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कौन हैं गौरी लंकेश और कुछ लोग उनके खून के प्यासे क्यों थे?

गौरी लंकेश ने अपनी कन्नड़ पत्रिका में आखिरी संपादकीय फेक न्यूज पर लिखा था और उसका टाइटल था- फेक न्यूज़ के जमाने में। सोशल मीडिया में भी वह काफी सक्रिय थीं। उन्होंने आखिरी बार ट्विटर में एक खबर को रीट्वीट किया था, जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में फैलाई जा रही फेक न्यूज की पड़ताल की गई थी।
कौन हैं गौरी लंकेश और कुछ लोग उनके खून के प्यासे क्यों थे?

मंगलवार को बेंगलुरू में कुछ अज्ञात तत्वों ने वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश को उनके घर में गोली मारकर हत्या कर दी। गौरी लंकेश कन्नड़ भाषा की साप्ताहिक ‘गौरी लंकेश पत्रिका’ की संपादक थीं। उन्हें निर्भीक और बेबाक पत्रकार माना जाता था। गौरी कन्नड़ और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखती थीं। वह कर्नाटक की सिविल सोसायटी की चर्चित चेहरा थीं। गौरी कन्नड़ पत्रकारिता में एक नए मानदंड स्थापित करने वाले पी. लंकेश की बड़ी बेटी थीं। इस पत्रिका के जरिए गौरी ने 'कम्युनल हार्मनी फोरम' को काफी बढ़ावा दिया। वह वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थीं और हिंदुत्ववादी राजनीति की मुखर आलोचक थीं। कहा जा रहा है कि पिछले दो सालों से उन्हें दक्षिणपंथी संगठनों की तरफ से धमकियां दी जा रही थीं।

इस हत्या के बाद अनेक जगहों पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। इसे कलबुर्गी, गोविंद पानसरे और नरेंद्र दाभोलकर की हत्या से जोड़ा जा रहा है और इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला करार दिया गया है। वहीं सोशल मीडिया में ऐसे तत्व भी सक्रिय हो गए हैं, जो हत्या को जायज ठहरा रहे हैं। कई लोग गौरी लंकेश की कन्हैया और उमर खालिद के साथ फोटो शेयर करते हुए उन्हें देश विरोधी और नक्सली करार दे रहे हैं। 

गौरी लंकेश कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं में कॉलम लिखती थीं। बताया जा रहा है कि वैचारिक मतभेद को लेकर गौरी लंकेश कुछ लोगों के निशाने पर थी। गौरी लंकेश जिस साप्ताहिक पत्रिका का संचालन करतीं थी उसमें कोई विज्ञापन नहीं लिया जाता था। उस पत्रिका को 50 लोगों का एक ग्रुप चलाता था। पिछले साल बीजेपी सांसद प्रह्लाद जोशी की तरफ से दायर मानहानि मामले में गौरी लंकेश को दोषी करार दिया गया था, जिन्होंने उनके टैब्लॉयड में भाजपा नेताओं के खिलाफ एक खबर पर आपत्ति जताई थी। गौरी लंकेश मीडिया की आजादी की पक्षधर थीं।

गौरी लंकेश ने लेखिका और पत्रकार राणा अयूब की किताब गुजरात फाइल्स का कन्नड़ में अनुवाद किया था। राणा अयूब ने इस बारे में ट्वीट भी किया।


गौरी लंकेश ने अपनी कन्नड़ पत्रिका में आखिरी संपादकीय फेक न्यूज पर लिखा था और उसका टाइटल था- फेक न्यूज़ के जमाने में।  सोशल मीडिया में भी वह काफी सक्रिय थीं। उन्होंने आखिरी बार ट्विटर में एक खबर को रीट्वीट किया था, जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों के बारे में फैलाई जा रही फेक न्यूज की पड़ताल की गई थी। इसके अलावा भी वो इस मुद्दे पर खुद भी सक्रिय थीं।

फेक न्यूज के खिलाफ भी वह लगातार सक्रिय थीं।

साथ ही फेसबुक पर भी वे अपनी बेबाक राय रखती थीं। हाल ही में उन्होंने कंगना रनौत के एक कार्यक्रम में दिए गए बेबाक इंटरव्यू के बाद कंगना का समर्थन किया था।

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