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उत्तराखंड: समयसीमा खत्म, अब फैसला विधानसभा अध्यक्ष करेंगे

उत्तराखंड की हरीश रावत सरकार के बागी नौ कांग्रेसी विधायकों को राज्य विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल द्वारा विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित करने के लिए जारी कारण बताओ नोटिस का जवाब दाखिल करने की समयसीमा के आज शाम समाप्त हो जाने के बाद सभी निगाहें विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय पर टिक गई हैं।
उत्तराखंड: समयसीमा खत्म, अब फैसला विधानसभा अध्यक्ष करेंगे

प्रदेश में पिछले एक सप्ताह से चल रहे सियासी संकट के मद्देनजर रावत सरकार को 28 मार्च को विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने की चुनौती से पहले अध्यक्ष के इन बागी विधायकों की सदस्यता पर फैसले को अहम माना जा रहा है।

अध्यक्ष कुंजवाल ने संसदीय कार्यमंत्री और कांग्रेस की मुख्य सचेतक इंदिरा हृदयेश द्वारा बागी कांग्रेस विधायकों को दल-बदल कानून के तहत अयोग्य घोषित करने की याचिका पर कार्रवाई करते हुए 19 मार्च को नोटिस जारी किए थे। गौरतलब है कि 18 मार्च को सदन में बजट पर मत विभाजन की मांग को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा, पूर्व कृषि मंत्री हरक सिंह रावत सहित नौ कांग्रेस विधायकों ने भाजपा का समर्थन किया था जिसके बाद प्रदेश में सियासी संकट पैदा हो गया। इससे पहले, अध्यक्ष कुंजवाल द्वारा जवाब दाखिल करने के लिए समयसीमा बढाये जाने से इंकार करने के बाद बहुगुणा के करीबी और नरेंद्र नगर से विधायक सुबोध उनियाल बागी विधायकों की ओर से अपना जवाब दाखिल करने के लिए अपने वकीलों के साथ विधानसभा पहुंचे और थोड़ी देर अध्यक्ष के कमरे में रहने के बाद वहां से निकल गए।

बाद में पूर्व मुख्यमंत्री बहुगुणा ने आरोप लगाया कि अध्यक्ष के सामने बागी विधायकों के वकीलों को अपने पक्ष में बहस तक नहीं करने दी गयी और वह (विधानसभा अध्यक्ष) मुख्यमंत्री हरीश रावत के इशारे पर विधायकों को सदस्यता से अयोग्य घोषित करने पर आमादा हैं। बहुगुणा ने कहा, यहां तो वही बात हो रही है कि खाता न बही, जो हरीश रावत कहें, वही सही। उनियाल से पहले मुख्यमंत्री रावत और संसदीय कार्य मंत्री इंदिरा हृदयेश भी अध्यक्ष कुंजवाल के निर्देश पर विधानसभा पहुंचे और अपना पक्ष रखा।

बाद में, संवाददाताओं से मुख्यमंत्री रावत ने कहा, 18 मार्च को सदन में कांग्रेस के नौ सदस्यों के आचरण से लगता है कि उन्होंने स्वेच्छा से कांग्रेस की सदस्यता छोड़ी है और इस संबंध में हमारे दल की मुख्य सचेतक इंदिरा जी द्वारा अध्यक्ष को दी गई याचिका का मैंने समर्थन किया है और उनके द्वारा मांगे गए दस्तावेजों की कापी दी है। आगामी सोमवार को होने वाले शक्ति परीक्षण की चुनौती से निपटने के लिए कांग्रेस की सारी आशाएं अध्यक्ष कुंजवाल के नौ बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के कदम पर टिकी हुई है जिससे सदन की प्रभावी क्षमता घटकर 61 रह जाए और बहुमत का आंकड़ा भी कम हो कर 31 पर आ जाए।

सत्तर सदस्यीय उत्तराखंड विधानसभा में सत्ताधारी कांग्रेस के नौ विधायकों के बागी होकर भाजपा के साथ खडे हो जाने के बाद अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के अलावा उसके पास अपने 26 विधायक हैं जबकि हरीश रावत सरकार में शामिल प्रगतिशील लोकतांत्रिक मोर्चा पीडीएफ के छह सदस्यों के समर्थन को मिलाकर उसके पक्ष में कुल 32 विधायक हैं।

दूसरी तरफ भाजपा के पास 28 विधायक हैं जिनमें से उसके घनसाली से विधायक भीमलाल आर्य की वफादारी पर फिलहाल यकीन नहीं किया जा सकता। कमल के निशान पर जीतने के बावजूद, आर्य अपनी पार्टी के विरोध में और रावत सरकार की तारीफ करने में कभी पीछे नहीं रहे जिसके चलते वह भाजपा से निलंबन झेल रहे हैं। भाजपा अब तक अपने पक्ष में अपने 27 और नौ बागी विधायकों सहित कुल 35 विधायकों के समर्थन का दावा कर रही थी लेकिन उत्तराखंड उच्च न्यायालय के ताजा फैसले के मद्देनजर उसके संख्या बल के खेल में कांग्रेस से पीछे रहने की संभावनाएं बनती नजर आ रही हैं।

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