वाली 6000 रुपये की राशि नहीं मिली थी। वहीं किसानों की एक बड़ी समस्या फसल के उचित दाम नहीं मिलना भी रहा। प्याज का संकट एक बड़ा मुद्दा राज्य के किसानों का रहा है। रूझानों के अनुसार इस बार राज्य की 132 ग्रामीण सीटों में से बीजेपी केवल 39 सीट जीतती दिखाई दे रही है। जबकि पिछली बार उसे 55 सीटें मिली थी। जबकि कांग्रेस 25 के मुकाबले 26 तो एनसीपी 28 के मुकाबले 31 सीटें जीत रही है।

भाजपा की रणनीति में राष्ट्रवाद हावी

भारतीय जनता पार्टी के पूरे चुनाव प्रचार में राष्ट्रवाद और धारा 370 जैसे मुद्दे हावी थे। भाजपा वरिष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे की विरासत संभाल रही उनकी बेटी पंकजा मुंडे अपने चचेरे भाई धनंजय मुंडे से चुनाव हार गईं। जबकि उनके चुनाव प्रचार के लिए खुद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह बीड़ पहुंचे थे। जहां उनका जोर धारा 370 और पाकिस्तान पर ज्यादा रहा था। ऐसा ही हाल स्थानीय स्तर पर प्रत्याशियों का भी था। उन्हें उम्मीद थी कि राष्ट्रवाद और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दे उन्हें आसानी से जिता देंगे। हालांकि जमीनी स्तर पर लोग सड़क, पानी की किल्लत, बेरोजगारी, गिरते बिजनेस जैसे मूलभूत मुद्दों से परेशान दिखे।

भाजपा से ज्यादा शिवसेना फायदे में

भाजपा-शिवसेना ने भले ही मिलकर 2014 में सरकार बनाई थी। लेकिन पूरे पांच साल उनके रिश्ते विपक्षी दलों से कम नहीं रहे हैं। इसीलिए 2019 के चुनावों के पहले मुख्यमंत्री पद को लेकर समझौता होने में देरी हुई। अब भले ही शिवसेना की सीटें 2014 के मुकाबले घट गई हैं। लेकिन वह अब भाजपा से मोल-तोल करने में 2014 से ज्यादा बेहतर स्थिति में है। ऐसा इसलिए है कि भाजपा 2014 के 122 सीटों का भी आकंड़ा नहीं छू पाई है। ऐसे में उसकी विधानसभा में 145 के बहुमत का आंकड़ा बनाए रखने के लिए शिवसेना पर निर्भरता ज्यादा बढ़ गई है। रूझानों की स्थिति स्पष्ट होने के बाद  शिवसेना के बयान से भी आगे की स्थिति साफ होती नजर आ रही है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा है कि लोकसभा चुनावों के पहले जो 50-50 का फॉर्मूला तय हुआ था, उसी आधार पर सरकार बनेगी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री पद के लिए बातचीत होनी चाहिए और तब निर्णय होना चाहिए कि महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री कौन बनेगा। हालांकि, महाराष्ट्र के निवर्तमान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना प्रमुख के बयान को बहुत अधिक तवज्जो नहीं देते हुए कहा कि मतों की गिनती का काम शाम तक पूरा हो पाएगा। उसके बाद बैठक होगी, जिसमें सरकार गठन की रूपरेखा तय होगी।

शरद पवार ने फिर किया साबित

पूरे चुनाव प्रचार में विपक्ष का अगर कोई चेहरा था तो वह शरद पवार थे। राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके 78 वर्षीय शरद पवार जहां अपने बागी नेताओं से परेशान रहे। वहीं ठीक चुनाव के पहले उनके ऊपर ईडी की भी तलवार लटकी। लेकिन रूझानों से साफ है कि उनकी पार्टी को 10-14 सीटों का फायदा होता नजर आ रहा है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 2014 के 41 सीटों के मुकाबले 54 सीटें मिल रही हैं। जबकि उनके सहारे पूरा चुनाव लड़ी कांग्रेस को 42 के मुकाबले 45 सीटें मिल सकती है। रूझानों के बाद कहा कि जनता ने भाजपा के 220 प्लस के दावे को नकार दिया है। लोग कुछ भी कहते रहे, जनता ने अपने मन की बात बता दी है। उन्होंने कहा कि सत्ता पक्ष ने सारे हथकंडे अपनाए। जिससे विपक्ष कमजोर हो जाए। इन परिस्थितियों में भी हमने अच्छा प्रदर्शन किया है।

भाजपा के लिए सबक

रूझानों से साफ है कि भाजपा के लिए महाराष्ट्र के चुनाव उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे। भले ही वह सरकार बनाने जा रही है, लेकिन 2014 जैसी आरामदायक स्थिति उसके लिए इस बार नहीं होने वाली है। ऐसे में उसे यह भी समझना होगा कि कमजोर होती अर्थव्यवस्था का असर अब आम आदमी पर सीधे तौर पर होने लगा है। ऐसे में राष्ट्रवाद जैसे मुद्दे हमेशा उम्मीद के अनुसार परिणाम नहीं दिला पाएंगे।

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