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चर्चाः रक्षा सौदे पर दलाली के काले बादल | आलोक मेहता

दलाली के घने काले बादल के खतरों को देखते हुए पिछले 15 वर्षों के दौरान हर सरकार रक्षा सामग्री की खरीदी में देरी करती रही है। फिर भी बोफोर्स तोप खरीदी से लेकर अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टर खरीदी के सौदे में दलाली के आरोपों ने संपूर्ण राजनीतिक व्यवस्‍था को हिलाकर रखा है।
चर्चाः रक्षा सौदे पर दलाली के काले बादल | आलोक मेहता

इटली की अदालत में हेलीकाप्टर खरीदी में दलाली करने वालों को दंडित किए जाने के बाद भाजपा ने इस समझौते में सत्तारूढ़ कांग्रेसी नेताओं को निशाना बनाया है। लेकिन इस बार कांग्रेस बचाव की मुद्रा के बजाय स्वयं कड़ी कार्रवाई की मांग के साथ आक्रामक तेवर दिखा रही है। इसमें कोई शक नहीं कि अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टर खरीदी में गड़बड़ी की सूचनाएं कांग्रेस सरकार में ही सार्वजनिक हो गई ‌थीं और तभी मामला सी.बी.आई. को सौंपकर वेस्टलैंड कंपनी को भविष्य के लिए प्रतिबंधित (ब्लैक लिस्टेड) कर दिया गया था। अत्याधुनिक हेलीकाप्टर का सौदा लगभग 3600 करोड़ रुपये का था और इटालियन अदालत में दलाली करने वालों के विवरण के साथ विभिन्न स्तरों पर दी गई धनराशि का उल्लेख भी है। इस दृ‌िष्‍ट से भाजपा सरकार को पहले से सी.बी.आई. जांच की प्रक्रिया तेज करवा देनी चाहिए थी। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और उनके सहयोगी यह दलील भी दे रहे हैं कि दो वर्षों से सरकार ने जांच पूरी करवाने के ‌लिए क्या किया? वे तो आरोप सिद्ध होने पर सजा भुगतने के ‌लिए भी तैयार हैं। मतलब, अब लड़ाई राजनीतिक हो गई है। असली समस्या इन दिनों चल रहे विधान सभाओं के चुनाव के साथ अगले वर्ष उ.प्र., पंजाब, उत्तराखंड जैसे राज्यों के चुनावों के ‌लिए भी एक बार फिर भ्रष्‍टाचार बड़ा मुद्दा बन सकता है। सत्ता में आने के बाद भी भाजपा निरंतर आक्रामक मुद्रा में है और काग्रेस उसे किसी बड़े घोटाले के आरोप में घेर नहीं पाई है। हेलीकाप्टर खरीदी कांड में जांच और अदालती फैसले में समय लगेगा, लेकिन भाजपा-संघ तथा उनके समर्थक संगठनों के भयावह प्रचार अभियान से कांग्रेस निरंतर कठघरे में खड़ी दिखाई देगी। इस राजनीतिक संघर्ष के कारण एक बार फिर भारतीय सुरक्षा सेवाओं के लिए प्रस्तावित बड़े रक्षा सौदों में अति सतर्कता और छानबीन के कारण विलंब होगा। थल, वायु और नौ सेनाओं के पास इस समय संसाधनों की बेहद कमी है। ए.के. एंटनी की तरह वर्तमान रक्षा मंत्री मनोहर परिकर भी फूंक-फूंक कर आगे बढ़ना चाहते हैं। ‌सत्ता में आने के बाद दो वर्ष होने जा रहे हैं और कुछ देशों से समझौतों के बावजूद कोई बड़ी खरीदी नहीं हो पाई है। दलाली की कालिख और राजनीतिक दलदल का नुकसान सेना को भुगतना पड़ रहा है।

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