Advertisement

केजरीवाल से जंग की फिर जंग

दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा यह फैसला दिए जाने के बाद कि उपराज्यपाल ही दिल्ली में असली शासक हैं, नजीब जंग लगातार ऐसे फैसले ले रहे हैं जो दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को भड़का दे। मंगलवार को भी उन्होंने ऐसे फैसले लिए। पहले तो उन्होंने दिल्ली सरकार में शीर्ष स्तर पर अधिकारियों के तबादले कर दिए और उसके बाद आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार ने अब तक उपराज्यपाल की अनुमति के बिना जितने भी फैसले लिए हैं, उनकी जांच के लिए समिति गठित कर दिया।
केजरीवाल से जंग की फिर जंग

पूर्व नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) वीके शुंगलू की अध्यक्षता में गठित इस समिति में पूर्व चुनाव आयुक्त एन. गोपाल स्वामी और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) प्रदीप कुमार शामिल हैं। यह तीन सदस्यीय समिति छह हफ्ते में रिपोर्ट देगी।

गौरतलब है कि उपराज्यपाल और सरकार के बीच चल रही अधिकारों की लड़ाई में दिल्ली हाई कोर्ट ने उपराज्यपाल को प्रशासनिक प्रमुख बताया था। इसके बाद उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार से फैसलों की फाइलें मंगवाई थी। अभी तक दिल्ली सरकार से प्राप्त 400 फाइलों की जांच यह तीन सदस्यीय कमेटी करेगी। समिति आप सरकार के ऐसे फैसलों की भी जांच करेगी, जिनमें अनियमितताओं की शिकायतें आई थीं। दिल्ली सरकार के अधिकारियों के खिलाफ सिविल और आपराधिक मामलों की भी जांच करेगी।

समिति को दिल्ली सरकार में अधिकारियों की नियुक्ति, तबादले, नियमों की अनदेखी करके शुरू की गई योजनाओं आदि से संबंधित फैसलों की फाइलों की जांच का जिम्मा भी दिया गया है। गौरतलब है कि मंगलवार को ही नजीब जंग ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अनुरोध को दरकिनार करते हुए तीन अधिकारियों का तबादला कर उपराज्यपाल कार्यालय में रिपोर्ट करने को कहा है।

गौरतलब है कि वीके शुंगलू के नेतृत्व में ही वर्ष 2010 में मनमोहन सिंह सरकार ने राष्ट्रमंडल खेल घोटाले की जांच के लिए उच्चस्तरीय समिति गठित की थी। दूसरी ओर पूर्व आईएएस एन. गोपालस्वामी को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने फरवरी, 2004 में चुनाव आयुक्त नियुक्त किया था। वे गुजरात कैडर के अधिकारी रहे हैं। इस समिति के तीसरे अधिकारी प्रदीप कुमार देश के पूर्व मुख्य सतर्कता अधिकारी रहे हैं। उन्हें मनमोहन सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2011 में मुख्य सतर्कता अधिकारी नियुक्त किया गया था। इन तीनों ही अधिकारियों की निष्पक्षता संदेह से परे समझी जाती है। गोपालस्वामी ने तो वर्ष 2009 में तत्कालीन चुनाव आयुक्त नवीन चावला को पद से हटाने की सिफारिश तक राष्ट्रपति से कर दी थी। चावला पर आरोप था कि चुनाव आयोग में वह निष्पक्ष नहीं हैं और उस समय की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस के साथ उनकी नजदीकी है। हालांकि गोपाल स्वामी की सिफारिश को मनमोहन सरकार ने ठुकरा दिया था और चावला मुख्य चुनाव अधिकारी बन गए थे।

Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad