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व्यापमं एक्सक्लूसिव - इलेक्ट्रॉनिक सबूत से पकड़े जाएंगे चोर

पचास से अधिक मौतों और 12 हजार करोड़ रुपये से अधिक के इस घोटाले की जांच करना सीबीआई के सामने भी एक कड़ी चुनौती साबित होगी। साक्ष्यों की जांच, प्रमाणिकता के साथ-साथ, सत्ता के शीर्ष की भूमिका को किस तरह से जांच के दायरे में लेगी सीबीआई, इसी पर टिकी हैं, सबकी निगाहें
व्यापमं एक्सक्लूसिव - इलेक्ट्रॉनिक सबूत से पकड़े जाएंगे चोर

व्यापमं की गुत्थी सुलझने में ही बहुत पेच है। सीबीआई ने अपनी जांच शुरू कर दी है, पांच एफआईआर हो गई हैं। लेकिन यहां सारा मामला राज्य के खिलाफ है। गुजरात नरसंहार और गुजरात फर्जी मुठभेड़ मामले में सीबीआ ने जिस तरह से अभयिुक्‍तों के पक्ष में खुद को मोड़ा है, उससे व्यापमं में क्या निकलेगा-कौन फंसेगा, कौन बचेगा, कौन बचाया जाएगा, ये बड़े सवाल हैं। पर साक्ष्य यहां ठोक बजाकर हैं। सब सुप्रीम कोर्ट के हवाले हैं।
व्यापमं घोटाले की खासियत यह है कि इसका साक्ष्य इलेक्ट्रॉनिक है। यह पहला मामला है, जिसमें सबूत क्लाउड में सुरक्षित रखे गए हैं। जांच एजेंसियों द्वारा प्रमाणों की जांच कराने से पहले, दो-दो शीर्ष लैबोरेटरियों से जांच करा ली गई है। अब तक जो पर्दाफाश हुआ है, उसकी जान एक हार्ड डिस्क में कैद है, जो व्यापमं के मुक्चय आरोपी नितिन महेंद्रा के पास से बरामद हुई। इसी की एक इमेज कॉपी घोटाले के मुख्य व्हिसलब्लोअर प्रशांत पांडे के लैपटॉप में सुरक्षित है। अब जो पेचीदा सवाल सीबीआई के सामने आएगा, वह उस हार्डडिस्क की बरामदगी का है। सुप्रीम कोर्ट में लगाई याचिकाओं के साथ कई चालान लगाए गए हैं (जिनमें से कुछ की प्रति आउटलुक के पास है)। इनकी जांच भी सीबीआई करेगी। व्यापमं घोटाले में सीबीआई के सामने इस पूरे मामले को सबूतों से लैस करने का साहस करने वाले व्हिसलब्लोअर प्रशांत पांडे ने आउटलुक को बताया कि अगर निष्पक्ष जांच हुई तो 70 फीसदी सच और उजागर होगा। वर्ष 2014 तक व्यापमं घोटाले की जांच कर रहे स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के साथ काम कर चुके प्रशांत ने बताया कि जांच एजेंसियों ने इस हार्ड डिस्क के निर्माण की तारीख 2012 दिखाई है। जबकि इस हार्डडिस्क में 2010-11 के आंकड़े मौजूद होने का दावा किया गया है। अब यह एक बड़ा झोल है, बड़ा घोटाला, घोटाले को छुपाने की बेवकूफाना कोशिश है...कुछ भी कहा जा सकता है। इन तमाम बातों से अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह भी आशंकित है। हालांकि उन्हें भरोसा है कि इलेक्ट्रॉनिक प्रमाण होने की वजह से केस में ज्यादा गड़बड़ी करना मुश्किल है।
दूसरा, इससे ही जुड़ा हुआ है एक्‍सेल शीट का मामला, जिस पर पूरे केस की जान टिकी है। एक एक्सेल शीट है जिसे एसटीएफ ने पेश किया है, उसमें कुछ नाम गायब हैं और दूसरी एक्सेल शीट है जिसमें सारे नाम हैं। यहां एक्सेल शीट से तात्पर्य उस शीट से है जिसमें मेडिकल परीक्षा देने वाले परीक्षार्थियों का रोल नंबर और नाम हैं और उसके आगे लिखा है कि सिफारिश किसने की। याचिकाकर्ता द्वारा दाखिल एक्सेल शीट में मुख्यमंत्री और मंत्री-1, मंत्री-2, मंत्री-3,मंत्री-4 का जिक्र है, जबकि एसटीएफ की एक्सेल शीट में उमा भारती सहित बाकी नाम तो हैं, लेकिन यह सब नहीं है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में दूसरी एक्सेल शीट को हैदराबाद की ट्रुथ लैबोरेटरी द्वारा सही प्रमाणित करने का दस्तावेज भी संलग्न है। (प्रति आउटलुक के पास है)।
तीसरा, सीबीआई के सामने एक बड़ी चुनौती इस कांड की गांठों में संघ के तार खोलने की होगी। व्यापमं की गांठ संघ के कार्यकर्ता और इस कांड के प्रमुख अभियुक्त और खनन सरगना सुधीर शर्मा से जुड़ी है। सुधीर के उस्ताद मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा भी जेल में हैं।
अब सीबीआई कैसे इन तमाम तथ्यों को जोड़कर आगे बढ़ती है, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन साक्ष्य तो भरपूर हैं और उनकी अनदेखी करना भी मुश्किल है। व्यापमं घोटाले की कानूनी लड़ाई भी कम दिलचस्प नहीं है। वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल इसे एक टेस्ट केस बताते हैं। वह कहते हैं, 'यह सवाल हमेशा कायम रहेगा कि जब व्यापमं की जांच हाईकोर्ट की निगरानी में चल रही थी, तब इतनी मौतें, इतने साक्ष्यों की अनदेखी कैसी हुई। सीबीआई जांच की मांग को पहले-पहल सुप्रीम कोर्ट ने क्यों मना किया? तथ्य वही थे, बस एक पत्रकार, एक डीन और दो और अभियुक्तों की मौत हो गई तो सुप्रीम कोर्ट मान गया। आखिर क्यों इतनी देर हुई? समय पर हस्तक्षेप होता तो न जाने कितनी जानें बचाई जा सकती थीं।’ 

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