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शीर्ष अदालत का विभिन्न हाई कोर्ट में नोटबंदी कार्यवाही पर रोक से इंकार

उच्चतम न्यायालय ने देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में नोटबंदी के संबंध में लंबित कार्यवाही पर स्थगनादेश जारी करने की केंद्र की अपील को बुधवार को यह कहते हुए नामंजूर कर दिया कि हो सकता है कि जनता उनसे त्वरित राहत चाहती हो।
शीर्ष अदालत का विभिन्न हाई कोर्ट में नोटबंदी कार्यवाही पर रोक से इंकार

इसके साथ ही न्यायालय ने नोटबंदी को चुनौती देते हुए देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में याचिकाएं दायर करने वाले याचिकाकर्ताओं से इस संबंध में दर्ज केंद्र की याचिका पर जवाब मांगा। केंद्र की याचिका में ऐसे सभी मामलों को शीर्ष अदालत या किसी एक उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किए जाने की अपील की गई थी।

प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अगुवाई वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा,  हम इसे रोकना नहीं चाहते। विभिन्न मुद्दे हैं। लोगों को उच्च न्यायालयों से तत्काल राहत मिल सकती है। पीठ के अन्य न्यायाधीशों डी वाई चंद्रचूड़ और एल नागेश्वर राव ने अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी से यह बात कही।

सुनवाई के दौरान पीठ ने एजी से कहा,  हमें लगता है कि आपने जरूर कुछ उचित कदम उठाए होंगे। अब क्या स्थिति है ? आपने अभी तक कितनी रकम एकत्र की है।इसका जवाब देते हुए एजी ने कहा कि स्थिति काफी बेहतर है तथा नोटबंदी के बाद से छह लाख करोड़ रूपये से अधिक की राशि अभी तक बैंकों में जमा हुई है। एजी ने कहा,  अभी तक 6 लाख करोड़ रूपये से अधिक की राशि एकत्र हुई है। धन के डिजीटल लेनदेन में काफी उछाल आया है।

उन्होंने कहा कि नोटबंदी का फैसला 70 सालों से जमा खराब धन को हटाने के मकसद से लिया गया और सरकार हालात की हर रोज और हर घंटे निगरानी कर रही है। एजी ने पीठ को बताया कि सरकार ने एक समिति गठित की है जो नोटबंदी के कदम पर देशभर में जमीनी हालात का जायजा लेगी।

रोहतगी ने शीर्ष अदालत को बताया कि सामान्य नियम यह है कि बाजार में नकदी का लेनदेन सकल घरेलू उत्पाद : जीडीपी : के चार फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए लेकिन भारत में यह 12 फीसदी है।

उन्होंने कहा कि नोटबंदी के फैसले को चुनौती देते हुए देशभर में विभिन्न उच्च न्यायालयों में विभिन्न याचिकाएं दाखिल की गई हैं और ये सभी मामले शीर्ष अदालत या किसी एक उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिए जाने चाहिए। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए दो दिसंबर की तारीख तय कर दी और याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे उस समय केंद्र की स्थानांतरण की अपील पर अपने जवाब दाखिल करें।

शीर्ष अदालत ने 18 नवंबर को बैंकों और डाकघरों के बाहर लंबी कतारों को गंभीर मुद्दा बताते हुए  केंद्र की उस याचिका पर अपनी आपत्ति जताई थी जिसमें यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि आठ नवंबर की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर देश में कोई अन्य अदालत विचार नहीं करे।

प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर और अनिल आर दवे की पीठ ने संबंधित पक्षों से सभी आंकड़ों और दूसरे बिन्दुओं के बारे में लिखित में सामग्री तैयार करने का निर्देश देते हुये कहा था, यह गंभीर विषय है जिस पर विचार की आवश्यकता है।

पीठ ने कहा था कि कुछ उपाय करने की जरूरत है। देखिये जनता किस तरह की समस्याओं से रूबरू हो रही है। लोगों को उच्च न्यायालय जाना ही पड़ेगा। यदि हम उच्च न्यायालय जाने का उनका विकल्प बंद कर देंगे तो हमें समस्या की गंभीरता का कैसे पता चलेगा। लोगों के विभिन्न अदालतों में जाने से ही समस्या की गंभीरता का पता चलता है।

पीठ ने यह टिप्पणियां उस वक्त कीं जब अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि पांच सौ और एक हजार रूपए के नोटों के विमुद्रीकरण को चुनौती देने वाले किसी भी मामले पर सिर्फ देश की शीर्ष अदालत को ही विचार करना चाहिए। न्यायालय में चार जनहित याचिकाओं में से दो दिल्ली के वकील विवेक नारायण शर्मा और संगम लाल पाण्डे ने दायर की हैं जबकि दो अन्य याचिकायें एस मुथुकुमार और आदिल अल्वी ने दायर की हैं।

इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि सरकार के अचानक लिये गये इस फैसले ने अराजकता की स्थिति पैदा कर दी है और आम जनता को परेशानी हो रही है। याचिकाओं में वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग की अधिसूचना को निरस्त करने या कुछ समय के लिये स्थगित करने का अनुरोध किया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आठ नवंबर को अपने संबोधन में 500 और 1000 रूपये के नोटों को नौ नवंबर से चलन से बाहर करने की घोषणा की थी। भाषा एजेंसी 

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