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बिहार का विकास एवं चुनौतियां

बिहार चुनाव 2015 नें राजनीति में कई मानक गढ़े है। इस चुनाव में नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह की मजबूत जोड़ी को शिकस्त दी है। राजनीतिक विश्लेषक एवं प्रबुद्व पत्रकार इसे देश की राजनीतिक को भी प्रभावित करने की बात करते है।
बिहार का विकास एवं चुनौतियां


इस बार के बिहार चुनाव में जहां एक ओर दो विरोधी श्रेत्रीय दलों जदयू एवं राजद एवं एक राष्ट्रीय दल कांग्रेस ने महागठबंधन तैयार किया। वहीं भाजपा ने अपने सहयोगी एवं अन्य छोटे दलों को अपने साथ ले चुनाव लड़ने की तैयारी की। भाजपा के सामने कई राजनीतिक लक्ष्य थे – नरेंद्र मोदी के चेहरे के साथ चुनाव लड़ राज्य में शासन की बागडोर संभालना, अमित शाह के राजनैतिक चातुर्थ्य एवं रणनीतियों कें तहत चुनाव लड़ विजय हासिल करने के साथ ही साथ 2014 में लोकसभा में बिहार से मिले बड़े जनादेश को बचाये रखना। वहीं महागठबंधन का नेतृत्व नीतीश कुमार ने संभाला, उनके सामने बड़े लक्ष्य थे- राज्य में महागठबंधन का शासन लाना जदयू-राजद एवं कांग्रेस के अर्न्तविरोधों को दूर करते हुए जनता का विश्वास हासिल करना, भाजपा गठबंधन एवं नरेंद्र मोदी व अमित शाह की मजबूत जोड़ी को राजनीतिक शिकस्त देना।
यह महत्वपूर्ण है कि दोनों गठबंधन के चेहरे नरेंद्र मोदी जहां 'विकास पुरूष’ के रूप में जाने जाते है वहीं नीतीश कुमार 'सुशासन बाबू’ के रूप में। विकास इस चुनाव की केन्द्र की धुरी रही। बिहार के चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन कों विजयश्री मिली पर उनकी पार्टी महागठबंधन को ही दूसरे नंबर पर आकर संतोष करना पड़ा। चुनाव में भी जातिगत धुव्रीकरण एवं यादव-मुस्लिम समीकरण का उभरकर महागठबंधन के साथ मजबूती से आना परिणामों में स्पष्ट दिखता है। महागठबंधन से ही केवल 49 यादव विधायक चुने गये है।
महागठबंधन के नेतृत्व में नीतीश कुमार पांचवी बार मुख्यमंत्री का पद संभाला है। उनके सामने अनेको बड़ी चुनौतियां है।

शराबबंदी लागू करने की घोषणा नीतीश ने स्वयं की थी, अब उसकों प्राथमिकता से लागू करना बहुत जरूरी है क्यों‍कि इस चुनाव में महिला मतदाताओं ने पुरूष मतदाताओं से ज्यादा मतदान किया था और राज्य की महिलाओं की शराबबंदी प्रमुख मांग है। उद्योग-धंधों को शून्यता इस राज्य में बेरोजगारी, पलायन, क्षेत्रीय असमानता को बढ़ा रही है। उसे दूर करने की सबल पहल जरूरी है। राज्य के किसान और आम जनता जो राज्य की आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा है। उन्हें उनके कृषि उपज जैसे धान, गेहूं, आलू, प्याज एवं गन्ना का सही मूल्य दिलाना, कृषि फसलों का राज्य में भी मूल्य संर्वधन कर किसानों की आर्थिक स्थिति एवं राज्य को अर्थव्यवस्था को मजबूत करना। कृषि जनित उद्योग, कृषि व वन जनित उद्योग, फल, बीज-फुल प्रसंकरण उद्योग, फलों और सब्जियों का निर्यात, मखाना निर्यात, डेयरी उद्योग का समुचित विकास राज्य में पलायन एवं बेरोजगारी दूर करने का कामयाब औजार है पर इसे अभी महत्वपूर्ण कारकों के रूप में राज्य ने विकसित नहीं किया है। उदाहरण के रूप में देश में बिहार का मक्का‍ उत्पादन में प्रमुख स्थान है और यहां का मक्का‍ रेलों में भर कर तामिलनाडु, तेलंगाना एवं आंध्रप्रदेश में चला जाता है और यहां से अंडे, मुर्गी, मछली एवं पशु आहार बिहार हजारों टन आते है। इससे राज्य में रोजगार के अवसर सीमित होते है, उत्पादकता घटती है। आय राज्य के बाहर जाती है जो राज्य को अर्थव्यवस्था के लिए दुखदायी है।
इस चुनाव में राज्य के युवा, जो राज्य की सबसे बड़ी आबादी है एवं महिलाओं ने सबसे ज्यादा बढक़र हिस्सा लिया, अत: उनकी समस्याएं दूर करना और राज्य की बढ़ती बेरोजगारी एवं पलायन को तत्काल कम करना नीतीश कुमार की सबसे बड़ी चुनौती है क्यों‍कि इनके बल पर ही नीतीश ने भाजपा को परास्त किया। राज्य के चौमुखी विकास एवं कानून एवं व्यवस्था को बनाये रखना मुख्य‍मंत्री के लिए कठिन डगर है वहीं राज्यहित में उन्हें केन्द्र से भी सही तालमेल रखना होगा। मुख्य‍मंत्री को सरकार की कार्यशैली में शिथिलता, भष्ट्राचार पर अंकुश, जिलों में प्रशासनिक चुस्ती एवं मंत्रियों एवं राज्य प्रशासन एवं सचिवों में संतुलन, बैंकों के लक्ष्यों पर ध्यान रखना होगा, नही तो यह चुनावी विजय उनके लिए 'राजनीतिक जाल’ के रूप में उभर कर न आये, जिसकी बड़ी संभावना को अभी नकारा नहीं जा सकता है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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