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"मंत्री जी डॉक्टर के बिना मेरे पिता की मौत हो गई, कौन लौटाएगा"- स्वास्थ्य मंत्री के सामने कोविड पीड़ित की बेटी चिखती रही

दूसरे बड़े शहरों की तरह रांची में भी कोरोना की तस्‍वीर भयावह होती जा रही है। सरकार की कोशिशों के...

दूसरे बड़े शहरों की तरह रांची में भी कोरोना की तस्‍वीर भयावह होती जा रही है। सरकार की कोशिशों के बावजूद मरीजों के हिसाब से चिकित्‍सा व्‍यवस्‍था का अभाव है। कोई अस्‍पताल परिसर में ही दम तोड़ रहा है तो कोई अस्‍पताल का चक्‍कर लगाते हुए। अंतिम संस्‍कार के लिए भी कतार है। मंगलवार को ही स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री बन्‍ना गुप्‍ता सदर अस्‍पताल का औचक निरीक्षण करने पहुंचे थे। उसी समय हजारीबाग की एक युवती उन्‍हें सुनाये जा रही थी। उसके बुजुर्ग पिता की मौत हो चुकी थी। सदर अस्‍पताल परिसर में ही उसके पिता 45 मिनट तक स्‍ट्रेचर पर अंतिम सांस से जूझते, छटपटाते रहे। कोई डॉक्‍टर तक देखने नहीं आया अंतत: वहीं उन्‍होंने दम तोड़ दिया। आपा खो चुकी युवती ने मंत्री के कवरेज के लिए आये तस्‍वीर ले रहे, शूट कर रहे मीडियाकर्मियों के कैमरे तक फेंक दिये। मंत्री भी औपचारिक बात और बिना इलाज जांच का आदेश देकर किनारे से निकल लिये। युवती सवाल करती रही, मेरे पिता को वापस ला सकते हैं ? इसी तरह के और भी मरीज अपनी बारी के इंतजार में थे।

दरअसल सरकारी, गैरसरकारी अधिसंख्‍य अस्‍पतालों में ऑक्‍सीजन वाले बेड नहीं हैं। गुरुवार को ही नागपुरिया भाषा की थाती थे। लोक कला, न्‍त्‍य, गायन, वादन आदि में महारथ थी। एक दर्जन से अधिक किताबों के लेखक, रांची विवि के क्षेत्रीय व जनजातीय भाषा के पूर्व विभागाध्‍यक्ष गिरधारी राम गौंझू ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया। उन्‍हें सांस लेने में तकलीफ थी। शहर में तीन-चार बड़े निजी अस्‍पतालों में ले जाया गया मगर कोरोना जांच न होने की वजह से किसी ने तत्‍काल इलाज या एडमिट करना मुनासिब नहीं समझा। कोविड जांच के लिए ले जाया जा रहा था इसी क्रम में उन्‍होंने दम तोड़ दिया। इस तरह के और भी लोग हैं जो समय पर मुनासिब चिकित्‍सा के अभाव में दम तोड़ चुके, तोड़ रहे हैं।

भुवनेश्‍वर में झारखण्‍ड के कुछ नमूनों की जांच के बाद कोरोना के यूके म्‍यूटेंट स्‍ट्रेन की पुष्टि हुई। 39 नमूनों में चार में यूके म्‍यूटेंट स्‍ट्रेन थे। इसने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। सिर्फ रांची में एक अप्रैल को 369 कोरोना संक्रमण के नये मामले थे जो 14 अप्रैल को 1273 नये मामले मिले। रफ्तार परेशान करने वाला है।

ऑक्‍सीजन वाले बेड सरकारी से लेकर निजी अस्‍पतालों तक के भरे पड़े हैं। इंतजार की लाइन लंबी है, चाहे अस्‍पताल हो या कब्रिस्‍तान या श्‍मशान घाट। नो बेड बताकर अस्‍पतालों से लोगों को लौटाया जा रहा है। वहीं शवों के अंतिम संस्‍कार के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। रांची के हरमू मुक्ति धाम का गैस से चलने वाले शवदाह गृह का बर्नर खराब है। दो-दिन पहले इस खराबी के कारण सात-आठ घंटे तक एंबुलेंस में शव अंतिम संस्‍कार के इंतजार में पड़े रहे। मरम्‍मत नहीं हो पाया तो दिल्‍ली से नया बर्नर मंगाया जा रहा है। तत्‍काल घाघला में किसी तरह लकड़ी और रोशनी का इंतजाम कर अंतिम संस्‍कार कराया जा रहा है। सीमित जगह और लाशों की ढ़ेर के कारण घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। निजी अस्‍पतालों में दोहन के बाद अंतिम संस्‍कार के लिए कब्रिस्‍तान और श्‍मशान घाट पहुंचाने के लिए भी एंबुलेंस वाले मनमानी वसूली कर रहे हैं। शिकायत के बाद बुधवार को प्रशासन ने दर का निर्धारण किया है। हालत यह है कि कोरोना के पिछले दौर में ढूंढना पड़ता था कि कोई अपना जानने वाला संक्रमित हुआ है या नहीं। ताजा दौर में जिधर नजर घुमाइए, परिचित हों या रिश्‍तेदार संक्रमित मिल जा रहे हैं। यह सरकारी आंकड़ों से कुछ अलग का हिसाब है। वैसे सरकारी आंकड़ों के अनुसार बुधवार को रांची में 7 और प्रदेश में 31 लोगों की कोरोना से मौत हुई है।

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