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नक्सल प्रभावित इलाकों में आकाशवाणी बनेगा हथियार

माओवादी प्रभावित जिले में ऑल इंडिया रेडियो (आकाशवाणी) ने तय किया है कि वॉल्व वाली पुरानी तकनीक को बदल कर उच्च क्षमता वाले नए ट्रांसमीटर लगाए जाएं ताकि सरकार अपने मन की बात के साथ लोगों की आवाज जन की बात भी सुन सके। छत्तीसगढ़ में रेडियो स्टेशन का न सिर्फ कलेवर बदल जाएगा बल्कि इसके कार्यक्रम और स्वरूप भी बदला जाएगा। अच्छे ट्रांसमीटरों के अभाव में लगभग बेकार पड़े रेडियो स्टेशनों पर सरकार 32 करोड़ रुपये निवेश कर छह नए आकाशवाणी के स्टेशन बनाएगी।
नक्सल प्रभावित इलाकों में आकाशवाणी बनेगा हथियार

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने तय किया है कि 35 सबसे ज्यादा माओवादी प्रभावित जिलों में अतिरिक्त रूप से 300 करोड़ रुपये रेडियो स्टेशनों के सुधार पर लगाए जाएंगे। मंत्रालय सुकमा, नारायणपुर, जगदलपुर, दंतेवाड़ा और गया जिले में पांच नए रेडियो स्टेशन शुरू करने की योजना बना रहा है। पटना और गया स्टेशनों को ज्यादा शक्तिशाली ट्रांसमीटर दिए जाएंगे जो 30 आदिवासी भाषाओं में अपने कार्यक्रम प्रसारित करेगा। इनमें भोजपुरी, मैथिली, धुर्वी, डोरली, छत्तीसगढ़ी, सिंधी, संथाली, देसिया, मुंडारी, कोर्कू, खारिया, हो और बांग्ला शामिल होंगी। दूसरी बोलियों और भाषा के बारे में मंत्रालय के नोट्स में लिखा है, केंद्र ने तय किया है कि माओवादी और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में वामपंथ के एकतरफा प्रचार का प्रत्युत्तर देने के लिए संस्कार गीत, पारंपरिक लोक संगीत जैसे कार्यक्रम शुरू किए जाएंगे। समुदाय में शांति और कल्याण के लिए स्थानीय भाषाओं में ज्ञान की बातें प्रसारित की जाएंगी। इसके लिए धार्मिक और आध्यात्मिक विभूतियों का सहारा लिया जाएगा। नोट में यह भी कहा गया है कि यह नए विषयवस्तु नीति के अंतर्गत है जो ऑल इंडिया रेडियो के साथ लोगों तक उन 35 जिलों तक पहुंचेगा जो सबसे ज्यादा वामपंथ के प्रभाव में है। फिलहाल इन इलाकों में लोगों के पास न टेलीविजन है न अखबार। उनके लिए मनोरंजन का एकमात्र साधन सीमित रूप से रेडियो सुविधा ही है।

नए तरह के कार्यक्रम छह नए उच्च क्षमता वाले ट्रांसमीटर्स के जरिए प्रसारित किए जाएंगे। इन कार्यक्रमों में गरीबी हटाने की सरकारी योजनाओं और हिंसा की वजह से बर्बाद हुए लोगों की वास्तविक कहानियां और कई तरह के लोगों – कला संस्कृति से जुड़े हुए लोग, कानून से जुड़े लोग, खिलाड़ी आदि के साक्षात्कार होंगे। अभी तक एआईआर के पास प्रसारित की जाने वाली सामग्री या तो हिंदी में या तेलूगु में।

इसमें खास बात यह होगी कि इन्हीं क्षेत्रों के पारंपरिक शांति गीत इसमें प्रसारित किए जाएंगे। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारी के अनुसार, हम ऐसे गीत रिकॉर्ड करना चाहते हैं और एक निश्चित अवधि में इसे प्रसारित करना चाहते हैं। इस तरह के 15 मिनट के कार्यक्रम से लोगों में चेतना आएगी कि हिंसा कैसे उन्हें बर्बाद कर रही है और शिक्षा और शांति कैसे उनका जीवन बदल सकती है। मोबाइल फोन पर बातचीत से संबंधित कार्यक्रम की भी रूपरेखा बनाई गई है, जो खबरों के साथ प्रसारित करने की योजना है। दिल्ली में बैठी सरकार को भी लगने लगा है कि ज्ञान बांटने वाले एकतरफा कार्यक्रमों के दिन लद गए हैं। इसलिए 30 स्थानीय आदिवासी भाषाओं में संवाद करते कार्यक्रमों स्वागतयोग्य है। मोबाइल फोन अब सुदूर क्षेत्रों तक भी पहुंच गए हैं। यहां तक की माओवाद प्रभावित इलाकों में भी इनकी पहुंच है। माओवादी स्थानीय लोगों के दबाव में हैं जो चाहते हैं कि माओवादी उन्हें मोबाइल फोन इस्तेमाल करने दें। यदि रेडियो को इंटरनेट और मोबाइल से जोड़ दिया जाए तो रेडियो की ताकत बढ़ जाएगी और यह लोकतांत्रिक द्विपक्षीय संवाद का एक बेहतर माध्यम बन जाएगा। इस वजह से इन इलाकों में बहुत सी बातें बदल जाएंगी। इन कार्यक्रमों से आकाशवाणी ऐतिहासिक भूमिका अदा करेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो की ताकत को पहचाना और मन की बात शुरू की। इसका प्रभाव भी पड़ा। लेकिन अब जन की बात की जरूरत है क्योंकि सुनना भी जरूरी है।

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