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झारखंडः नक्‍सलियों का रूख अफीम की खेती पर, कोरोना में लेवी वसूली के काम पर पड़ा असर

कोयला माइनिंग एरिया में नक्‍सलियों की पैठ के खिलाफ एनआइए के अभियान के बीच नक्‍सली शहर और अफीम के गढ़...
झारखंडः नक्‍सलियों का रूख अफीम की खेती पर, कोरोना में लेवी वसूली के काम पर पड़ा असर

कोयला माइनिंग एरिया में नक्‍सलियों की पैठ के खिलाफ एनआइए के अभियान के बीच नक्‍सली शहर और अफीम के गढ़ की ओर रुख कर रहे हैं। कोरोना काल में नक्‍सलियों की लेवी वसूली का काम भी प्रभावित रहा है। शहर में छोटे आपराधिक गिरोहों की मदद से रेकी, वसूली के लिए धमकी की घटनाएं लगातार घट रही हैं। राजभवन के करीब भी नक्‍सलियों ने पोस्‍टर चिपका शहर में अपनी पैठ का एहसास करा दिया है।

कोयला और लेवी से कमाई मंद होने के बाद कम समय में मोटी कमाई के लिए अफीम की खेती उन्‍हें भा रही है। हालांकि पहले भी पीएलएफआइ और माओवादियों के संरक्षण में अफीम की खेती होती रही है। आर्थिक तंगी और सीजन होने के कारण अभी फोकस अफीम पर है। इधर पुलिस, विशेष शाखा और नारकोटिक्‍स ब्‍यूरो का भी इसी समय अफीम की खेती के खिलाफ अभियान चल रहा है। रांची से सटे खूंटी जिले में ही पिछले कोई बीस दिनों के भीतर लगभग डेढ़ सौ एकड़ में अफीम की फसल नष्‍ट की गई है। पांच मामले दर्ज किए गये हैं। जिसमें तीन खेत मालिक को गिरफ्तार किया गया है जबकि दो के बारे में पता लगाया जा रहा है कि जमीन किसकी है, व्‍यक्ति विशेष या वन विभाग की। खूंटी जिला के  अड़की, मुरहू, मारंगहादा, खूंटी और सायकों थाना अफीम की नाजायज पैदावार के गढ़ हैं। खूंटी से सटने वाले रांची के नामकुम, बुंडू और तमाड़ के सुदुरवर्ती इलाकों में इसकी खूब खेती होती है। झारखंड के खूंटी, चतरा, लातेहार, रांची , हजारीबाग, सिंहभूम में मुख्‍य रूप से अफीम की खेती होती है। पुलिस के अनुसार नक्‍सली संगठन पीएलएफआइ, टीपीसी और माओवादियों के संरक्षण में यह सब खेल चल रहा है।

आये दिन डोडा, अफीम, ब्राउन शुगर की बरामदगी की खबरें आती रहती हैं। पुलिस रिकार्ड के अनुसार पिछले साल सिर्फ चतरा से 55 किलो अफीम और 1229 किलो डोडा बरामद किया गया था। खूंटी में इस माह जारी अभियान में भले कोई डेढ़ सौ एकड़ में अफीम की खेती नष्‍ट की गई हो मगर पहले भी बड़े पैमाने पर नष्‍ट की गई थाी। 2017 में करीब 1500 एकड़, 2018 में 1200 एकड़, 2019 में 750 एकड़ और पिछले साल कोई सात सौ एकड़ में फसल को नष्‍ट किया गया। चतरा में पत्‍थलगड़ी की समस्‍या नहीं है मगर वहां भी हजारों एकड़ में खेती होती है। जानकार फसलों को नष्‍ट किये जाने को एक सांकेतिक कार्रवाई की तरह देखते हैं।

पत्‍थलगड़ी की आड़ में खेती

आदिवासियों की प्राचीन परंपरा पत्‍थलगड़ी की आड़ में नक्‍सली सुदुर इलाकों, वन क्षेत्रों में अफीम की खेती करते और कराते हैं। बड़े पैमाने पर ऐसे इलाकों जहां जाने के लिए पैदल लंबी दूरी तय करनी पड़ती है खुद पुलिस ऐसे इलाकों में प्रवेश से परहेज करती है। पत्‍थलगड़ी के बहाने गांव का सीमांकन कर प्रशासन और बाहरी लोगों को गांव में प्रवेश से रोका जाता है। संविधान की पांचवीं अनुसूची की अपने तरीके से व्‍याख्‍या कर ग्रामसभा के जरिये समानांतरण शासन कायम करने की कोशिश की जाती है। ग्रामीणों को प्रभाव में ले लिया जाता है। और नक्‍सली ग्रामीणों को प्रभाव में लेकर खेती कराते हैं। कैश क्रॉप के कारण ग्रामीणों की भी दिलचस्‍पी बढ़ जाती है। 2017 में खूंटी के सिलादोन में अफीम की खेती नष्‍ट करने पुलिस गई तो ग्रामीणों ने पुलिस अधिकारियों और जवानों को ही पारंपरिक हथियारों की मदद से बंधक बना लिया था।

पोस्‍ता का पूरा पौधा ही नशे के रूप में काम आता है। प्‍याज की तरह निकलने वाले फल में चीरा लगाकर रस के रूप में अफीम निकलती है तो शेष फल और डंठल (डोडा) को रसायनिक प्रक्रिया के बाद मादक द्रव्‍य तैयार किया जाता है। पंजाब, हरियाणा, राजस्‍थान, यूपी, मुंबई, गुजरात, हिमाचल, बिहार में ज्‍यादा मांग। आये दिन झारखंड में उन प्रदेशों के लोग या यहां के लोग पकड़े जाते रहे हैं। अभी मौसम अफीम की खेती का है, फसल लहलहाने लगे हैं। ऐसे में नक्‍सलियों के साथ नशे के सौदागरों की गतिविधियां भी ग्रामीण इलाकों में अभी से बढ़ गई हैं। पत्‍थलगड़ी और कथित ग्राम सभाएं भी सिर उठाने को तैयार हैं।

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