Advertisement

डीए: मोदी सरकार का चुनावी राज्यों पर दबाव, ममता बौखलाईं

कर्मचारियों के लिए छह फीसद महंगाई भत्ते (डीए) की किश्त की घोषणा कर केन्द्र सरकार ने चुनावी राज्यों वाली सरकारों पर दबाव बना दिया है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केन्द्र की मोदी सरकार की घोषणा से बौखलाई बताई जा रही हैं, क्योंकि वहां सरकारी कर्मचारियों के स्तर पर चुनौतियां ज्यादा हैं। बंगाल सरकार के कर्मचारियों तनख्वाह केन्द्र से अब 54 फीसद कम हो गई है। अब ममता बनर्जी राज्य सरकार के कर्मचारियों को खुश करने का रास्ता ढूंढ रही हैं। यही हाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में भी है। हालांकि, इन राज्यों में तनख्वाहें छह से 12 फीसद ही कम हैं। इसलिए, कर्मचारियों की नाराजगी की चिंता नेताओं को कम है।
डीए: मोदी सरकार का चुनावी राज्यों पर दबाव, ममता बौखलाईं

केन्द्र ने अपने एक करोड़ आठ लाख कर्मचारियों के लिए होली के उपहार स्वरूप छह फीसद डीए की किश्त का ऐलान किया। आजादी के बाद यह दूसरी बार है कि बंगाल के कर्मचारियों की तनख्वाह 54 फीसद कम हो गई है। बंगाल सरकार ने पिछले चार साल से कर्मचारियों का डीए नहीं बढ़ाया है। बैकलॉग चला आ रहा है। वामो सरकार के जमाने में यह अंतर 16 फीसद था। केन्द्र की ताजा घोषणा के पहले उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीशा, गुजरात, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे 15 राज्यों में डीए का कोई बकाया नहीं था। अब ताजा घोषणा से इन राज्यों की सरकारों पर छह फीसद का बकाया चढ़ गया है। पंजाब, असम और महाराष्ट्र ने पिछला बकाया नहीं दिया था। इसलिए इन राज्यों का बकाया बढ़कर अब 12 फीसद हो गया है।

बंगाल सरकार का सिरदर्द ज्यादा बढ़ गया है। केन्द्र के कर्मचारियों की तुलना में आधी तनख्वाह लेकर राज्य के कर्मचारी संगठन नाराज हो रहे हैं। राज्य में सरकार और पेंशनयाफ्ता कर्मचारियों को मिलाकर संख्य 10 लाख है। तृणमूल कांग्रेस के एक सांसद कहते हैं, ‘पांच साल तक मेले, खेल, उत्सव, क्लबों को अनुदान आदि में राज्य सरकार ने खैरात में पैसे बहाए हैं। नकली शराब में मरने वालों को 10-10 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया। इधर का फंड उधर कर कर्मचारियों की तनख्वाह किसी तरह दी गई। अगर वेतन मद की ओर शुरू से ध्यान दिया जाता तो उनकी नाराजगी की चिन्ता नहीं सताती।’ दरअसल, बंगाल में अरसे से डीए का मामला लंबित है। अब जाकर राज्य सरकार ने छठा वेतन आयोग गठित किया है। इंटक समर्थित कॉन्फेडरेशन ऑफ स्टेट गवर्नमेंट इंप्लाइज के नेता मलय मुखर्जी के अनुसार, ‘पांच साल से सिर्फ आश्वासन मिल रहा है। बकाए को लेकर कर्मचारी बेहद नाराज हैं।’ वाम मोर्चा समर्थित यूनियन के मनोज गुहा कहते हैं, ‘चुनाव में कर्मचारियों की नाराजगी का पता चलेगा।’ माकपा नेता और विपक्षी कांग्रेस-तृणमूल गठबंधन के नेता सूर्यकांत मिश्र कहते हैं, एक तरफ बकाया डीए और दूसरी तरफ महंगाई- राज्य सरकार के खिलाफ यह मुद्दा हम उठा रहे हैं। दूसरी ओर, तृणमूल के महासचिव और राज्य के मंत्री पार्थ चटर्जी कहते हैं कि बंगाल की आर्थिक हालत खराब है। ऐसे में कर्मचारी समझते हैं कि उन्हें तनख्वाह कैसे मिल रही है। इसका कोई असर नहीं होगा।

तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी में भी केन्द्र और राज्य के कर्मचारियों के वेतन में फर्क आया है, लेकिन उन राज्यों में अंतर कम होने से यह समझाना आसान रहेगा कि चुनाव आचार संहित के चलते राज्य सरकार अब कोई फैसला नहीं कर सकती। केन्द्र ने अपने कर्मचारियों के लिए ऐलान किया है, इसलिए उसके फैसले पर आचार संहिता लागू नहीं होगी। 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad