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काले धन की 'बाजीगरी’ का खतरनाक होता खेल

मुनाफा महज कुछ हजार रुपये लेकिन 'कॉरपोरेट दान’ करोड़ों में। कोलकाता के अनजाने से कोने में एक कंपनी तीन साल से कुछ इसी तरह अपना काम कर रही थी। अब इस कंपनी समेत कई और के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय और आर्थिक अपराध से जुड़ी कई और जांच एजेंसियों ने फाइलें खोल दी हैं।
काले धन की 'बाजीगरी’ का खतरनाक होता खेल

कोलकाता से दिल्ली तक जांच की तपिश बड़े राजनीतिक दलों में भी महसूस की जा रही है। यहां बात हो रही है कोलकाता की कंपनी त्रिनेत्र कंसल्टेंट प्राइवेट लिमिटेड की, जो मध्य कोलकाता के ब्रिटिश इंडिया स्ट्रीट की इमारत के एक छोटे से कमरे से चल रही थी। एक टेबल वाले इस दफ्तर से तीन अन्य प्राइवेट लिमिटेड कंपनियां चलाई जा रही थीं। यह कंपनी चर्चा में तब आई, जब बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने सीबीआई और ईडी के अधिकारी के पास अपनी पार्टी के आय-व्यय को लेकर 150 पेज के दस्तावेज जमा कराए जिसमें दिखाया गया था कि इस कंपनी ने लोकसभा चुनाव के पहले तृणमूल कांग्रेस को 1.4 करोड़ रुपये दान दिए जबकि 2014 में इस कंपनी का मुनाफा मात्र 13 हजार 589 रुपये था। एक साल पहले इसे चार हजार 121 रुपये का नुकसान हो गया था। कंपनीज एञ्चट 1956 के नियमों के अनुसार, कोई कंपनी अपने औसत मुनाफे का पांच प्रतिशत तक ही दान कर सकती है। दानदाता कंपनी तीन साल पुरानी होनी चाहिए। 25 अप्रैल, 2011 को पंजीकृत इस कंपनी को 1.4 करोड़ रुपये दान करने के लिए तीन साल तक कम से कम 28 करोड़ रुपये सालाना मुनाफा कमाना चाहिए था।

रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) के सूत्रों के अनुसार, इस कंपनी में पांच अन्य कंपनियों ने पांच फीसद से ज्यादा का निवेश किया है। दो निदेशक हैं- मनोज शर्मा और शशिकांत दास। इसी कंपनी के टेबल से चार और कंपनियां 'एरियन कॉमर्शियल’, 'दुर्गा फैशंस लिमिटेड’, 'फ्युचरस्पेस कंसलटेंट्स’ और 'फाउंडेशन फॉर हेल्थ वेलफेयर एंड डेवलपमेंट’ भी चलाई जा रही हैं। ये कंपनियां आपस में ही कारोबार किया करती थीं। निदेशक मनोज शर्मा का रिहाइशी पता एक झुग्गी बस्ती इलाके का पाया गया, जहां रह रहे उनके पिता बताए गए शख्स मजदूरी करते हैं।

त्रिनेत्र कंसल्टेंट्स से मिला दान तृणमूल कांग्रेस को कॉरपोरेट कंपनियों से मिले 20 करोड़ रुपये का हिस्सा है, जिनके बारे में विभिन्न एजेंसियां जांच कर रही हैं। इस कंपनी से दान किए गए 1.4 करोड़ रुपये के लेन-देन की कहानी भी रोचक है। 'जगतजननी कंसलटेंट्स प्राइवेट लिमिटेड’ नामक एक कंपनी 1.45 करोड़ रुपये अपने एक निजी बैंक खाते से त्रिनेत्र को ट्रांसफर करती है और दानदाता कंपनी तृणमूल कांग्रेस के खाते में, जो एक सरकारी बैंक में है। जगतजननी कंसलटेंट ही वह कंपनी है, जिसके निदेशक मनतोश कुमार यादव त्रिनेत्र के बोर्ड में भी थे। साथ ही, अन्य एक कंपनी त्रिलोक एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड के बोर्ड में भी। 2011-12 में तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी की पेंटिंग इसी कंपनी ने पांच करोड़ रुपये में खरीदी थी जबकि इसका टर्नओवर ही 50 हजार रुपये सालाना का था।

इनमें से किसी कंपनी का कोई निदेशक या कर्मचारी अब तक जांच एजेंसियों को नहीं मिला है। इनके छोटे-छोटे दफ्तरों में ताले लटक रहे हैं लेकिन यह तो साफ है कि तृणमूल कांग्रेस को मिले छोटे-से एक चंदे का सूत्र पकड़कर जांच एजेंसियां काला धन सफेद करने वाले बड़े नेटवर्क की ओर बढ़ रही हैं। विधानसभा चुनाव के ऐन पहले तृणमूल कांग्रेस के दस्तावेजों को लेकर केंद्रीय एजेंसियां सतर्क दिख रही हैं।

तृणमूल कांग्रेस के सुब्रत बख्‍शी जैसे नेता इसे चुनाव के मद्देनजर हाथ मरोड़ने की केंद्र सरकार की कोशिश बता रहे हैं। इस मामले में राजनीतिक निहितार्थ से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन कोलकाता में सक्रिय बेनामी कंपनियों के नेटवर्क से भी कोई इनकार नहीं कर सकता। ऐसा एक नेटवर्क, जिसके बारे में माना जा रहा है कि देश का सबसे बड़ा नेटवर्क है। 80 फीसदी से ज्यादा बेनामी कंपनियां कोलकाता से ऑपरेट करती हैं, जिनका काम ही है काला धन सफेद करना। भारत सरकार की 'रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज’ ऐसी कंपनियों की पूरी फेहरिश्त वित्त मंत्रालय को जमा कराई जा रही है।

कोलकाता में कहा जाता है कि एक-एक टेबल पर पांच-पांच कंपनियां चलती हैं या फिर कोई कारोबारी अपने ब्रीफकेस में ही 8-10 कंपनियां चलाता है। सूत्रों के अनुसार, काला धन सफेद करने के लिए ऐसी बेनामी कंपनियां रजिस्टर्ड कराने के मामले में कोलकाता अव्वल है। देश भर में ऐसे धंधे का 60 फीसदी से अधिक काम कोलकाता के 'वाणिज्यिक मोहल्लों’ की गलियों में फैली कंपनियों के जरिये हो रहा है, जिन्हें मुख्य रूप से एकाउंटेंसी फर्म्स संभालती हैं।

आरओसी के अनुसार, 2008-09 में फरवरी से मार्च के दौरान चार हजार नई कंपनियां पंजीकृत कराई गई थीं, लेकिन उनमें से डेढ़ हजार कंपनियों ने आरओसी में न तो अपना 'बैलेंस शीट’ जमा किया है और न ही सालाना रिपोर्ट दी है। आरओसी ने ऐसी कंपनियों को अपने कामकाज का ब्यौरा देने का नोटिस भेजा। दरअसल, आरओसी में पंजीकृत कंपनी को कंपनी अधिनियम के अनुसार, अपना बैलेंस शीट और सालाना रिपोर्ट हर साल जमा कराना ही होता है। आरओसी के पास अभी आठ लाख से अधिक कंपनियां पंजीकृत हैं। इनमें साढ़े छह लाख सक्रिय हैं। इनमें से 2008-09 में पंजीकृत चार लाख कंपनियों ने अपनी बैलेंस शीट तो आरओसी को भेजी है लेकिन एनुअल रिपोर्ट नहीं भेजी। आरओसी के सूत्रों के अनुसार, नई कंपनियों को जरूरी दस्तावेज जमा कराने के लिए 18 महीने की छूट दी जाती है। यानी पंजीकरण की तारीख से लेकर 18 महीने तक बगैर किसी जवाबदेही के लेन-देन की छूट मिलती है कंपनियों को। काला धन सफेद करने के विशेषज्ञ इसी प्रावधान का लाभ उठाते हैं।

पिछले तीन साल में कोलकाता के रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के यहां 16 हजार नई कंपनियां पंजीकृत कराई गईं। यह आंकड़ा देश में सबसे अधिक है। ये कंपनियां स्टील, ऑटोमोबाइल या भारी उद्योग सेग्मेंट की नहीं थीं। न ही लघु और मंझोले उद्योग से जुड़ी थीं। ये सभी कंसल्टेंसी कंपनियां हैं, जो वित्त, निवेश और शेयर मार्केट में काम करने वाली हैं। ठीक त्रिनेत्र कंसल्टेंसी, दुर्गा फैशंस या जगतजननी कंसल्टेंसी की तरह। नई बोगस कंपनियां बनाने का आलम यह है कि रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के दक्रतर में छुट्टी वाले दिन शनिवार और रविवार को भी नई कंपनी का पंजीयन कर दिया जाता है। चर्चित चिटफंड घोटाला कांड में शामिल सारधा समूह की 144 कंपनियों को शनिवार और रविवार को ही पंजीकृत किया गया था।

आयकर विभाग ने 2013-14 में कोलकाता से सात हजार 78 करोड़ रुपये की ब्लैक मनी का पता लगाया था। देश भर में उस साल महज 750 करोड़ रुपये का काला धन पकड़ा जा सका था। हाल में काला धन मामलों पर गठित एसआईटी ने कोलकाता के 15 व्यापारिक घरानों के खिलाफ जांच शुरू की है। इन घरानों में कोलकाता का ऐसा कारोबारी घराना भी है, जिसके बारे में आरोप है कि यूपीए-1 की सरकार में रेल मंत्री रहने के दौरान तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने रक्षा मंत्रालय से टायर आपूर्ति का बड़ा ऑर्डर दिलवाया था। आर्थिक अपराध की जांच करने वाली एजेंसी एसएफआईओ सूत्रों के अनुसार, उस कारोबारी घराने ने बिक्री कर बचाने के लिए हवाला के जरिये 12 सौ करोड़ रुपये विदेश भेज दिए और ऐसा करने के लिए बंद पड़े अपने एक कारखाने में उत्पादन और खरीद-बिक्री का खर्च दिखाया। रेल मंत्री ममता बनर्जी की पहल पर इस कारखाने समेत औद्योगिक समूह की तीन और इकाइयों को रक्षा मंत्रालय से टायर आपूर्ति का ऑर्डर मिला।

महाराष्ट्र बिक्री कर विभाग ने कोलकाता के औद्योगिक समूह की टायर और रबर निर्माता तीन कंपनियों समेत मुंबई स्थित पांच अन्य कंपनियों के खिलाफ मामला दर्ज किया। जांच चल ही रही है। इस औद्योगिक समूह ने अपने बंद पड़े टायर कारखाने के खाते में डेढ़ साल में 1200  करोड़ रुपये का खर्च दिखाया। टायर कंपनी के बंगाल के बाहर स्थित बाकी दो अन्य कारखानों के आंकड़े जोड़े जाएं तो सारा मामला पांच हजार करोड़ से ज्यादा का ठहरता है। इस समूह के बंगाल के अलावा उत्तर प्रदेश और दक्षिण भारत में भी रबर व टायर कारखाने हैं। इन टायर कंपनियों के दफ्तर कोलकाता, दिल्ली, मुंबई समेत कई महानगरों में हैं। विदेशों में न्यूयॉर्क, सिंगापुर समेत चार देशों में दफ्तर और कई देशों में उत्पादन इकाइयां हैं। बंगाल स्थित कारखाना अब लिक्विडेशन के लिए प्रस्तावित किया जा चुका है।

राजनीतिक दलों और व्यापारिक घरानों को काले धन के 'रोटेशन’ के अलावा कोलकाता में चल रही बोगस कंपनियों के नेटवर्क का इस्तेमाल उग्रवादी गुटों को धन मुहैया कराने के लिए किए जाने के सबूत भी मिल रहे हैं। बंगाल में दो साल पहले बर्दवान विस्फोट कांड के बाद जांच में जुटी एनआईए को हवाला के जरिये बांग्लादेश में सक्रिय आतंकी संगठन जमीयत उल उलेमा (जेयूएमबी) से हवाला के जरिये धन के लेन-देन की भनक लगी। इसकी जांच जारी है। आर्थिक अपराधों की दृष्टि से कोलकाता बारूद के ढेर पर बैठा नजर आता है। कारोबारी मुनाफे के लिए काले धन को छुपाने और उसे जायज बनाने का अवैध खेल अब सांस्थानिक रूप ले चुका है। राजनीतिक पार्टियां, हवाला कारोबारी, उग्रवादी-आतंकवादी गिरोहों की भागीदारी खतरनाक रूप ले चुकी है।

 

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