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आसान नहीं है चंडीगढ़ में भाजपा के लिए इस बार का चुनाव

चंडीगढ़ लोकसभा सीट पर इस बार रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है। पिछली बार भाजपा उम्मीदवार किरण खेर ने...
आसान नहीं है चंडीगढ़ में भाजपा के लिए इस बार का चुनाव

चंडीगढ़ लोकसभा सीट पर इस बार रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है। पिछली बार भाजपा उम्मीदवार किरण खेर ने कांग्रेस के दिग्गज नेता पवन बंसल को हराया था लेकिन इस बार खेर के लिए राह आसान नजर नहीं आ रही। चुनाव मैदान में किरण को अपने विरोधी कांग्रेस उम्मीदवार से तो टक्कर लेनी ही पड़ रही है, साथ ही उन्हें पार्टी के भीतर भी विरोधी गुट का सामना करना पड़ रहा है।

 हालांकि भाजपा ने अपने आला नेताओं को एक्टिव करके भीतरघात रोकने की कोशिश शुरू कर दी है। खेर के नाम को लेकर इस बार कुछ विवाद भी रहा। भाजपा का एक धड़ा उन्हें टिकट देने के पक्ष में नहीं था। टिकट मिलने के बाद यह धड़ा चुनाव प्रचार में भी ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहा है। इस सीट पर तगड़ी टक्कर की वजह यही है कि कांग्रेस ने पवन बंसल पर फिर से भरोसा जताया है। उन्हें मजबूत उम्मीदवार माना जाता है। वह इस सीट पर 4 बार सांसद रह चुके हैं। हालांकि पिछली बार उन्हें खेर के हाथों हार झेलनी पड़ी थी लेकिन उस वक्त देशभर में मोदी लहर भी चल रही थी और आम आदमी पार्टी भी मजबूत थी।

इस बार समीकरण बदले:

इस बार हालात बदले हुए हैं। आम आदमी पार्टी ने हरमोहन को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन पहले जैसा जलवा कायम नहीं रह सका है। ऐसे में बंसल मजबूती से चुनाव मैदान में हैं और खेर पर चंडीगढ़ को पीछे ले जाने के आरोप लग रहे हैं। खेर अपने सांसद निधि फंड का इस्तेमाल करने से लेकर केंद्र सरकार के कामकाज और राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही हैं जबकि बंसल उन्हें स्थानीय मुद्दों पर लगातार घेर रहे हैं। खेर लगातार कह रही हैं कि उन्होंने लोकसभा में जनता की आवाज बनकर काम किया है और चंडीगढ़ को स्मार्ट सिटी बनाने समेत शहर को संवारने का कार्य किया है

गुल पनाग ने हासिल किए थे 24 फीसदी वोट:

पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार गुल पनाग ने ही लगभग 24 फीसदी वोट हासिल कर लिए थे जबकि पवन बंसल को 27 फीसदी वोटों से ही संतोष करना पड़ा था। इस तरह से कांग्रेस और ‘आप’ का वोट बंटने का फायदा किरण खेर को मिला था व वह 42 फीसदी वोट लेकर भी बंसल को 70 हजार के अंतर से हराने में कामयाब हो गई थीं। यहां 70 फीसदी वोटर शहरी हैं जबकि 20 फीसदी स्लम बस्तियों में रहने वाले और 10 फीसदी देहात में रहने वाले हैं। शहरी सीट होने की वजह से यहां न तो जात-पात मुद्दा बनता है और न ही धर्म। 

मोदी लहर का लाभ मिला था पिछली बार:

पिछली बार देश भर में मोदी लहर थी, जिसका सीधा लाभ किरण को मिला था लेकिन इस बार ऐसा नहीं है लेकिन खेर को उम्मीद है कि इस बार भी उनका बेड़ा पार हो जाएगा। वहीं 4 बार इसी सीट से सांसद रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन कुमार बंसल भी बेहद आश्वस्त हैं कि जनता उन्हें 5वीं बार सिर-आंखों पर बिठा लेगी। वह कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने यहां से हरमोहन धवन को टिकट दिया है। 2014 में धवन ने किरण खेर का समर्थन किया था। ऐसे में इस बार माना जा रहा है कि वह भाजपा के वोट काट सकते हैं। किरण खेर अपने प्रचार अभियान के दौरान लगातार मोदी के नाम पर वोट मांगती दिखी हैं। पहले तो उनके टिकट कटने का खतरा था क्योंकि पार्टी के भीतर ही उन्हें बाहरी बताया गया था। ऐसी खबरें थीं कि पति अनुपम खेर के दखल के बाद किरण को यहां से टिकट मिला। चंडीगढ़ में पार्टी 2 धड़ों में बंटी नजर आती है। चंडीगढ़ भाजपा प्रमुख संजय टंडन के समर्थक उन्हें टिकट की मांग कर रहे थे। हालांकि भाजपा ने किसी तरह की फूट से साफ इंकार किया है, यदि पार्टी की यह गुटबाजी थोड़ी-सी भी हावी हुई तो यह किरण की हार की वजह बन सकती है।

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