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शेरों की रक्षक शेरनियां

गुजरात के गिर संरक्षित वन में एशियाई शेरों की देखभाल में लगी वन गार्ड और बचाव दल की कमांडर रच रही हैं नया इतिहास, देश में इस नई भूमिका में उतरीं ये महिलाएं पितृसत्ता को दे रही सीधी चुनौती
शेरों की रक्षक शेरनियां

वे शेर के दांत गिनती हैं। उन पर निगाह रखती हैं। चोट लगे तो मरहम-पट्टी करती हैं। जंगल के राजा शेर हो या शेरनी हो या उनके बच्चे हों, सबकी रखवाली करती हैं। कभी पैदल-पैदल तो कभी बाइक पर वे जंगल का चप्पा-चप्पा छानती हैं। वे हैं निगेहबान-एशियाई शेरों की। उनकी निगेहबानी में ही भारत के शेर सुरक्षित हैं। दुनिया में एशियाई शेर सिर्फ और सिर्फ भारत में हैं और इन शेरों की रखवाली का जिम्म इन बहादुर महिलाओं ने संभाल रखा है जो अपने आप में बेमिसाल है। ये महिलाएं गुजरात के गिर जंगलों की वन गार्ड, जानवरों को बचाने वाली टीम (रेस्‍क्यू टीम) की लीडर...दूसरे शद्ब्रदों में कहें तो गिर की क्वीन, गिर जंगलों की रक्षक बनी हुई हैं। इस समय इनकी संख्या एक दर्जन से अधिक है और ये अलग-अलग पदों पर काम कर रही हैं। इनसे बात करने पर पता चला कि इनमें से अधिकतर महिलाओं ने इस काम को शुरू करने से पहले कभी शेर देखा ही नहीं था। इनके घरवालों का जंगल से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। वन गार्ड के पद पर काम कर रहीgujrat, इस पद पर काम करने वाली पहली आदिवासी महिला हैं। उन्होंने इस संवाददाता को बताया, 'मैं अपने सांवत्री गांव, पालाल ताल्लुुक की पहली लड़की हूं, नौकरी करने वाली। मैं जिस आदिवासी समुदाय से आती हूं, उसे हब्‍शी करते हैं। मैं मुस्लिम हूं, इसलिए लोग और ज्यादा हैरान थे, जब मैंने यह नौकरी ज्वाइन की। मैंने जंगल से पहले चिड़ियाघर में शेर देखा था। सच बताऊं, जब 2011 में मैंने यहां नौकरी करनी शुरू की और जंगल में शेर देखा, तो मैं उसे देखती ही रह गई। जरा भी डर नहीं लगा। सोचा, अरे जंगल का राजा बिल्कुल राजा जैसा ही है। उस समय मैं पेट्रोलिंग पर थी, मेरे सीनियर ने मेरा हाथ पकड़कर पीछे खींचा। फिर मैंने बाइक सीखी और अब आराम से जंगल के हर चप्पे को छान लेती हूं। शेरों के बारे में, तेंदुए के बारे में, पूरे जंगल के बारे में यहीं आकर सीखा।’ रोजिना बहुत अच्छी हिंदी बोलती हैं। उन्हें पढऩे का बहुत शौक है। बी.एड. करने के बाद अभी वह संस्कृत से एमए कर रही हैं। जब उनसे मैंने पूछा कि लड़की होने की वजह से उन्हें कोई मुश्किल तो नहीं होती तो रोजिना ने बहुत सहजता से जवाब दिया, 'ऐसा अहसास ही नहीं होता कि मैं लड़की हूं। पहले घर वाले नाराज थे कि ऐसी नौकरी लड़कियों के लिए नहीं है, मुश्किल होगी। पर अब उन्हें समझ आ गया है। एक दिक्कत है कि मेरी शादी होनी मुश्किल है,’ और यह कहकर रोजिना हंसने लगती हैं। रोजिना को इस बात की भी बहुत खुशी है कि उन्हें यह चुनौती भरा काम करने का मौका मिला। वह कहती हैं, अब मैं शेरों-शेरनियों को दूर से पहचान जाती हूं। इस समय मेरी पोस्टिंग जयपुर बीट पर है। यहां शेरों का मूवमेंट कब होता है और गिर से निकलकर कितने बाहर चले जाते हैं या बाहर से अंदर आते हैं, सबका हिसाब रखती हूं। यह काम बहुत दिलचस्प है और मुझे लगता है कि इस तरह का काम हर जंगल में हम औरतों के पास ही होना चाहिए।

शेरों की देखभाल और उन्हें संकट से बचाने का चुनौती भरा काम कर रही हैं इस जंगल में रासिला पी. वाडेर। बड़े आत्मविश्वास के साथ वह हाथ मिलाती हैं और गिर में घायल या मानवखोर हो चुके जानवरों से मुठभेड़ के किस्से बताती हैं। रसीला ने बताया कि चूंकि उनके पिता नहीं थे और मां ने उन्हें पाला, इसलिए वह बहुत कम उम्र से अपने पैरों पर खड़े होना चाहती थी। पहली बार वर्ष 2007 मे गिर में वन गार्ड के लिए जब महिलाओं की भर्ती करने का फैसला लिया गया तो उन्हें यह अवसर मिला। जीवन में जब पहली बार उन्होंने शेर देखा तो उन्होंने मन ही मन यह तय किया कि जैसे शेर जंगल का राजा है और किसी से नहीं डरता है, वैसे ही वह भी किसी से नहीं डरेंगी। आज रसीला अपने आप में मिसाल है। पूरे देश में वह अकेली महिला हैं जो किसी सेंचुरी में रेस्‍क्यू यानी बचाव कार्य का नेतृत्व करती हैं। उनके लिए दिन-रात का कोई फर्क नहीं है। एक दिन में कई-कई बार तीन-चार बचाव अभियान करने पड़ते हैं। गिर फोरेस्ट रिजर्व में उनके दफ्तर में दर्जनों पिंजरों में शेर, शेर के बच्चे, आदमखोर तेंदुए बंद हैं। बातचीत के दौरान उनकी दहाड़ गूंजती रहती है। अगर पिंजरे में शेर की आवाज ज्यादा देर तक आती है तो रसीला बेचैन हो जाती हैं। उन्हें लगता है कि जानवर कष्ट में है। वह अब तक 900 के करीब बचाव अभियान सफलतापूर्वक कर चुकी हैं, जिसमें 400 में उन्होंने तेंदुओं को बचाया है। 200 के करीब शेरों को बचाया जा चुका है। इन साहसिक अभियानों के बारे में बताते समय उनकी आंखों की चमक बढ़ जाती है। तेंदुए को पकडऩा मुश्किल काम होता है। अक्सर वह गांव में घुस जाता है और उसे बेहोशी का इंजेक्‍शन देना भी टेढ़ा काम होता है। रसीला पर कई बार हमला भी हो चुका है। इसी तरह घायल शेर को पकड़ना, उसका इलाज करना, पट्टी करना और रेस्‍क्यू सेंटर लाना और फिर ठीक होने के बाद वापस जंगल छोड़ना, बड़ा जिम्मेदारी वाला काम होता है। कई बार बच्चों को मादा घायल होने पर या बीमार होने पर छोड़ देती है, उन्हें बोतल से दूध पिलाकर जिंदा रखना पड़ता है।

इस तरह की अनगिनत कहानियां गुजरात के इस गिर जंगल में ये औरतें बना रही हैं। एशियाई शेरों को जिंदा रखने, सुरक्षित रखने का जिम्मा इन साहसिक बालाओं ने उठा रखा है।

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