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कॉन्डमः तो बात यहां तक आ पहुंची है

    कॉन्डम का नया बाजार यही नही, कुछ समय पहले मध्य प्रदेश में एक कॉन्डम की वजह से विवाद पैदा हो गया था।...
कॉन्डमः  तो बात यहां तक आ पहुंची है

 

 

कॉन्डम का नया बाजार

यही नही, कुछ समय पहले मध्य प्रदेश में एक कॉन्डम की वजह से विवाद पैदा हो गया था। इस पैकेट में कॉन्डम के साथ कंपनी ने उत्तेजना पैदा करने वाला एक उपकरण मुफ्त में दिया। यह उपकरण वाइब्रेशन पैदा करने वाला एक रिंग था। इसे कॉन्डम की जैसी एक रिंग की तरह पुरुष पहनते हैं। संभोग के समय वाइब्रेशन होती है। बैटरी चालित इस उपकरण वाले कॉन्डम को लोगों ने कुछ खास पसंद नहीं किया। अब कंपनियों ने अतिरिक्त समय ऑरगैज्म के लिए भी एक ऐसा कॉन्डम बाजार में उतारा है, जिससे ऑरगैज्म और संभोग की अवधि बढ़ जाती है। हरियाणा के नामी फार्मासिस्ट मनीष अग्गी कहते हैं कि इसमें बिनजोकिन नामक रसायन होता है। इसके अलावा लोकल अनिस्थिसिया भी होता है, जो ऑरगैज्म को लंबे समय तक खींचने में मददगार होते हैं। यह केवल पुरुषों के लिए है। महिलाओं के ऑरगैज्म में मदद के लिए रिब्स कॉन्डम है। इसे प्रयोग तो पुरुष करते हैं लेकिन यह महिलाओं की सुविधा और आनंद के लिए बना है। इसके अलावा पहले कंपनियों ने सिर्फ गुलाबी रंग के कॉन्डम बाजार में उतारे थे, अब गहरे रंगों के कॉन्डम भी आने लगे हैं। डॉटेड और रिब्स कॉन्डम तो बाजार में पहले आ चुके हैं। यह सब निजी क्षेत्र में बनते हैं।

 

निरोध

उपभोक्ता को लुभाने के लिए इस प्रकार के नए-नए कॉन्डम से समझा जा सकता है कि ऐसे बाजार में निरोध क्यों नहीं टिक सकता है। अहम बात यह है कि जिन लोगों की पहुंच अभी भी लग्जरी कॉन्डम तक नहीं है, जिन्हें निरोध चाहिए, उन तक भी यह नहीं पहुंच रहा है। गौरतलब है कि कॉन्डम बनाने वाली देश की सबसे बड़ी सार्वजिनक क्षेत्र की कंपनी हिन्दुस्तान लेटेक्स लिमिटेड (एचएलएल) पिछले कई वर्षों से निरोध बना रही है। निरोध बतौर ब्रांड अन्य कॉन्डम की अपेक्षा काफी कमजोर है। सरकार ने यह माना था कि निजी कंपनियों द्वारा उत्पादित कॉन्डम के पैकेट उत्तेजक और बेहतरीन  होते है, लेकिन निरोध के पैकेट सामान्य, इसलिए इसे आकर्षक बनाने के लिए इसकी पैकिंग भी बदली गई थी। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार हर वर्ष सुरक्षित यौन संबंधों के लिए सरकार 65 करोड़ तक निरोध कॉन्डम का वितरण करती है लेकिन पिछले पांच सालों में इसके वितरण में 40 फीसदी की कमी आ चुकी है। देश में हर साल करीब 2.4 अरब कॉन्डम बिकते हैं। कॉन्डम का व्यवसायिक बाजार 650 से 700 करोड़ रुपये का है। लेकिन एचएलएल कंपनी इस सब से इंकार करती है। कंपनी के चेयरमैन और कार्यकारी निदेशक डॉ. एम.अय्यपम का कहना है कि निरोध की तुलना बाकी कॉन्डम से की ही नहीं जा सकती है, क्योंकि जिनके लिए निरोध बनाया गया है उनके लिए लज्जरी कॉन्डम नहीं बना है। दोनों का बाजार अलग-अलग है। अय्यपन निरोध की कम हो रही बिक्री से भी सहमत नहीं। वह कहते हैं कि शुरुआत में हमारे देश में कॉन्डम परिवार नियोजन के लिए प्रयोग होता था लेकिन अब परिवार नियोजन के लोग नसबंदी या पिल्स को ज्यादा तव्वजो देते हैं। धीरे-धीरे कॉन्डम परिवार नियोजन की बजाय सुरक्षित यौन संबंधों के लिए प्रयोग होने लगा है। डॉ.अय्यपन के अनुसार हर वर्ग के लिए हर प्रकार का कॉन्डम है।

 

मूड्स

एचएलएल के कॉन्डम ब्रैंड्स में मूड्स और निरोध शामिल हैं। डॉ. अय्य्पन के अनुसार प्रतियोगिता के चलते उनकी कंपनी भी नए-नए प्रयोग करती है। जैसे इसमें सबसे खास वरायटी है मूड्स एक्वयोर की। इसकी कीमत 2500 रुपये है और इसे ऑनलाइन ही मंगवाया जा सकता है। उनके अनुसार कॉन्डम एक्वयोर एक ऐसा गिफ्ट पैक है जिसमें नवविवाहित जोड़े या किसी अन्य के लिए तरह-तरह के कॉन्डम, सेक्स खिलौने, सेक्स गेम्स, खुशबूदार कैंड्ल्स, सेक्स गाइड, मसाज तेल, शिमर पाउडर, फोरप्ले के लिए तरह—तरह के उपकरण समेत रात भर के लिए हर प्रकार का सामान है। यह इस समय खासा चर्चा में है। इसका बाजार विदेशों में ज्यादा है। इसके अलावा मूड्स प्रिमियम में मूड्स डॉट, जिसमें दूसरे डॉटेड कॉन्डम की बजाय पांच गुणा डॉट्स ज्यादा हैं, मूड्स कूल (कूलिंग ल्यूब्रिकेंट), मूड्स द्ब्रलेज (वॉर्म ल्यूब्रिकेंट) और ऐलो हैं, जिसमें एलोवेरा जेल की ल्यूब्रिकेशन है।

 

 परिवार नियोजन के लिए कॉन्डम गुजरे जमाने की बात

लेकिन दिक्कत यह है कि तेजी से बढ़ रहे यौन संबंधों को सुरक्षित बनाने के लिए कॉन्डम का प्रयोग कम हो रहा है। लग्जरी कॉन्डम की खपत वाले बाजार की बात न करें तो साधारण उपभोक्ता के लिए निरोध की उपलब्धता मुश्किल है, कम है। एड्स हेल्थकेयर फाउंडेशन के भारत प्रोग्राम मैनेजर डॉ.नचिकेता मोहंती कहते हैं कि भारत में अब परिवार नियोजन के लिए कॉन्डम का प्रयोग बहुत कम होता है। उसके लिए और बेहतर तरीके उपलब्ध हैं। अब यौन रोगों से सुरक्षा का मसला है, जिसके लिए सरकार को न केवल कॉन्डम प्रयोग करने को लेकर जागरूकता फैलानी चाहिए बल्कि उसकी उपलब्धता को भी बहुत आसान बनाना चाहिए। लाजिमी तौर पर हर स्थान, गांव, देहात, कस्बे में निरोध मिलना चाहिए।

नचिकेता के अनुसार देश में आम लोगों में 0.27 8 फीसदी,  ट्रांसजेंडर में 4 फीसदी, सेक्स वर्कर में 8 फीसदी एक-दूसरे के इंजेक्शन (नशे वाले) प्रयोग करने वालों में 8 फीसदी एचआईवी ग्रस्त हैं। यौन रोग पीडि़तों में से 80 फीसदी लोग असुरक्षित यौन संबंधों के चलते इसकी चपेट में आए। इसलिए जिस वर्ग में एचआईवी पैर पसार रहा है, वहां कॉन्डम, वह भी निरोध जैसा सस्ता ब्रांड, नियमित उपलब्ध करवाना जरूरी है। इसी संस्थान से जुड़ी डॉ. रत्ना देवी कहती हैं कि इसके लिए पान, पंसारी, हेयर सैलून, ब्यूटी पार्लर गली-मोहल्ले की दुकानों पर कॉन्डम मिलना चाहिए। देखने में आया है कि कम लोग हैं जो कॉन्डम खरीदने विशेषतौर पर स्वास्थ्य केंद्र जाते हैं।

 

कॉन्डम की खरीद  और बिक्री

कॉन्डम की खरीद बिना झिझक और आसान हो जाएगी तो यौन रोगों से बचाव आसान होगा। जैसे दुनिया के कई देशों में बहुत आसानी से कहीं भी कॉन्डम मिल जाता है। इसके लिए बाकायदा लग्जरी कॉन्डम की तरह निरोध की मार्केटिंग और बिक्री की योजना लाजिमी तौर पर बनानी होगी। डॉ.रत्ना देवी का कहना है कि इसके लिए पुरुषों को ही जागरूक करना होगा क्योंकि महिलाएं अगर कॉन्डम खरीद भी लेंगी तो उसका प्रयोग करना उनकी मर्जी पर निर्भर नहीं होता है। डॉ. नचिकेता के अनुसार कम से कम लग्जरी नहीं तो निरोध कॉन्डम की पैकिंग और क्वालिटी तो सुधार दी जाए जिससे लग्जरी कॉन्डम की चाह रखने वाला आम आदमी भी निरोध खरीदने के लिए प्रेरित हो सके। उसे निरोध की शक्ल देखकर ऐसा न लगे कि इसे नहीं खरीदना है।  

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