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गुजरात में 450 दलितों ने अपनाया बौद्ध धर्म, कहा- हिंदुओं के भेदभाव से हमें पीड़ा होती है

गुजरात के ऊना में स्वयंभू गोरक्षकों के उत्पीड़न के शिकार एक दलित परिवार ने मोता समधियाला गांव में...
गुजरात में 450 दलितों ने अपनाया बौद्ध धर्म, कहा- हिंदुओं के भेदभाव से हमें पीड़ा होती है

गुजरात के ऊना में स्वयंभू गोरक्षकों के उत्पीड़न के शिकार एक दलित परिवार ने मोता समधियाला गांव में आयोजित एक कार्यक्रम में रविवार बौद्ध धर्म अपना लिया है। कार्यक्रम के आयोजक ने दावा किया कि इसमें 450 दलितों ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया है। इस कार्यक्रम में 1000 से अधिक दलितों ने हिस्सा लिया।

इन परिवारों ने बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला क्यों लिया, इस सवाल पर उनका कहना था कि हिंदुओं ने उन्हें सम्मान नहीं दिया। दलित परिवारों ने कहा, 'हमें हिंदू नहीं माना जाता और मंदिरों में भी घुसने नहीं दिया जाता। यही वजह है कि हमने बौद्ध धर्म स्वीकार किया है।'

न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, जुलाई, 2016 में ऊना में मृत गाय की खाल निकालने को लेकर स्वयंभू गोरक्षकों ने सात दलितों की कथित तौर पर पिटाई की थी। इस मामले के पीड़ितों बालू भाई सर्विया एवं उनके बेटों रमेश और वश्राम के अलावा उनकी पत्नी कंवर सर्विया ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया।

बुद्ध पूर्णिमा के दिन पहले त्यागा हिंदू धर्म

बालू भाई के भतीजे अशोक सर्विया और उनके एक अन्य रिश्तेदार बेचर सर्विया ने बुद्ध पूर्णिमा के दिन पहले हिंदू धर्म त्याग दिया था। ये दोनों भी उन सात लोगों में शामिल थे, जिनकी खुद को गोरक्षक बताने वालों ने कथित तौर पर पिटाई की थी। बालू भाई ने बताया कि उत्पीड़न के एक अन्य पीड़ित देवजी भाई बाबरिया तबीयत ठीक नहीं होने के कारण कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके। वह पड़ोसी बेदिया गांव के रहने वाले हैं।

हिंदुओं के भेदभाव से हमें पीड़ा होती है

बौद्ध धर्म अपनाने वाले परिवार के एक अन्य सदस्य रमेश ने कहा कि हिंदुओं द्वारा उनकी जाति को लेकर किए गए भेदभाव के कारण उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया। उन्होंने कहा, ‘ हिंदू गोरक्षकों ने हमें मुस्लिम कहा था। हिंदुओं के भेदभाव से हमें पीड़ा होती है और इस वजह से हमने धर्म परिवर्तन का निर्णय किया। यहां तक कि राज्य सरकार ने भी हमारे खिलाफ भेदभाव किया क्योंकि उत्पीड़न की घटना के बाद जो वादे हमसे किए गए थे, वे पूरे नहीं हुए।’

मंदिरों में प्रवेश करने से रोका जाता है

रमेश ने कहा, ‘हमें मंदिरों में प्रवेश करने से रोका जाता है। हिंदू हमारे खिलाफ भेदभाव करते हैं और हम जहां भी काम करते हैं, वहां हमें अपने बर्तन लेकर जाना पड़ता है। ऊना मामले में हमें अब तक न्याय नहीं मिला है और हमारे धर्म परिवर्तन के पीछे कहीं-न-कहीं यह भी एक कारण है।

गौरतलब है कि बता दें, जुलाई 2016 में वशराम, रमेश, अशोक और बेचर नाम के दलितों को गोरक्षकों ने बेरहमी से पीटा था। घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था और गुजरात में दलित आंदोलन को जन्म दिया था।

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