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मध्य प्रदेश: कांग्रेस में कौन होगा सीएम उम्मीदवार, रस्साकशी शुरू

किसान आंदोलन की ताप से मध्य प्रदेश में सत्ता वापसी की आस लगाए बैठी कांग्रेस पार्टी में 'सीएम प्राजेक्ट' को लेकर रस्साकशी का दौर शुरू हो चुका है। बीते दिनों कांग्रेस के दिग्गजों ने जो दांव खेला है, वह थोड़ा चौकाता जरूर है, लेकिन अप्रत्याशित नहीं है।
मध्य प्रदेश: कांग्रेस में कौन होगा सीएम उम्मीदवार, रस्साकशी शुरू

कांग्रेस के भीतर इस वक्त कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया का वर्चस्व है। इन तीनों का अपना अलग गुट है जो प्रदेश की राजनीति में नई राह चलने में सक्षम है। ज्योतिरादित्य सिंधिया गुजरे कई महीनों से ही खुद को सक्रिय कर चल रहे है। अप्रैल में अपने परंपरागत गढ़ चंबल क्षेत्र के अटेर विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी हेमंत कटारे की जीत दर्ज होते ही सिंधिया ने अलग रुख  ले लिया था।

सीएम पोस्ट के लिए एक सशक्त दावेदार के रूप में माने जा रहे सिंधिया ने साफ कहा कि जिस तरह पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री का चेहरा प्रोजेक्ट किया था और इसी के कारण वहां पर कांग्रेस सत्ता में आई, वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में पार्टी को मध्यप्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का विश्वसनीय चेहरा प्रोजेक्ट करना चाहिए। हमें ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाना चाहिए, जो नई ऊर्जा एवं जोश के साथ सभी को एकजुट करने में सक्षम हो।

उसी रोज राजनैतिक विश्लेषकों ने अनुमान लगाया की जल्द ही एक बार फिर मध्य प्रदेश के कांग्रेस में ‘सीएम प्राजेक्ट' को लेकर रस्साकशी और गुटबाजी का एक फ्लैश पॉइंट आने वाला है। आखिर वह पल जल्द ही आ गया जब मंदसौर में किसान आंदोलन के दौरान 5 किसानो की अंधाधुंध फायरिंग में मौत हो गयी।  लोकसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक को अपना विदेश दौरा त्याग वापिस भारत में लैंड करना पड़ा।

सिंधिया द्वारा मोर्चा हाथ में लेते ही कांग्रेस के अन्य गुटों का मैदान में उतरना लाजमी था। लिहाजा जब मध्यप्रदेश के किसानों के लिये ज्योतिरादित्य ने भोपाल में सत्याग्रह शुरू किया तो कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह, कमलनाथ समर्थक साथ तो हो लिए, पर सीएम प्राजेक्ट को लेकर चाबुक चलाते रहे।

अपने भाषण में दिग्विजय ने कहा कि भाजपा के लोग प्रचारित करते हैं कि जहां दिग्विजय जाते हैं कांग्रेस के वोट कम हो जाते हैं। इसीलिए में अब युवा नेतृत्व के पीछे रहूंगा। बातों-बातों में उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि सीएम का चेहरा प्रोजेक्ट होने के पीछे मत रहो। जब 2003 में चुनाव जीते थे, तब मैं भी चेहरा नहीं था। चौबीस घंटे में चेहरा तय हो जाता है।

दिग्विजय की बात में सच्चाई और 23 वर्ष पुराना दिलचस्प तमाशा छुपा हुआ था।

वर्ष 1993 में भी कांग्रेस कई गुटों में बटी हुई थी। भाजपा को हराने की बजाय कांग्रेसी एक-दूसरे को नष्ट करने में ज्यादा संकल्पित थे। मोतीलाल वोरा और स्वर्गीय माधवराव सिंधिया, एआईसीसी के कोषाध्यक्ष सीताराम केसरी के सक्रिय सहयोग के बदौलत ग्वालियर जिले के डबरा में कांग्रेस ले सभी गुट एकजुट हो गये।  नतीजन कांग्रेस की सत्ता वापसी हो गयी। उस वक्त अर्जुन सिंह का सबसे बड़ा गुट था और माना जा रहा था की चुरहट के कुंवर साहब एसटी, एससी और अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित और अपने वफादार सुभाष यादव को मुख्यमंत्री बनने का भरपूर मौका देंगे और अपनी केरवा  कोठी की तरफ चल दिये। अर्जुन सिंह ने नई राह पकड़ी और अपने साथी ठाकुर दिग्विजय सिंह का समर्थन देने की सार्वजनिक रूप से घोषणा कर दी। उस वक्त दिग्विजय सिंह, सांसद और पीसीसी अध्यक्ष थे।

प्रदेश में दिग्विजय सिंह की पार्टी संगठन पर अच्छी पकड़ मानी जाती है। लेकिन, दोबारा उनके हाथ में प्रदेश की कमान देना मुश्किल ही लग रहा है। वैसे भी राजनीति में दिखने और दिखाने की परंपरा सदियों से रही है। पहले दिखने के लिए कुछ किया जाता है, और समय आने पर दिखा कुछ और दिया जाता है। वरिष्ठ नेता कमलनाथ कुछ दिखा तो नहीं रहे, पर उनके समर्थक सड़क से लेकर सोशल मीडिया में गांधी परिवार के करीबी नेता के लिए मरे जा रहे है।

पिछले दिनों जब छिंदवाड़ा में आदिवासी किसान अधिकार यात्रा के आयोजन में पीसीसी चीफ अरुण यादव, सिंधिया और दिग्विजय सिंह नदारद रहे, पर मंच से विधायक जीतू पटवारी और युवा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुणाल चौधरी ने कह डाला कि प्रदेश में सरकार बनने पर कमलनाथ ही सीएम बनेंगे। बयान ने सभी कांग्रेस गुटों में हलचल पैदा कर दी और जल्द ही इस बयान को फेसबुक में तू-तू मैं-मैं  शुरू हो गई।

बकुलेश जैन ने तो यहां तक कह दिया कि कुछ कांग्रेसियों ने रायता फैलाने की सुपारी कमलगट्टों से अघोषित रूप से ले रखी है।

पर विडंबना यह है कि प्रदेश में कांग्रेस की कहानी दिखने और दिखाने की परंपरा जैसी ही है। जिस प्रकार प्राचीनकाल में राजा लगातार युद्ध भूमि में सक्रिय रहता था और जनता को दिखता रहता था की उनका वीर राजा तो उनके लिए लगातार लड़ रहा है। ठीक वैसी ही कहानी प्रदेश में कांग्रेस की है। नेताओ में आपसी लड़ाई के चलते, हत्या तो सेना (कार्यकर्ता) की हो रही है।  

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