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मेरे शौचालय हैं कहां, कोई तो बताए ?

देश भर में जोर-शोर से चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान के बीच मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के बाढ़ गांव के 45 परिवार सरकार से पूछ रहे हैं कि मेरे शौचालय कहां है? निर्मल भारत अभियान के वेबसाइट पर उनके घरों में शौचालय बन चुके हैं, पर वे सभी आज भी खुले में शौच जाने के मजबूर हैं। उनके घरों में शौचालय ही नहीं है। वे अपने गायब शौचालय के लिए लगातार आवेदन दे रहे हैं, पर उनकी सुनवाई ही नहीं हो रही है।
मेरे शौचालय हैं कहां, कोई तो बताए ?

श्योपुर के आदिवासी बहुल कराहल विकासखंड मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर बाढ़ ग्राम पंचायत है। बाढ़ गांव में आदिवासी एवं अन्य पिछड़े वर्ग के 60-65 परिवार हैं। महात्मा गांधी सेवा आश्रम से जुड़े स्वच्छता के मुद्दे पर कार्यरत अनिल गुप्ता बताते हैं, ‘‘पिछले साल विश्व शौचालय दिवस पर जब संस्था ने जागरूकता के लिए रैली आयोजित की थी, तब पता चला कि इस गांव में एक भी शौचालय नहीं है, पर सरकारी आंकड़ों में 2010-11 में ही 45 परिवारों के शौचालय बनाए जा चुके हैं। यह बहुत ही गंभीर मामला है, जिसमें गरीब परिवारों के साथ धोखाधड़ी हो रही है। मामला सिर्फ एक गांव का नहीं है। देश के विभिन्न हिस्सों में मिसिंग टॉयलेट को लेकर बड़े स्तर हो रही गड़बड़ियों को उजागर किया जा रहा है। पर आदिवासी बहुल और दूर-दराज के क्षेत्रों में यह स्थिति ज्यादा ही गंभीर है।’’

बाढ़ गांव के ज्ञानी आदिवासी कहते हैं, ‘5 साल पहले एक बार पंचायत सचिव ने शौचालय बनाने की चर्चा की थी, पर उसके बाद क्या हुआ हमें नहीं मालूम। अब पता चला है कि हमारे नाम पर पैसा निकाला जा चुका है और शौचालय बनाना बता दिया गया है।’ पंचायत के तत्कालीन सचिव अंतर सिंह का कहना है, ‘2010-11 में शौचालय बनाने के लिए पंचायत को डेढ़ लाख रुपये की राशि मिली थी, पर गांव वालों ने शौचालय नहीं बनाया, तो हमने पैसा वापस कर दिया।’ गांव वाले इस बात को खारिज करते हैं। दूसरी ओर स्थानीय निर्मल भारत अभियान से जुड़े कर्मचारी इसका स्पष्ट जवाब नहीं दे पा रहे हैं कि पैसा लौटाया गया था या नहीं और यदि पैसा लौटाया दिया गया था, तो ग्रामीणों के नाम पर शौचालय बना हुआ कैसे दिखाया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि बिना उपयोगिता प्रमाण-पत्र के शौचालय निर्माण का आंकड़ा राज्य स्तर नहीं भेजा जाता है। इस मामले पर अनिल गुप्ता का कहना है कि पूरे जिले में निर्मित शौचालयों का नए सिरे से निरीक्षण होना चाहिए। दूसरी ओर ग्रामीणों का कहना है कि वेबसाइट से उनका नाम हटाया जाए और शौचालय निर्माण की राशि उन्हें दी जाए, जिससे कि वे शौचालय बना सकें।

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