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जेटली-केजरीवाल का टकराव कहां तक पहुंचेगा?

जेटली पर डीडीसीए में भ्रष्टाचार का आरोप लगा, केजरीवाल ने भाजपा को सफाई देने पर उतारा, जेटली के इस्तीफे की मांग कांग्रेस ने भी की, संसद बाधित
जेटली-केजरीवाल का टकराव कहां तक पहुंचेगा?

अब आम आदमी पार्टी और कंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के बीच आरोप-प्रत्यारोपों का दौर चल रहा है। दिल्ली सचिवालय पर सीबीआई छापे के बाद अरविंद केजरीवाल ने यह आरोप लगाया कि ये छापे अरुण जेटली को दिल्ली डिस्ट्रक्ट एंड क्रिकेट एसोसिएशन (डीडीसीए) के घोटाले में संलिप्ता की फाइल के लिए मारे गए थे। उधर भाजपा ने अरुण जेटली का बचाव करते हुए, आम आदमी पार्टी के तमाम आरोपों को पूरी तरह से बेबुनियाद बताया। भाजपा ने कहा कि चूंकि अरविंद केजरीवाल अपने सचिव राजेंद्र कुमार के घोटाले के मामले में घिर गए हैं, इसलिए इस तरह के बेबुनियाद आरोप लगा रहे है। संसद के भीतर भी इस मुद्दे पर हंगामा रहा। एक तरह से सीबीआई छापे के बाद अरविंद केजरीवाल ने इस दांव से  भाजपा को सफाई देने पर तो मजबूर कर ही दिया है।

डीडीसीए के कार्यकारी अध्यक्ष चेतन चौहान ने भी संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ये सारा मामला समाप्त हो चुका है। इसमं कोई भ्रष्टाचार नहीं है। अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग में आप पर निशाना साधते हुए लिखा कि अरविंद केजरीवाल को झूठ और मानहानि वाली बातें बोलने की आदत है। बोलने की आजादी है, लेकिन इसका मतलब झूठ बोलने की आजादी नहीं है। उधर, आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता राघव चड्डा का कहना है कि 1993 से 2013 के बीच फर्जी कंपनियां बनाकर पैसे का हेर-फेर करने का मामला है। अरुण जेटली जब डीडीसीए के अध्यक्ष थे तब  फिरोज शाह कोटला क्रिकेट स्टेडियम के पुनर्गठन में 57 करोड़ रुपये का घोटाला करने का मामला हुआ था।

इस तरह से यह नजर आ रहा है कि देश की राजधानी, दिल्ली राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच टकराव की समर भूमि बन गई है। यह लड़ाई दिनों-दिन तीखी होती जा रही है। आप से छत्तीस का आंकड़ा कांग्रेस का रहता है, लेकिन अरुण जेटली पर भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस ने आगे बढ़कर अरुण जेटली के इस्तीफे की मांग की है। कांग्रेस प्रवक्ता अजय माकन ने संयुक्त संसदीय समिति की जांच के मद्देनजर अरुण जेटली को इस्तीफा दे देना चाहिए। अगर वह ऐसा न करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन्हें बर्खास्त कर देना चाहिए।

अब सवाल यह भी है कि यह टकराव कहा तक बढ़ेगा और कहां तक जाएगा। अगर केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच रोज इसी तरह की टकरार रहेगी, तो दिल्ली सरकार का शासन इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा। दिल्ली सरकार के सामने भी अभी प्रदूषण के अलावा भी कई ऐसे मसले हैं जिन पर उसे नीतिगत हस्तक्षेप करने की जरूरत है।

 

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