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मुजफ्फरपुर त्रासदी की तीन दर्दनाक कहानियां, जानें कुशासन के कहर से कैसे बिछड़े लाल

“बच्चों की मौत का सिलसिला शुरू होने पर केंद्र और राज्य सरकारें वादे पर वादे करने शुरू कर देती हैं” 1....
मुजफ्फरपुर त्रासदी की तीन दर्दनाक कहानियां, जानें कुशासन के कहर से कैसे बिछड़े लाल

“बच्चों की मौत का सिलसिला शुरू होने पर केंद्र और राज्य सरकारें वादे पर वादे करने शुरू कर देती हैं”

1. जिन्होंने कभी लीची नहीं खाई

रबीना कुमारी, 4 वर्ष

गांव-मा‌णिक बिशुनपुर

जिला-मुजफ्फरपुर

अचानक बिगड़ी हालतः रबीना सामान्य दिनों की तरह एक दिन पहले रात का खाना खाने के बाद सोने चली गई। तड़के लगभग तीन बजे उसके माता-पिता ने देखा कि वह तेज बुखार से कांप रही है। वे पहले उसे पास के ओझा के पास ले गए। उसकी हालत में कोई सुधार न होता देख वे पहले उसे सदर हॉस्पिटल, फिर मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज ले गए। वहां डॉक्टरों ने कहा कि बच्ची की पहले ही मौत हो चुकी है। 

रहस्यः यह एक रहस्य है कि आखिर कैसे चार साल की रबीना को एईएस हुआ और उसकी मौत हुई। 200-250 रुपये की दिहाड़ी पर मजदूरी करने वाली चुनचुन देवी और चुल्हाई राम के घर जन्मी रबीना स्कूल नहीं गई, लीची नहीं खाई, स्थानीय तालाबों में नहीं नहाई औऱ न ही घरेलू जानवरों के साथ खेली या खुले में शौच गई। उसने एक दिन पहले रात का खाना भी नहीं छोड़ा। उसकी देखभाल में देरी के अलावा, जहरीली लीची, हीट स्ट्रोक, संक्रमण या कुपोषण की जो संभावित वजहें बताई जा रही हैं, वह रबीना के मामले में सही नहीं ठहरती हैं।

जांच की मांगः स्क्रब टाइफस वायरस से एईएस। 2016 के बाद से ही शोधकर्ता असम, मिजोरम, गोरखपुर और ओडिशा में एईएस के प्रकोप के इस उभरते संक्रमण से जोड़ रहे हैं। सेंटर फॉर मेडिकल एंटोमोलॉजी ऐंड वेक्टर मैनेजमेंट, एनसीडीसी, दिल्ली के एंटोमोलॉजिस्ट्स ने मई 2013 में मुसहरी ब्लॉक का सर्वेक्षण किया और पाया कि सभी गांव चूहा और उसके जैसे कुतरने वाले परजीवियों से प्रभावित हैं। जैसे- चूहे के पिस्सू, घुन और जूं वगैरह सभी स्थापित स्क्रब टाइफस वैक्टर हैं।

 

2. शौचालय रहित घर

दिलीप कुमार, 3 वर्ष

गांव- खोरपट्टी

जिला- मुजफ्फरपुर

अचानक मौतः दिलीप को तीन दिनों से पेट दर्द की शिकायत थी। 17 जून की सुबह साढ़े तीन बजे के करीब वह कांपने और थरथराने लगा। दिहाड़ी मजदूरी करने वाले पिता दिनेश राम उसे स्थानीय डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर की बताई दवा से फायदा नहीं हुआ। फिर अचानक सुबह चार बजे उसे तेज बुखार हो गया। जब उसके पिता घर से 20 किलोमीटर दूर एसकेएमसीएच हॉस्पिटल पहुंचे और इलाज की प्रक्रिया शुरू होती, तभी बच्चे ने दम तोड़ दिया। दिलीप के पिता दिनेश राम आगे कहते हैं कि बच्चा रात में बिना खाना खाए सो गया था। लेकिन, रोजाना लीची नहीं खा रहा था। पूरे सीजन में उसने कभी दो-चार लीची खाई होगी।

रहस्यः दिलीप जहां रहता था, वहां कीचड़ और घास-फूस के घर स्थानीय स्वच्छता की बदतर स्थिति को बयां करते हैं। और, जैसा लगता है कि पूरे गांव में शौचालय की कमी को देखते हुए दिलीप का परिवार भी खुले में शौच करता है।

जांच की मांगः खुले में शौच से भूजल के एंटेरोवायरस से प्रदूषित होने की संभावना बढ़ जाती है, जो कुपोषित बच्चों में घातक एन्‍सेफेलाइटिस के लिए जिम्मेदार होते हैं। पटना एम्स के डायरेक्टर गिरिश कुमार सिंह के हालिया अध्ययन में वायरस ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया है, जो बताता है कि कैसे खुले में शौच उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में सरयू नदी और मुजफ्फरपुर, बिहार में गंडक नदी में बहता जाता है। इस कारण इन इलाकों में एन्सेफलाइटिस की बीमारी बढ़ जाती है। बिहार के मुजफ्फरपुर को लीची के बागों में खाद के रूप में मानव मल का उपयोग करने के लिए भी जाना जाता है।

 

3. जिसने लीची खाई

जाहिद, 4 वर्ष

गांव- बिशुनपुर चांदटोला

जिला- मुजफ्फरपुर

अचानक मौतः उस दिन तक सबकुछ ठीक था, जब तक एक राजमिस्‍त्री स्त्री इदरीश और उसकी पत्नी रेहाना ने एईएस की वजह से अपना बेटा नहीं खोया था। जाहिद अपना खाना खाकर सोने चला गया था। सुबह लगभग चाढ़े चार बजे के आसपास उसे तेज बुखार हो गया। उसके माता-पिता उसे मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज ले गए। हालांकि, सड़कों की खुदाई और आसपास कोई वाहन नहीं होने की वजह से उन्हें कुछ देर हो गई। उसे तुरंत आईसीयू में ले जाया गया, लेकिन तीन घंटे बाद ही मृत घोषित कर दिया गया।

रहस्यः जाहिद की मौत कैसे हुई? माता-पिता का कहना है, “जिस लड़के ने स्कूल जाना शुरू नहीं किया था, वह अपने चार भाई-बहनों और चचेरे भाइयों के साथ खेलते हुए अपने लीची वाले बगीचे में हर दिन अपने गुंबदनुमा झोपड़ी से पत्थर फेंकते हुए दिन गुजारता था। उसने फल तोड़े और खाए होंगे। अस्पताल पहुंचने में देरी के अलावा क्या कोई और बात थी?

जांच की मांगः एक संभावित स्पष्टीकरण यह हो सकता है कि लीची के फल से लदे पौधे चमगादड़ को आकर्षित करते हैं, जिसे एन्सफेलाइटिस फैलाने वाले वाहक के तौर पर जाना जाता है। चमगादड़ों से दूषित लीची खाने से संक्रमण हो सकता है। हालांकि, एन्सेफलाइटिस की सबसे आम वजह अर्बोवायरस है। यह एक ऐसा वायरस, जो कीड़े के काटने से फैलता है। हो सकता है कि जाहिद को लीची के पास पनपने वाले मच्छरों और मक्खियों ने काटा हो, जिससे वह संक्रमित हो गया। इस संक्रमण की वजह से वह एन्सेफलाइटिस का शिकार हो गया, जिससे उसकी मौत हो गई।

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मुजफ्फरपुर जिले का मुसहरी ब्लॉक। ब्लॉक मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर है, बिशुनपुर माणिक टोला। इसका रास्ता माणिक गांव के संपन्न लोगों के घरों के किनारे से गुजरते हुए पहुंचता है। टोले में 15-20 मुसहर समाज के लोगों की झोपड़ी और अध-पक्के मकान हैं। यहीं एक झोपड़ी में चुल्हाइ राम रहते हैं। चुल्हाइ राम मजदूरी कर परिवार के लिए दो जून की रोटी की व्यवस्था करते हैं। इनकी चार वर्षीय बच्ची रबीना की मौत 11 जून को चमकी बुखार से हो गई। 10 दिन बाद 21 जून को सुबह 10 बजे उनके घर पहुंचे, तो चुल्हाइ राम कमाने निकल गए थे। घर पर मृतक बच्ची की मां चुनचुन देवी 10 माह के बच्चे को गोद में लिए घर के गेट पर कुछ महिलाओं के साथ उदास बैठी थी।

बिशुनपुर टोला से एक किमी आगे बढ़ने पर खोरपट्टी टोला में हरिजन समाज के लोग रहते हैं। इस टोला से आधा किलोमीटर की दूरी पर लीची बागान हैं, जहां कभी-कभी टोले के बच्चे खेल-कूद करने जाते हैं। इस टोला के रहने वाले दिनेश राम एक कमरे की झोपड़ी में रहते हैं, जिनके तीन वर्षीय बच्चे दिलीप कुमार की मौत 17 जून को हो गई।

खोरपट्टी से आधा किलोमीटर की दूरी पर बिशुनपुर चांदटोला है, जहां मुस्लिम समाज के 10-15 घर हैं। टोले से ही सटा लीची बागान है। इस टोला में भी एक चार वर्षीय लड़का जाहिद की मौत चमकी बुखार से आठ जून को हो गई। मृतक के माता-पिता आर्थिक रूप से काफी कमजोर हैं और एक कमरे की झोपड़ी में रहते हैं। इसके अलावा कांटी, मोतीपुर सहित कई ब्लॉक इस साल चमकी बुखार की चपेट में आ गए। चमकी बुखार के भर्ती हुए मरीजों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति काफी कमजोर और कुपोषण की शिकार है। पिछले 10-12 वर्षों से हर साल जून में यहां एन्सेफलाइटिस बढ़ जाता है। बच्चों की मौत का सिलसिला शुरू होने पर केंद्र और राज्य सरकारें वादे पर वादे करने शुरू कर देती हैं। लेकिन, हकीकत यह है कि प्रभावित ब्लॉक में न तो जागरूकता अभियान चलता है और न समय से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में समुचित व्यवस्था होती है। अस्पताल की हालत बुरी है और गंदगी का अंबार है। 2014 में केंद्र में स्वास्‍थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने ऐलान किया था कि यहां एक सुपरस्पेशिएलिटी अस्पताल बनेगा लेकिन उसका अता-पता नहीं है। तथ्य यह भी है कि 2005 से ही राज्य में ज्यादातर समय स्वास्‍थ्य विभाग भाजपा के मंत्रियों के पास ही रहा। इस बार फिर मुख्यमंत्री ने 2500 बेड के अस्पताल की घोषणा की है। यह घोषणा कितने वर्षों में पूरा होती है, यह तो वक्त बताएगा।

 

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