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देश के सबसे लंबे पुल का उद्घाटन कल, जानिये इसकी 5 खास बातें

असम से सटे चीन की सीमा पर सुरक्षा तैयारियों के मद्देनजर ब्रह्मपुत्र नदी पर देश के सबसे लंबे पुल का निर्माण किया गया है। यह पुल देश की सुरक्षा जरूरतों को देखते हुए रणनीतिक रूप से भी अहमियत रखता है। इस पुल के निर्माण के लिए भिलाई इस्पात संयंत्र का लोहा इस्तेमाल किया गया है।
देश के सबसे लंबे पुल का उद्घाटन कल, जानिये इसकी 5 खास बातें

26 मई को केंद्र की भाजपा सरकार के कार्यकाल को तीन साल पूरे हो रहे हैं और इस दिन देश को न केवल उसका बल्कि एशिया का सबसे लंबा धौला-सादिया पुल मिलने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 26 मई को इस पुल का उद्घाटन करेंगे। यह कार्यक्रम न सिर्फ केंद्र की मोदी सरकार के तीन साल होने के उपलक्ष्य में आयोजित होगा, बल्कि असम सरकार के एक साल पूरा होने पर भी राज्यभर में कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है। असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा, हम खुश हैं कि मोदी पुल का इनॉगरेशन करेंगे। इसके बनने में देरी हो रही थी, लेकिन जब पीएम ने जब इसमें रुचि दिखाई और मैंने जाकर देरी की वजहों का पता किया तो काम में तेजी आई।

जानकारी के अनुसार, इस पुल के निर्माण से भारत ने चीन को उसी की भाषा में जवाब दिया है। चीन लगातार सीमा से सटे इलाकों में तेज़ी से सड़कें और अन्य निर्माण करता रहता है, जिसके बदले भारत ने उसे उसके अंदाज़ में करारा जवाब दिया है। चीन की इन हरकतों को देखते हुए भारत ना सिर्फ चीन से लगते सीमावर्ती इलाके में अपने सैन्य प्रतिष्ठानों को मजबूत कर रहा है बल्कि तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण भी कर रहा है।

एशिया का दूसरा सबसे लंबा पुल

ब्रह्मपुत्र नदी पर बना 9.15 किलोमीटर लंबा यह पुल एशिया का दूसरा सबसे लंबा पुल है,जिसका का एक छोर अरुणाचल प्रदेश के ढोला कस्बे में और दूसरा छोर असम के तिनसुकिया जि़ले के सदिया क़स्बे में है। इससे अरुणाचल प्रदेश और असम के बीच के यातायात के समय में चार घंटे की कमी आएगी। पुल की चौड़ाई 42 फीट है, जिस पर आवाजाही के लिए दो लेन बनाए गए हैं। यह पुल मुंबई के बांद्रा-वर्ली सी लिंक से 3.55 किलो मीटर लंबा है, जो 60 टन वजनी युद्धक टैंक का भार भी वहन करने में सक्षम है। यह पुल असम की राजधानी दिसपुर से 540 किलोमीटर दूर और अरूणाचल प्रदेश की राजधानी इटानगर से 300 किलोमीटर दूर है। चीनी सीमा से हवाई दूरी 100 किलोमीटर से कम है।

विकास की पहुंच असम के पूर्वोत्तर तक

असम का पूर्वोत्तर इलाका आज भी काफी पिछड़ा हुआ है। इसके उत्तरी-दक्षिणी इलाके में इस पुल के जुड़ने से विकास की पहुंच असम के पूर्वोत्तर इलाके तक पहुंचेगी। तिनसुकिया के आसपास ऐसा कोई भी मजबूत पुल नहीं है, जिसके जरिये टैंकों को एक जगह से दूसरी जगहों पर लेकर जाया जा सके और सेना के जवान अरूणाचल प्रदेश पहुंच सके।

यहां भी लगा है भिलाई का लोहा

बांद्रा-वर्ली मुंबई समुद्र सेतु के लिए भूकंप व जंगरोधी टीएमटी बार एंड राड की आपूर्ति की। पटना और मुंगेर के बीच रेल कम रोड ब्रिज के लिए भी कॉपर नियोबियम और वेनेडियम मिश्रित हाई टेंसाइल 450 ई ग्रेड की खास प्लेट और सुपर स्ट्रक्चर बनाया। वहीं, जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी के ऊपर बने विश्व का सबसे बड़ा पुल दिल्ली के कुतुब मीनार से 5 गुना ज्यादा ऊंचा और पेरिस के एफिल टावर से भी ऊंचे पुल में भी बीएसपी को सरिया व प्लेट उपयोग में लाया गया है।

विशेष स्टील की आपूर्ति बीएसपी ने की

भारत के कोन-कोने को जोडऩे वाला भिलाई इस्पात संयंत्र अपने खास उत्पादों के जरिये राष्ट्र की सुरक्षा प्रहरी की भूमिका का भी निर्वाह कर रहा है। भारत-पाक सरहद पर दुश्मनों की घुसपैठ रोकने कटीले तार की बाड़ बनाने दस साल पहले थर्मोमेकेनिकली ट्रीटमेंट से 12 मिमी. मोटाई का तार सप्लाई की थी। युद्ध विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत के लिए डीएमआर-240 ए ग्रेड विशेष प्लेट बनाया। अब भारत-चीन सीमा पर सामरिक दृष्टि से महत्वूपर्ण ढोला-सादिया पुल के लिए भी विशेष स्टील की आपूर्ति बीएसपी ने की है। वहीं पीएम आवास के लिए भी अब स्टील का घर बनाने तैयार है।

साल 2011 में हुई थी शुरुआत

असम में ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपर बने इस पुल की शुरुआत साल 2011 में हुई थी, जिसके लिए तय बजट 876 करोड़ था, जिसे साल 2015 में पूरा कर लिया जाना था। इस प्रोजेक्ट के मैनेजर बी सूर्यराजू के मुताबिक बाढ़ और बेमौसम बरसात के कारण इस प्रोजेक्ट पर पूरे साल में केवल 4-5 महीने ही ठीक से काम हो पाता था। बावजूद इसके इसे 2017 में पूरा कर लिया गया है जो करीब 1000 करोड़ में बनकर तैयार हुआ है।

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