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भ्रष्ट अफसर से ‘आप’ की प्रतिबद्धता | आलोक मेहता

सरकारी अधिकारियों की राजनीतिक प्रतिबद्धता वर्षों से विवाद का मुद्दा रही है। कांग्रेस, कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट, संघ की विचारधाराओं वाली सरकारें रहने पर यह सवाल उठता रहा है कि नौकरीशाही किसी दल, व्यक्ति या विचार से प्रतिबद्ध रहने के बजाय लोकसेवक के रूप में नियम-कानून के अनुसार सरकार-संगठन द्वारा निर्धारित कार्यक्रमों और आदेशों का क्रियान्वयन करे।
भ्रष्ट अफसर से ‘आप’ की प्रतिबद्धता | आलोक मेहता

यह पहला अवसर है जबकि दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोप में सी.बी.आई. द्वारा गिरफ्तारी पर उसके बचाव में राजनीतिक संबंधों का आधार बनाकर कड़ा विरोध कर दिया है। आम आदमी पार्टी के मंत्री या विधायकों पर दर्ज मामलों को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके साथी राजनीतिक पूर्वाग्रहों के आरोप लगा सकते हैं। वैसे उन मामलों में भी अपराध या निर्दोष होने का फैसला अदालतें ही कर सकेंगी। लेकिन केजरीवाल के शिक्षण काल के मित्र और दिल्ली सरकार में प्रधान सचिव पद पर बैठे राजेंद्र कुमार को सी.बी.आई. ने 50 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप में गिरफ्तार कर अदालत के समक्ष पेश किया है। महत्वूपर्ण बात यह है कि सी.बी.आई. ने वर्तमान केजरीवाल सरकार के कार्यकाल के किसी घोटाले का नाम नहीं लिया है। घोटाला 2006-2007 में राजेंद्र कुमार के आई.टी. सचिव रहते हुए हुआ बताया गया है। उस समय श्रीमान केजरीवाल राजनीति में नहीं सरकारी नौकरी में थे। दिल्ली में कांग्रेसी मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित की सरकार थी। राजेंद्र कुमार अकेले नहीं उनके सहयोगी कुछ अधिकारियों ने मिलकर कुछ कंपनियों को सरकारी खजाने से करोड़ों का अनुचित लाभ दिलाया और उसमें हिस्सेदारी के आरोपों से जुड़े तथ्य सी.बी.आई. ने महीनों की जांच-पड़ताल के दौरान इकट्ठे किए हैं। सी.बी.आई. का मानना है कि दिल्ली सरकार में सचिव रहते हुए राजेंद्र कुमार परोक्ष रूप से स्वयं निजी कंपनी चला रहे थे। एक पद से दूसरे पद पर स्‍थानांतरण के बाद भी वह उसी कंपनी को लाभ दिलाते रहे। इस सारे मामले के प्रमाण देखकर ही अदालत कोई फैसला करेगी।

आम आदमी पार्टी के नेताओं में राजनीतिक अनुभव भले ही अधिक न हो, लेकिन प्रशासनिक और सार्वजनिक जीवन की पृष्ठभूमि रही है। इसलिए वे यह कैसे भूल सकते हैं कि कांग्रेस या भाजपा के राज में सत्तारूढ़ प्रधानमंत्री के सचिवालय तक में रहे अधिकारियों की गिरफ्तारी और जेल हुई है। ताजा उदाहरण मनमोहन सरकार में रहे द्रमुक के मंत्री, सांसद और विभिन्न मंत्रालयों के अधिकारियों का है। महीनों तक जेल के बाद भी इनके मामले अब भी अदालत में चल रहे हैं। आरोपियों ने अपने को निरपराध बताने की कोशिश की है। लेकिन सत्तारूढ़ दलों ने किसी राजनीतिक पूर्वाग्रह का आरोप नहीं लगाया। इसी तरह म.प्र. के व्यापम घोटाले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के एक निजी सचिव और भाजपा के मंत्री तक की गिरफ्तारी और जेल हुई। यह मामला भी अदालत में चल रहा है। लेकिन इसे राजनीतिक पूर्वाग्रह का प्रकरण कोई नहीं बता रहा है। इस समय आम आदमी पार्टी का कष्ट यह है कि अपनी ईमानदार छवि बनाए रखने के लिए उसे अपने साथियों के पुराने-नए अपराधों का जोर-शोर से विरोध करना पड़ रहा है। वे नेताओं की जयकार भले ही कर लें, अफसरों को राजनीतिक प्रतिबद्धता से जोड़कर संपूर्ण प्रशासनिक व्यवस्‍था को कलंकित न करें।

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