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'गांधी की हत्या के बाद संघ ने किया गोडसे का बहिष्कार, तब भी नहीं छोड़ा संगठन'

राष्‍ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के लिए आरएसएस को जिम्मेदार बताने पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर मुकदमे के बीच नाथूराम गोडसे के एक रिश्तेदार ने कहा है कि हत्‍या के बाद आरएसएस ने नाथूराम का बहिष्कार किया था और हत्या की निन्दा की थी, लेकिन गोडसे ने फिर भी संघ नहीं छोड़ा और वह अपने जीवन की अंतिम सांस तक भगवा संगठन के सदस्य रहे।
'गांधी की हत्या के बाद संघ ने किया गोडसे का बहिष्कार, तब भी नहीं छोड़ा संगठन'

गोडसे और हिन्दुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर के रिश्तेदार सत्याकी सावरकर ने कहा कि नाथूराम ने कहा था कि महात्मा गांधी की हत्या के लिए वह अकेले जिम्मेदार हैं। सत्याकी ने यहां पीटीआई-भाषा से कहा, हत्या :महात्मा गांधी की: के बाद संघ ने नाथूराम का बहिष्कार किया और घटना की निन्दा की थी। हालांकि, न तो उन्हें संघ से निष्कासित किया गया और न ही उन्होंने अपने जीवन की अंतिम सांस तक संघ छोड़ा।

उन्होंने कहा, राहुल गांधी का बयान राजनीतिक रूप से अपरिपक्व है क्योंकि हत्या के बाद अदालत ने नाथूराम को मृत्युदंड और अन्य को उम्रकैद की सजा दी थी। नाथूराम ने स्पष्ट किया था कि गांधी की हत्या का फैसला उनका खुद का था और आरएसएस की इसमें कोई भूमिका नहीं है। सत्याकी ने कहा कि यदि राहुल गांधी अब भी यह सोचते हैं कि आरएसएस ने गांधी की हत्या की थी तो यह अदालत की अवमानना के बराबर है।

पेशे से साॅफ्टवेयर इंजीनियर सत्याकी नाथूराम के छोटे भाई गोपाल गोडसे की दिवंगत पुत्री हिमानी सावरकर के पुत्र हैं। हिमानी विनायक दामोदर सावरकर के छोटे भाई नारायण सावरकर की बहू भी थीं। 

सात्‍यकी ने कहा कि नाथूराम गोडसे 1930 के दशक की शुरुआत तक आरएसएस के समर्पित सदस्य थे। इसके बाद वह संघ की कट्टरता में कथित तौर पर कमी आने की वजह से उससे कुछ दूर हो गए। सात्यकी ने कहा, 'नाथूराम का मानना था कि हिंदुओं पर कई अत्याचार होने के बावजूद आरएसएस पर्याप्त रूप से आक्रामक रुख नहीं अपना रहा था। हालांकि उन्होंने हैदराबाद के निजाम के खिलाफ भाग्यपुर में 1938-39 में 'मुक्ति संग्राम' में हिस्सा लिया था। नाथूरामजी इस्लामिक राज्य के पूरी तरह खिलाफ थे, जो निजाम हैदराबाद में स्थापित करना चाहते थे। आरएसएस के साथ मतभेदों के बावजूद उनका मानना था कि निजाम के शासन के खिलाफ स्वयंसेवकों के संघर्ष को समर्थन देने की जरूरत है।'

सात्यकी का यह भी कहना है कि नाथूरामजी स्वयंसेवकों के उस पहले वर्ग का हिस्सा थे, जिसे संघ ने हैदराबाद में हिंदू परिवारों की पहचान और उन्हें एकजुट करने के लिए एक परियोजना के तौर पर बनाया था। गोडसे एक समाचार पत्र को लेख भेजते थे और उनमें से कई प्रकाशित हुए थे। ऐसे बहुत से लेख हमारे परिवार ने संभाल कर रखे हैं। आरएसएस यह कहता रहा है कि महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे ने 1949 में इस हत्या को अंजाम देने से काफी पहले संगठन छोड़ दिया था। हालांकि गांधी की हत्या के मामले में एक अन्य आरोपी रहे नाथूराम के छोटे भाई गोपाल गोडसे ने 1994 में कहा था कि तीनों गोडसे बंधु- नाथूराम, दत्तात्रेय और गोपाल आरएसएस का हिस्सा थे और उन्होंने संगठन को नहीं छोड़ा था।

सात्यकी सावरकर ने कहा कि इस बात में कोई शक नहीं है कि नाथूराम सहित गोडसे बंधु कई वर्षों तक आरएसएस के सदस्य थे। उन्होंने बताया, '1940 के दशक में नाथूरामजी ने आरएसएस और हिंदू महासभा, दोनों की निंदा की थी और हिंदू राष्ट्र दल के नाम से अपना संगठन बनाया था, लेकिन उन्होंने हिंदुत्व शिविर आयोजित करना जारी रखा था। उनके एक पुरानी सहयोगी के अनुसार, 1943 में बारामती में आरएसएस के शिविर के जैसा ही एक आयोजन किया गया था। यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने वास्तव में कब संघ को छोड़ा था, लेकिन वह निश्चित तौर पर संगठन से नाराज थे। 1946 में उन्होंने हिंदू महासभा को भी छोड़ दिया था क्योंकि उन्होंने महसूस किया था कि वह विद्रोह चाहते हैं और उसे संवैधानिक तरीकों से नहीं किया जा सकता।'

गोपाल गोडसे के पौत्र सात्यकी एक सॉफ्टवेयर प्रफेशनल हैं और अब वह वास्तविक हिंदू महासभा को फिर से शुरू कर रहे हैं। हिंदू महासभा की स्थापना हिंदुत्व विचारक वीर सावरकर ने की थी। सात्यकी ने बताया, 'मैंने बचपन में आरएसएस की शाखाओं में हिस्सा लिया है। मेरे पूर्वज ही नहीं, बल्कि मेरे कुछ चचेरे भाई भी आरएसएस के साथ थे। हालांकि मेरा मानना है कि आरएसएस अब सेवा और सांस्कृतिक जुड़ाव से संबंधित है। वह राजनीतिक अधिकारों के लिए हिंदुओं को एकजुट करने और ताकतवर बनाने के सावरकर के मूल संदेश को भूल गया है। सावरकर का हिंदुत्व आरएसएस के हिंदुत्व से अलग है।'

 

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