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बिहार में जीत के लिए हर रणनीति

भारतीय जनता पार्टी बिहार में मिशन 185 के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां जुमलों के जरिये मुख्य‍मंत्री नीतीश कुमार और पूर्व मुख्य‍मंत्री लालू यादव पर निशाना साध रहे हैं वहीं ये जुमले विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनते जा रहे हैं। चुनाव जीतने के लिए भाजपा हर रणनीति अपना रही है। पूर्व सांसद साबिर अली के बाद चारा घोटाले के आरोपी पूर्व मंत्री आरके राणा के पुत्र अमित राणा को भी भाजपा में शामिल कर लिया गया है। इसको लेकर भाजपा के ही लोग दबे स्वरों में सवाल उठाते हैं।
बिहार में जीत के लिए हर रणनीति

एक भाजपा नेता के मुताबिक एक तरफ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में जंगलराज को लेकर निशाना साध रहे हैं तो दूसरी ओर दागियों को ही भाजपा की सदस्यता दिलाने में पार्टी पीछे नहीं हट रही है। अमित राणा राजद के कद्दावर नेता और चारा घोटाले के आरोपी आरके राणा के पुत्र हैं। कभी लालू यादव के नजदीकी माने जाने वाले राणा को भाजपा पार्टी में शामिल कराके जहां गदगद है वहीं भाजपा के कई स्थानीय नेता असंतुष्ट बताए जा रहे हैं। 

सूत्रों के मुताबिक गोपालपुर सीट से विधायक रहे राणा को भाजपा ने टिकट देने की बात कहके पार्टी में शामिल किया है। लेकिन इसी सीट से पूर्व सांसद अनिल यादव भी चुनाव लड़ना चाहते हैं। यादव पहले राजद में थे और बाद में भाजपा में शामिल हो गए। अगर इस सीट पर भाजपा राणा को उम्मी‍दवार बनाती है तो बगावत निश्चित है।

वहीं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मंगल पांडेय कहते हैं कि राणा के पार्टी में आने से मजबूती मिली है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक पूर्वी बिहार में भाजपा अपने को कमजोर मान रही है। इसलिए येन-केन-प्रकारेण पार्टी लोगों को जोडऩे का काम कर रही है। इसी कड़ी में अमित राणा को पार्टी में शामिल कराया गया है। राणा परिवार का गंगा पार के इलाके में खासा प्रभाव रहा है। आरके राणा जहां गोपालपुर से दो बार विधायक रहे वहीं खगडिय़ा सीट से लोकसभा चुनाव भी जीते।

विश्लेषकों के मुताबिक राणा परिवार भागलपुर जिले के गोपालपुर व बिहपुर और खगड़िया जिले की चारो विधानसभा सीटों पर अपना प्रभाव डाल सकते हैं। बताया जा रहा है कि भाजपा राजद और जदयू से नाराज कई और नेताओं पर डोरे डाल रही है। ऐसे में भाजपा के कई स्थानीय नेता नाराज बताए जा रहे हैं। टिकट की उम्मीं‍द लगाए कई दावेदारों ने आउटलुक से बातचीत में स्वीकार किया कि पार्टी कार्यकर्ताओं की कोई कद्र नहीं है। दूसरे दलों के नेताओं को पार्टी ज्यादा महत्व दे रही है। ऐसे में सालों से भाजपा के साथ जुड़ा कार्यकर्ता अपने को ठगा महसूस कर रहा है।


उधर सीटों के बंटवारे को लेकर राजद-जदयू और कांग्रेस के बीच समझौता हो गया है। समझौते के मुताबिक राजद और जदयू 100-100 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि कांग्रेस के खाते में 40 सीटें गई हैं। इन तीनों दलों के नेताओं ने एक स्वर में भाजपा गठबंधन को घेरने की तैयारी पूरी कर ली है इसके तहत 30 अगस्त को पटना के गांधी मैदान में स्वाभिमान रैली का आयोजन भी करने जा रही है। रैली में कांग्रेस, राजद और जदयू के अलावा समाजवादी पार्टी, इंडियन नेशनल लोकदल के नेता भी शामिल होंगे। बिहार विधानसभा में चार सीटों वाली कांग्रेस को गठबंधन में 40 सीटें मिलने से एक बात तो साफ हो गई है कि नीतीश कुमार को हर मोर्चे पर समझौता करना पड़ा है।

बिहार विधानसभा में वर्तमान में जदयू के 115 विधायक हैं लेकिन सीटें केवल 100 मिली हैं जबकि राजद के 22 विधायक हैं और 100 सीटों पर समझौता हुआ है। ऐसे में एक बात तो साफ हो गई है कि सभी दल केवल भाजपा को रोकने के हर मोर्चे पर समझौता करना चाह रहे हैं। कांग्रेस नेता सीपी जोशी का कहना है कि लोकतंत्र में सबसे बड़ा खतरा नरेंद्र मोदी हैं। इसलिए उस खतरे को रोकना सबकी जिक्वमेवारी है। गौरतलब है कि भाजपा गठबंधन के नेता यह कहते रहे हैं कि सीटों के बंटवारे को लेकर जदयू और राजद में बात बनने वाली नहीं है। लेकिन इन सब अटकलों को नजरअंदाज कर भाजपा गठबंधन से पहले ही सीटों के बंटवारे की घोषणा कर दी गई जबकि भाजपा के गठबंधन के बीच अभी भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि किसको कितनी सीटें मिलेंगी। भाजपा गठबंधन में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चो के बीच सीटों को लेकर अभी तनातनी चल रही है।

भाजपा से जुड़े एक पदाधिकारी बताते हैं कि इस समय भाजपा से जुडऩे वालों की होड़ मची हुई है इसलिए पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीटें अपने खाते में रखना चाहती है। लेकिन सूत्र बताते हैं कि लोजपा और रालोसपा 50-50 सीटों पर अड़ी हुई हैं वहीं पूर्व मुख्य‍मंत्री जीतनराम मांझी भी कम से कम 40 सीटें चाहते हैं ऐसे में भाजपा असमंजस में है कि किसको कितनी सीटें दी जाए। रोहतास जिले के एक विधानसभा सीट से भाजपा का टिकट मांग रहे एक उक्वमीदवार बताते हैं कि जितना जल्दी सीटों का बंटवारा हो जाए उतना ही पार्टी को फायदा होगा। क्यों‍कि बिहार की ज्यादातर सीटों पर भाजपा के उम्मी‍दवार टिकट पाने की उम्मी‍द में प्रचार करने में जुट गए हैं। फेसबुक और सोशल मीडिया के जरिए उनका प्रचार अभियान भी चल रहा है। सोशल वेबसाइट पर सबसे ज्यादा बिहार से भाजपा के अघोषित उक्वमीदवारों के ही प्रचार देखने को मिल रहे हैं। लेकिन पार्टी ने अपनी रणनीति का अभी खुलासा नहीं किया है।


दूसरी ओर नरेंद्र मोदी के भाषणों में 'डीएनए’ की टिप्पणी सियासी मुद्दा बन गया है। नीतीश कुमार और लालू यादव ने एक साथ नरेंद्र मोदी पर हमला बोल दिया है। नीतीश कुमार ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री अपनी टिप्पणी वापस नहीं लेते तो बिहार की 50 लाख जनता अपने डीएनए सैंपल मोदीजी को भेजेगी। राजनीतिक विश्लेषक नवल किशोर चौधरी का कहना है कि नीतीश कुमार मोदी के 'डीएनए’ वाले बयान से अधिक से अधिक राजनीतिक फायदा उठाना चाहते हैं और आने वाले विधानसभा चुनाव में भी वह इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने जा रहे हैं। नीतीश और लालू मिलकर स्वाभिमान रैली की तैयारी भी कर चुके हैं। दरअसल बिहार में डीएनए का मुद्दा उठाकर नरेंद्र मोदी ने लालू और नीतीश कुमार को एक बड़ा हथियार दे दिया है।

भाजपा नेता लगातार नीतीश कुमार और लालू यादव के शासनकाल पर निशाना साध रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि चुनाव जीतने के लिए इस तरह के मुद्दे उठाए जाते हैं जिसमें कई मुद्दे चुनाव पर भी असर डालते हैं। नीतीश कुमार ने अब डीएनए के मुद्दे को भुनाने की पूरी तैयारी कर ली है। इसलिए अब नीतीश कुमार प्रचार के दौरान कहने लगे हैं कि बिहार के डीएनए को तुम क्या‍ जानो जुमला बाबू। ऐसा लग रहा है कि विधानसभा चुनाव अब जुमलों पर ही लड़ा जाएगा।

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