Advertisement

कार्यवाही की पक्षपातपूर्ण रिकॉर्डिंग बहुत बड़ा अन्याय है: उच्च न्यायालय

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि अदालती कार्यवाही की रिकॉर्डिंग ईमानदारी और निष्पक्षता से नहीं करने वाला न्यायाधीश वादियों के साथ बहुत बड़ा अन्याय करता है। न्यायालय ने यह टिप्पणी भ्रष्टाचार के एक मामले को एक निचली अदालत से दूसरी में स्थानांतरित करते हुए यह टिप्पणी की।
कार्यवाही की पक्षपातपूर्ण रिकॉर्डिंग बहुत बड़ा अन्याय है: उच्च न्यायालय

उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई को तेज करने के विशेष न्यायाधीश के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि ऐसा करने के दौरान यह ना हो कि निचली अदालत मनमाने और करूणाहीन तरीके से काम करने लगे।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी ने कहा, कार्यवाही की रिकॉर्डिंग सच्चाई और निष्पक्षता से नहीं करने वाला न्यायाधीश पक्षों के साथ बहुत बड़ा अन्याय करता है। जो भी मामला न्यायाधीश के सामने आए उसमें उसका कोई व्यक्तिगत हित नहीं होना चाहिए। उन्हें अपनी कार्यवाहियों की ईमानदारी से रिकॉर्ड करना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने कहा, ऐसा इसलिए क्योंकि न्यायाधीश द्वारा अपने आदेश में रिकॉर्ड की गई कार्यवाही को सच माना जाता है। इस भरोसे को तोड़ने का असर न्यायाधीश की विश्वसनीयता और निष्पक्षता पर पड़ता है। न्यायालय ने यह टिप्पणी 16 वर्ष पुराने भ्रष्टाचार के मामले को विशेष सीबीआई न्यायाधीश की अदालत से अन्य निचली अदालत में स्थानांतरित करने के दौरान की। उच्च न्यायालय ने विशेष न्यायाधीश को कहावत याद दिलाई कि न्याय हो और नजर भी आए।

उच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार मामले में आरोपी याचिकाकर्ता के वकील की इस बात पर सहमति जताई कि जिस तरह से निचली अदालत के न्यायाधीश कार्यवाहियों का संचालन कर रहे थे उससे पक्षपात की बू आती है और यह संदेह उचित है कि उसे न्याय नहीं मिलेगा।

उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ने कहा कि यह स्पष्ट है कि सुनवाई को खत्म करने की जल्दी में विशेष न्यायाधीश ने पक्षपातपूर्ण कार्यवाही की और मामले में उनका रूख तथा जो आदेश उन्होंने पारित किए उनके कारण उन्हें इस मामले में आगे की सुनवाई करने से अयोग्य करार दिया जाता है।

याचिकाकर्ता के वकील ने उच्च न्यायालय से कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीश ने दस्तावेजों को स्वीकार या अस्वीकार करने की प्रक्रिया के दौरान वकीलों को उनके मुवक्किल की सहायता नहीं करने दी।

उच्च न्यायालय ने कहा कि चाहे आरोपी साक्षर हो या निरक्षर, उसे सुनवाई के किसी भी चरण में अपने वकील की सलाह और सहायता लेने का अधिकार होता है। आरोपी ने व्यक्तिगत पेशी से एक दिन की छूट मांगी थी क्योंकि उसके पिता अस्पताल में भर्ती थे लेकिन उसकी याचिका को निचली अदालत ने खारिज कर दिया था। इस पर उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा, पहाड़ नहीं टूट पड़ा था, आरोपी को एक दिन की छूट दी जा सकती थी।

अदालत ने कहा, आरोपियों के साथ भी इनसान जैसा व्यवहार होना चाहिए। किसी अन्य व्यक्ति की तरह उनके साथ भी सम्मानजनक व्यवहार होना चाहिए। भाषा

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad