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चर्चाः उच्च सदन, ऊंचे पद, काम अधूरे | आलोक मेहता

प्रसिद्ध पत्रकार और राज्यसभा के पूर्व सदस्य कुलदीप नायर ने बहुत पहले यह कानूनी लड़ाई लड़ी थी कि संसद के उच्च सदन में मूलतः संबंधित प्रदेश के नेता को ही चुने जाने का प्रावधान हो। श्री नायर यह लड़ाई जीत नहीं सके, लेकिन विभिन्न प्रदेशों के लोग, प्रादेशिक नेता और कार्यकर्ता बाहरी नेताओं को फूलमालाएं पहनाने और जय-जयकार करने के बाद भी मन से दुःखी और दर्द झेलते रहे। इसलिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर नरेंद्र मोदी द्वारा असम की अनदेखी तथा योजनाओं का क्रियान्वयन न करने के आरोप राजनीतिक होने के बावजूद सही हैं।
चर्चाः उच्च सदन, ऊंचे पद, काम अधूरे | आलोक मेहता

मनमोहन सिंह लगभग 25 वर्षों से राष्ट्रीय राजनीति में राज्यसभा के नेता के रूप में प्रतिष्ठित रहे हैं। पांच वर्ष वित्त मंत्री और दस वर्ष प्रधानमंत्री रहने के लिए उन्होंने असम की मतदाता सूची में नाम अवश्य दर्ज कराए रखा, लेकिन प्रदेश के आर्थिक विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया। यों निरपेक्ष भाव, विनम्रता और ईमानदारी के लिए कांग्रेस के अलावा भाजपा सहित प्रतिपक्ष के नेता मनमोहन सिंह की तारीफ करते रहे हैं लेकिन असम की कई महत्वपूर्ण योजनाओं के लिए केंद्र सरकार से प्रदेश को हर साल पर्याप्त धनराशि ही नहीं दी गई। इसके लिए भी क्या वह या उनके समर्थक, सलाहकार कांग्रेस नेतृत्व यानी सोनिया गांधी को दोषी ठहरा सकते हैं? असलियत यह है कि राजीव-सोनिया गांधी के प्रयासों से ही असम और पूर्वोत्तर राज्यों में कांग्रेस की साख अब तक बनी रही। प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठकर असम के लिए फंड देने में दस जनपथ पर कतई स्ट्रीट ब्रेकर नहीं लग सकता था। समस्या यह है कि एक किराए की पर्ची लेकर किसी प्रदेश का प्रतिनिधि चुने जाने से क्षेत्र विशेष के प्रति अधिक प्यार नहीं उमड़ता और न ही जनता के प्र‌ति जवाबदेही बनती है। मनमोहन राज के पन्ने पलटने पर पता चलेगा कि पंजाब के अकाली मुख्यमंत्री केंद्र से अधिकाधिक फंड मिलने के ‌बाद मनमोहन सिंह को शानदार गुलदस्ता भेंट करते हुए फोटो खिंचवाते रहे हैं। वैसे मनमोहन सिंह अकेले नहीं हैं। कांग्रेस, भाजपा, जनता दल (यू), समाजवादी पार्टी, मार्क्सवादी और कम्युनिस्ट ‌पार्टी के भी कई शीर्ष नेता ऐसे राज्यों से चुने जाकर संसद तथा शीर्ष पदों पर पहुंचे हैं और उन प्रदेशों के विकास में उनका कोई खास योगदान नहीं रहा है। राज्यसभा में नामजद होने वाले भारत रत्न सचिन तेंदुलकर और रेखा जैसी हस्तियां तो पूरे बरस में दो-चार बार ही केवल दर्शन देती रही हैं। जनता की बात छोड़िये, संसद और संविधान संशोधन के मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए उनके पास समय नहीं होता। फिर भी जनता ऊंचे पदों पर आसीन सबका सम्मान करती है और अपना दर्द छिपाए रहती है।

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