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ईशा फाउंडेशन विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने सदगुरु जग्गी वासुदेव को दी बड़ी राहत, पुलिस कार्रवाई पर लगाई रोक

जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन को राहत देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को तमिलनाडु पुलिस को...
ईशा फाउंडेशन विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने सदगुरु जग्गी वासुदेव को दी बड़ी राहत, पुलिस कार्रवाई पर लगाई रोक

जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन को राहत देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को तमिलनाडु पुलिस को निर्देश दिया कि वह मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में आगे कोई कार्रवाई न करे, जिसमें पुलिस को अपने आश्रम में दो महिलाओं को कथित रूप से अवैध रूप से बंधक बनाए रखने की जांच करने को कहा गया था।

सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय में एक व्यक्ति द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को अपने पास स्थानांतरित कर लिया, जिसने आरोप लगाया था कि उसकी दो बेटियों को ईशा फाउंडेशन के परिसर में बंधक बनाकर रखा गया है।

बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका किसी लापता व्यक्ति या अवैध रूप से हिरासत में लिए गए व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष पेश करने के निर्देश की मांग करते हुए दायर की जाती है।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश पारित किया, जब ईशा फाउंडेशन ने मद्रास उच्च न्यायालय के 30 सितंबर के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें कोयंबटूर पुलिस को निर्देश दिया गया था कि वह फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी मामले का विवरण एकत्र करे और आगे के विचार के लिए उन्हें अदालत के समक्ष पेश करे।

पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने निर्देश दिया कि पुलिस उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन में आगे कोई कार्रवाई नहीं करेगी। पीठ ने कहा कि पुलिस उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार शीर्ष अदालत के समक्ष स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेगी।

फाउंडेशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने की मांग की और कहा कि लगभग 150 पुलिस अधिकारी फाउंडेशन के आश्रम में प्रवेश कर चुके हैं और हर कोने की जांच कर रहे हैं।

पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दोनों महिलाओं से बातचीत की और बताया गया कि पुलिस बुधवार रात आश्रम से चली गई है।

न्यायालय ने कहा कि दोनों महिलाओं ने न्यायालय को यह भी बताया है कि वे स्वेच्छा से फाउंडेशन में रह रही हैं। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि मामले की सुनवाई 14 अक्टूबर से शुरू होने वाले सप्ताह में होगी।

सुनवाई के दौरान पीठ ने उन दो महिलाओं से ब्यौरा जानना चाहा जिनके पिता ने ईशा फाउंडेशन में अवैध रूप से बंधक बनाए जाने का आरोप लगाते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। 

उच्च न्यायालय ने 30 सितंबर को डॉ. एस कामराज द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें उन्होंने पुलिस को निर्देश देने की मांग की थी कि वह उनकी दो बेटियों को अदालत के समक्ष पेश करे और उन्हें आजाद कर दे, जिनके बारे में उनका आरोप है कि उन्हें ईशा फाउंडेशन के अंदर बंधक बनाकर रखा गया है।

याचिकाकर्ता तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर से सेवानिवृत्त प्रोफेसर थे। उनकी दो बेटियाँ हैं और दोनों ने इंजीनियरिंग में मास्टर्स किया हुआ है। दोनों ही ईशा फाउंडेशन से जुड़ीं।

याचिकाकर्ता की शिकायत यह थी कि फाउंडेशन कुछ लोगों का ब्रेनवॉश करके, उन्हें भिक्षुओं के रूप में परिवर्तित करके उनका दुरुपयोग कर रहा है तथा उनके माता-पिता और रिश्तेदारों को उनसे मिलने की भी अनुमति नहीं दे रहा है।

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