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इलेक्टोरल बांड स्कीम पर रोक नहीं, सुप्रीम कोर्ट 10 अप्रैल को ‌फिर करेगा सुनवाई

 सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड स्कीम के संचालन पर अंतरिम रोक लगाने की मांग खारिज कर दी है। हालांकि...
इलेक्टोरल बांड स्कीम पर रोक नहीं, सुप्रीम कोर्ट 10 अप्रैल को ‌फिर करेगा सुनवाई

 सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड स्कीम के संचालन पर अंतरिम रोक लगाने की मांग खारिज कर दी है। हालांकि वह इस मामले की अगली सुनवाई 10 अप्रैल को करेगा।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पीठ ने कहा कि इस मामले में विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है, इसलिए इस पर सुनवाई 10 अप्रैल को होगी।

95 फीसदी बांड सत्ताधारी दल को मिलने का आरोप

प्रमुख अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से अदालत में पेश होकर आरोप लगाया कि राजनीतिक दलों को हजारों करोड़ रुपये बेनामी तौर पर दिए जा रहे हैं। 95 फीसदी इलोक्टोरल बांड एक ही सत्ताधारी पार्टी को मिले हैं। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोबाल ने केंद्र सरकार की ओर से कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग में काले धन का इस्तेमाल रोकने के लिए इलेक्टोरल बांड स्कीम शुरू की गई है। उन्होंने कहा कि भूषण एक चुनावी भाषण के हवाले से कह रहे हैं कि 95 फीसदी इलेक्टोरल बांड सत्ताधारी पार्टी को दिए गए।

जनवरी 2018 में शुरू हुई थी इलेक्टोरल बांड स्कीम

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि इस समय चुनाव हो रहे हैं। हम इस पर सुनवाई 10 अप्रैल को करेंगे। अदालत में दायर एडीआर के आवेदन में इलेक्टोरल बांड स्कीम 2018 पर रोक लगाने की मांग की गई थी। केंद्र सरकार ने इसकी अधिसूचना पिछले साल जनवरी में जारी की थी। भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने पिछले बजट में इलेक्टोरल बांड की घोषणा की थी। उसका दावा था कि इस स्कीम से राजनीतिक फंडिंग में काले धन का उपयोग बंद होगा और फंडिंग को स्वच्छ बनाया जा सकेगा।

चंदा देने वालों की पहचान से मतदाता अनभिज्ञ

इलेक्टोरल बांड स्कीम में राजनीतिक पार्टी को चंदा देने का इच्छुक व्यक्ति या संगठन बैंक से बांड का खरीद सकता है। इसके बाद वह बांड उस पार्टी को सौंप देगा, जिसे वह चंदा देना चाहता है। पार्टी बैंक में बांड जमा करेगी तो वह रकम उसके खाते में जमा कर दी जाएगी। बांड खरीदने वाले को बैंक को अपनी पहचान देनी होती है। वह चंदा देने में काले धन का भी इस्तेमाल नहीं कर सकता है, क्योंकि उसे अपने बैंक खाते में जमा पैसे से ही बांड मिलता है। लेकिन इस मामले में आरोप लगाए जा रहे हैं कि बांड खरीदने वाले यानी चंदा देने वाले व्यक्ति और संगठनों की पहचान न तो चुनाव आयोग को दी जा रही है और न ही सार्वजनिक की जा रही है। इसलिए मतदाता भी इसकी जानकारी पाने से वंचित रह जाते हैं।

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