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चर्चाः परदेशी साइबर दस्युओं के खतरे | आलोक मेहता

सरकार देश में आतंकवाद और कानून व्यवस्‍था की समस्या से निपटने के लिए इंफॉर्मेशन टेक्नालॉजी एक्ट में फिर एक नया कानून लाने की तैयारी कर रही है। इस एक्ट में 66ए के तहत इंटरनेट सुविधा पर नजर रखने का प्रावधान 2008 में किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में यह धारा इस आधार पर रद्द कर दी थी कि इससे अभिव्यक्ति की आजादी का अतिक्रमण होता है।
चर्चाः परदेशी साइबर दस्युओं के खतरे | आलोक मेहता

इसके बाद गृह मंत्रालय और संसदीय समिति ने पुरानी धाराओं की अस्पष्टता दूर करते हुए आतंकवाद और हिंसक गतिविधियों पर नियंत्रण को आधार बनाकर नए नियमों की सिफारिश कर दी है। जल्द ही इस पर संसद में विचार-विमर्श के बाद फैसला होगा। इस मुद्दे पर फिर असहमतियों और कानूनी अपीलों की संभावनाएं बनी रहेंगी। यों सरकार मोबाइल इंटरनेट इत्य‌ाद‌‌ि से जुड़े डिजिटल इंडिया अभियान में एक लाख करोड़ डॉलर की पूंजी लगने की उम्मीद संजोए हुए हैं। इस प्रगति के साथ अंदरूनी खतरों को लेकर सरकार पुराने अनुभवों को ध्यान में रखकर कुछ कदम उठा सकती है। लेकिन इससे गंभीर खतरा परदेसी साइबर दस्युओं यानी हैकर्स का बढ़ता गया है और समय रहते उस हमले को रोकने के लिए भारत सरकार और डिजिटल अभियानों से जुड़े गैर सरकारी कंपनियों ने व्यापक इंतजाम नहीं किए हैं।

सरकार जब यह मानती है कि आतंकवाद अंतरराष्ट्रीय समस्या है, तब यह क्यों नहीं समझती कि साइबर क्षेत्र के अंतरराष्ट्रीय हैकर्स भारत को निशाना बनाकर वर्षों से सक्रिय हैं। चीन और पाकिस्तान ने पिछले वर्षों के दौरान सरकार की कई महत्वपूर्ण संवेदनशील जानकारियां हैक की। शीर्षस्‍थ सरकारी अधिकारी इस बात को जानते हैं। समय-समय पर इस मुद्दे पर चर्चा हुई है। विदेश और रक्षा मंत्रालय की जानकारियां चोरी होने की घटनाएं पहले उजागर भी हो चुकी हैं। चीन के हैकर्स ने तो अमेरिकी तंत्र को हिला दिया था और उससे कई देशों से जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक हो गई थी।

साइबर विशेषज्ञों के अनुसार चीन ने आई.टी. क्षेत्र में सेंध लगाने के लिए कम से कम 20 हजार हैकर्स प्रशिक्षित कर रखे हैं। चीन के हथियारों और तकनीकी का उपयोग करने वाले पाकिस्तान में भी ऐसी चोरी-डकैती के खिलाड़ी तैयार कर रखे हैं और आतंकवादी हमलों में चोरी गई संवेदनशील जानकारियों से भी मदद लेता है। इस दृष्टि से भारत की संवेदनशील जानकारियों को सुरक्षित रखने तथा भारत विरोधी ताकतों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए कानून से ज्यादा बड़े दस्ते बनाए जाने ‌के लिए सरकार को प्राथमिकता देनी होगी।

 

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