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इलाहाबादी रंग में चुनावी हाल

फूलपुर के बहरिया ब्लॉक का सरायगनी गांव...आबादी करीब पांच हजार की...यहां हिंदू, मुस्लिम, अगड़े, पिछड़े,...
इलाहाबादी रंग में चुनावी हाल

फूलपुर के बहरिया ब्लॉक का सरायगनी गांव...आबादी करीब पांच हजार की...यहां हिंदू, मुस्लिम, अगड़े, पिछड़े, दलित सभी रहते हैं...आपसी प्रेम की कोई कमी नहीं और नफरतों के भटकने का दायरा बिल्कुल भी नहीं ...आज पुराने बरगद के पेड़ के नीचे चौपाल लगी है...बच्चे, जवान और बुज़ुर्ग अपना-अपना आसन संभाले बैठे हैं...दिल्ली से दो सेफ़ोलॉजिस्ट पूर्णेंदु शुक्ल और विमल कुमार गांव के चुनावी माहौल को भांपने पहुंचे हैं...पूर्णेंदु सबसे बुज़ुर्ग नज़र आ रहे राम अवतार से सवाल करते हैं...

पूर्णेंदु: बाबा, अबकी बार किसे वोट देने जा रहे हैं?

राम अवतार: देखा भैया...आजादी के बाद सन 50-55 में जब हम जवान रहे...तब इ सीट से पंडित जबाहर लाल नेहरू चुनाव लड़त रहेन...तीन बार लगातार उनका हम लोग जितावा (जिताया)...आठ-आठ कोस पैदर चर (चल) के हम लोग जबाहर लाल के रैली में पहुंचत रहे...बहुत सीधा मनइ (आदमी) रहें पंडित जी... उ दौर में न कउनो सुरक्षा न तामझाम...हमरे सभिन (हम सभी) से अइसा मिलत रहें, जइसे हम उनके घर के मनइ(आदमी) होई...जबाहर लाल ख़तम होए गएं...तो उनके बहिन बिजे लछमी पंडित (विजयलक्ष्मी पंडित) खड़ी भइन...हम लोग उनहूं का चुनाव जिताए के संसद भेजा...फिर भैया जीते वाले नेता बदलत गएं...कभी कांग्रेस कभी कउनो और...लेकिन हम हमेशा कांग्रेसै का बोट दिया...और अबकी बार भी पंजा बटन दबाबै...राहुल गांधी हमका बहुत नीक (अच्छे) लागत हें और प्रियंका बिटिया के तो का कहना...

राम अवतार की बात ख़त्म होने के बाद पूणेंदु के साथी विमल 45 साल के घोरहु से मुख़ातिब हैं...खिचड़ी बाल, पकी हुई दाढ़ी और कमज़ोर शरीर का घोरहु अपनी उम्र से 10 साल बड़ा दिखता है...

विमल: आप किसे वोट दे रहे हैं भैया ?

घोरहु: भैया देखा (देखो)...हम ठइरे मज़दूर...हम ना जानित सरकार-वरकार...लेकिन वोट हम देबै ‘सरकारी हाथी’ के… ओमे (उसमें) एक साहब रहें उ मर गएं...

विमल: कौन कांशीराम ?

घोरहु: हां भइया हां...और एक मइडम हैं...उनकेर(उनका) नाम है माजाबती...हम बहिन माजाबती के पार्टी का वोट देबै...सरकारी हाथी पे बटन दबाए के...

दोनों सेफ़ोलॉजिस्ट अब डॉक्टर मुबीन का रुख़ करते हैं, जो गांव के बाज़ार में छोटा सा नर्सिंग होम चलाते हैं...

पूर्णेंदु: डॉक्टर साहब, आप मौजूदा चुनाव को किस नज़र से देख रहे हैं, कौन जीत रहा है और आपका वोट किसे जाएगा?

डॉक्टर मुबीन: देखिए अभी इतनी जल्दी जीत-हार पर तो कुछ कहना ठीक नहीं होगा...इतना बड़ा देश है...कुछ राष्ट्रीय मुद्दे हैं लेकिन अलग-अलग प्रदेशों में स्थानीय मुद्दे भी चुनाव का रुख़ तय करेंगे...इतना तो तय है कि मोदी जी के लिए इस बार मैदान साल 2014 की तरह आसान नहीं है...मेरा मानना है कि जितनी मज़बूत और स्थिर सरकार उन्होंने बनाई थी, उसके मुक़ाबले मौजूदा सरकार काम-काज में बहुत पीछे रह गई...देश का किसान जो अन्नदाता है वो ख़ुश नहीं है...बाक़ी मेरी बात अगर आप पूछेंगे तो साठ के दशक में मेरे दादा कांग्रेस के विधायक रहे हैं और हम परंपरागत कांग्रेसी हैं...

यह चर्चा चल ही रही थी, तभी उधर से रम्मो बुआ गुज़रीं...रम्मो बुआ गांव के लोगों के कपड़े धोती हैं...बदले में उन्हें अनाज और पैसा मिलता है...जिससे उनका गुज़ारा होता है...

अहमद: अरे रम्मो बुआ...इ दिल्ली से साहब लोग आए हैं...पूछत हें, कि केका (किसको) वोट देबो ?

रम्मो बुआ: अब इ बुढ़ापे में का वोट देबै...देखत हो महंगाई कित्ती (कितनी) होए गई है...बीस रुपया किलो गोहूं (गेहूं) बिकात (बिक रहा) है...का खाई, का खिलाई ? इंदिरा गांधी हमार लोगन के सरकार रहीं...उनका गोली मार दिहिन...मर गईं...अब जब सरकारै का मार डउबो (डालोगे), तो फिर महंगाई तो बढ़बै करी...

रम्मो बुआ के भोलेपर पर सब ज़ोर का ठहाका लगाते हैं...दोनों सेफ़ोलॉजिस्ट भी मुस्कुरा रहे हैं...

पूणेंदु की नज़रें अब रमई पटेल पर टिकी हैं, जो पचास-पचपन साल के किसान हैं...अब तक चुपचाप सबकी बातें सुन रहे थे...शायद अपनी बारी आने के इंतज़ार में थे...

पूणेंदु: आप बताइए चाचा, किसको जिता रहे हैं इस बार...?

रमई पटेल:  देखा भैया...बात बताई साफ़...हमार (हमारा) वोट तो जाई (जाएगा) कुर्मी बिरादरी के...पिछली बार पांच कुर्मी नेता खड़े रहें...कमल से कुर्मी रहा...हाथी और साइकिल से भी पटेल उम्मीदवार रहें...लेकिन हम वोट दिये रहे लल्लू पटेल निर्दलीय के...लल्लू के आदमी हमका तीन दिन तक अंग्रेजी पिलाइन...हलवा-पूरी भी हम जमकर सूते रहे (खाए थे)…तो भैया जे खिलाई-पिलाई, उही के  (उसी को) वोट देबै...यही हमार कमाई है...नै तो जीते के बाद कौन नेता पूछत है...

रमई के चुनावी गणित को पूणेंदु और विमल बड़े चाव से सुन रहे थे, तभी गांव के दो युवा आते दिखाई दिए...दोनों ग्रेजुएशन के छात्र हैं...इलाहाबाद यूनिवसिटी से क्लास करके लौट रहे हैं...राम अवतार दोनों पत्रकारों से उनका परिचय कराते हैं...

रामअवतार:  भैया इ(यह) सुनील और राजीव हैं...गांव की शान हैं...इनको हम लोग इलाहाबाद इनवर्सिटी (यूनिवर्सिटी) में पीसीएस पढ़ने भेजे हैं...

गांव के कम पढ़े-लिखे देसी माहौल में दो पढ़े-लिखे युवाओं को देख पूणेंदु और विमल की आंखें चमकने लगती हैं...दोनों युवाओं से उनकी पसंद की पार्टी और नेता के बारे में सवाल होता है...सुनील, नरेंद्र मोदी का फैन है...और राजीव, राहुल गांधी पर जान छिड़कता है...दोनों दोस्त अपनी-अपनी पार्टी की जीत के दावे करते हुए बहस में शामिल हो जाते हैं...अब ये बहस ख़बरिया चैनलों की चुनावी बहस से कुछ कम गर्म नहीं है...

राजीव: राहुल गांधी इस देश की उम्मीद हैं...और सबसे बड़ी बात यह है, कि वो बेदाग़ हैं...

सुनील: हा हा हा...भूल जाओ कांगेस पार्टी और पुश्तैनी नेताओं को...बहुत लूट चुके देश को...जनता पिछले चुनाव में इनको नकार चुकी है...और क्या नेहरू-गांधी परिवार का इतिहास नहीं जानते हो, या फिर जानकर अनदेखा कर रहे हो ?

राजीव: मैं पढ़ता भी हूं...और दुनिया भी देख रहा हूं...तुम जिस बीजेपी की पैरवी कर रहे हो, उसकी हक़ीक़त पता है...तुम्हारी पार्टी 1992 और 2002 में की गई करतूतों की खा रही है...

सुनील: विकास पुरुष हैं मोदी, ये दुनिया जानती है और कांगेस का दामन कौन सा साफ़ है? मेरठ, भागलपुर. सन 84 के दंगों को भूल गए क्या ? और गुजरात पर उंगली मत उठाओ...उस सूबे की मेहनत का दूध और नमक पूरा देश खा रहा है...

राजीव: हमें ना सुनाओ विकास गाथा...गुजरात देश को दूध पिला रहा है, नमक खिला रहा है...इसके आगे कुछ पता है ?  नमक बनाने वाले मज़दूर उसी गुजरात में सत्तर-अस्सी रुपए की दिहाड़ी करने को मजबूर हैं...बरसात के मौसम में महीनों आंशिक बेरोज़गारी की हालत में रहते हैं...और दूध की नदियां किस सरकार के दौर से बह रही हैं, यह भी पता कर लो...

सुनील: मोदी जी के नेतृत्व में देश बदल रहा है राजीव...तुम इस सच को झुठला नहीं सकते...इसे हर कोई महसूस कर रहा है...

राजीव: बिना नोट छापे नोटबंदी...बिना तैयारी के जीएसटी...हर बड़ा फ़ैसला बिना होमवर्क के...इतनी जल्दबाज़ी क्यों हैं ? चल क्या रहा है इस सरकार के ज़ेहन में ?

सुनील: अपने पूर्वाग्रहों को किनारे रख कर देखोगे, तभी बदलाव और उसके मायने समझ में आएंगे...पुलवामा हमले के बाद मोदी जी ने पाकिस्तान को जो लतियाया है, उसे देश नहीं दुनिया देख रही है...अरे, घर में घुस कर मारा है...

सुनील की बात पूरी होने से पहले गुड्डू यादव बोल पड़े...

गुड्डू यादव: सही बोले सुनील भैया, इ बार हमार वोट साइकिल पे न जाई (जाएगा)...हम मोदी जी का वोट देबै...पाकिस्तान में घुस के मारा...

राजीव (सुनील को संबोधित करते हुए): अरे तो कौन सा बड़ा कमाल कर दिया...सरकार अपनी नाकामी भी तो देखे...इतनी भारी मात्रा में ख़तरनाक विस्फोटक लेकर आतंकी देश के अंदर पहुंच गया और 40 से ज़्यादा सीआरपीएफ़ के जांबाज़ शहीद हो गए...कौन ज़िम्मेदार है? क्या इस चूक के लिए भी कांग्रेस की पिछली सरकारों और पंडित जवाहर लाल नेहरू की दुहाई दी जाएगी?

एयर स्ट्राइक पर नाच रहे हो तो पिछला इतिहास भी पढ़ लो...नहीं पता है तो जान लो कि पाकिस्तान के दो टुकड़े कर उसे कमज़ोर करने और बांग्लादेश बनाने की इच्छाशक्ति और सामर्थ्य किस प्रधानमंत्री ने दिखाई थी...(व्यंगात्मक हंसी के साथ) इंदिरा गांधी और नरेंद्र मोदी में वही फ़र्क है जो सचिन तेंदुल्कर और धरमसेना में था...

सुनील: तुम्हारे कुतर्क और बेसिर-पैर की बातों के पीछे 2019 की तय हार को महसूस करने की छटपटाहट है...अरे मोदी जी दोबारा आ रहे हैं...उन्होंने पूरे देश के लिए काम किया है इसलिए फिर से चुनकर आएंगे...(व्यंगात्मक मुद्रा) राहुल बाबा इटली जाएंगे, मोदी जी राज करेंगे राज...

दोनों सेफ़ोलॉजिस्ट और चौपाल पर जमे लोग इस बौद्धिक बहस को सुन रहे हैं...इतने लोगों से संवाद के बीच ये पहला मौक़ा है, जब ख़बर निकालने के लिए सवाल पूछने की ज़रूरत नहीं है...बहस भी मज़ेदार है...इसमें तथ्य, व्यंग्य, वार-पलटवार, आरोप-प्रत्यारोप सब कुछ समाहित है...

गांव वालों की बात करें तो उन्हें कुछ बातें समझ में आ रही हैं, कुछ ऊपर से जा रही हैं...लेकिन यह बहस और गर्मागर्मी ज्यादातर को रास नहीं आ रही है...और इसी सब के बीच राम अवतार बोल पड़ते हैं...

राम अवतार: राजीव भैया, सुनील भैया...आप लोग इ गांव के प्यारे बच्चे हो...हम लोग आपसे बहुत आसा-उम्मीद रखित ही (रखते हैं)...नेतवन(नेताओं) के चक्कर में आप लोगन (लोग) की ऐसी लड़ाई ठीक नै ना भैया...

राजीव: नहीं बाबा...आप इसे लड़ाई ना समझें...हम और सुनील दोस्त हैं, ये तो बस विचारधारा का मतभेद है...

राजीव की बात पर सुनील मुस्कुराता है...लेकिन राम अवतार संतुष्ट नहीं हैं...

राम अवतार: देखो बेटा...इ इचारधारा-बिचारधारा हम नै जानित (हम नहीं जानते)...लेकिन हम सब मिलजुल के रही...यही मां (में) सबके भलाई है...

सुनील: बाबा आप दुखी ना हों...ये पार्टी-पार्टी की बात है...हममें और राजीव में कोई झगड़ा नहीं है...

चौपाल का माहौल अब शांत है...कोई कुछ बोलता उससे पहले राकेश यादव की साइकिल वहां पहुंचती है...साइकिल में एक बड़ा सा बाल्टा (दूध का बड़ा कंटेनर) लटका है...राकेश सबके लिए लस्सी लेकर पहुंचे हैं...सब लस्सी पी रहे हैं...पूणेंदु और विमल भी गांव के प्योर दूध की लस्सी का आनंद ले रहे हैं...उनका मंकसद भी पूरा हो चुका है...गांव के चुनावी माहौल का पूरा जायज़ा मिल गया है...अब सेफ़ोलॉजिस्ट अगले पड़ाव का रुख़ करेंगे...

 

(चुनावी फिजा का स्थानीय भाषा में वर्णन करते हुए यह लेख शोएब अहमद खान ने लिखा है)

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