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अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 5 मार्च को मध्यस्थता पर फैसला

अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई, जिसमें...
अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 5 मार्च को मध्यस्थता पर फैसला

अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता का रास्ता अपनाने की बात कही। इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई की अगुवाई वाली 5 जजों की बेंच कर रही है। अब इस मामले में अगले मंगलवार (5 मार्च) को फिर सुनवाई होगी, जिसमें कोर्ट इस मामले की मध्यस्थता तय करेगा।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल की रिपोर्ट दाखिल की गई है। भारत के प्रधान न्यायाधीश ने दोनों पक्षों के वकीलों से कहा कि वे दस्तावेजों की स्थिति पर कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल की रिपोर्ट का अध्ययन करें। इस मामले पर कोर्ट ने कहा कि यदि अभी सभी पक्षों को दस्तावेजों का अनुवाद स्वीकार्य है तो वह सुनवाई शुरू होने के बाद उस पर सवाल नहीं उठा सकेंगे। न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अगले मंगलवार (5 मार्च) को आदेश पारित करेगा कि क्या समय बचाने के लिए अदालत की निगरानी में मध्यस्थता के लिए मामला भेजा जाए या नहीं। 

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच अयोध्या में विवादित भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई कर रही है।

'सुनवाई शुरू होने के बाद दस्तावेजों के अनुवाद पर सवाल नहीं उठा सकेंगे'

इससे पहले कोर्ट ने कहा कि अगर सभी पक्षों को दस्तावेजों का अनुवाद मंजूर है तो वह सुनवाई शुरू होने के बाद उस पर सवाल नहीं उठा सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल की रिपोर्ट में अनुवाद किए गए दस्तावेजों का ब्यौरा है। सेक्रेटरी जनरल की रिपोर्ट में इस बात का भी ब्योरा है कि कितने-कितने पेज हैं और कौन-कौन सी भाषा और लिपि में दस्तावेज हैं। सुप्रीम कोर्ट के आधिकारिक अनुवादकों को और कितना समय चाहिए इसका भी ब्यौरा है।

पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ कर रही है सुनवाई

इस मामले की सुनवाई पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ कर रही है जिसमें प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर हैं। 

यूपी सरकार ने सरकारी अनुवादक उपलब्ध कराए हैं: सीजेआई

न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के एडवोकेट राजीव धवन ने कहा कि यदि आधिकारिक अनुवादकों का अनुवाद उपलब्ध हो तो वे इसका परीक्षण करने को तैयार हैं। इसके जवाब में सीजेआई  ने कहा कि यूपी सरकार ने सरकारी अनुवादक उपलब्ध कराए हैं।

धवन ने कहा कि ऐसी खबरें हैं कि सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से जुड़े सरकारी अनुवादक एक दिन में सिर्फ 12 पेज का अनुवाद कर सकते हैं। उन्होंने कहा, 'हमने यूपी सरकार द्वारा जमा किए गए कागजात नहीं देखे हैं।' इस पर मुस्लिम पक्ष के दूसरे एडवोकेट दुष्यंत दवे ने कहा कि हमें बैठकर इस सारे दस्तावेजों को देखना होगा। यूपी सरकार के प्रतिनिधि ने कहा कि दस्तावेजों का परीक्षण चल रहा है। इस पर धवन ने कहा कि कुछ कागजात का आदान-प्रदान हुआ है, लेकिन समूचे दस्तावेजों का परीक्षण नहीं हुआ है।

शीर्ष अदालत ने इससे पहले 29 जनवरी को प्रस्तावित सुनवाई को 27 जनवरी को रद्द कर दिया था, क्योंकि न्यायमूर्ति बोबडे उस दिन उपलब्ध नहीं थे। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपीलें दाखिल की गयी हैं।

क्या है इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?

चार दीवानी मामलों में दिये गये इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में कहा गया था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर-बराबर बांटा जाए।

25 को किया गया था पीठ का पुनर्गठन

गत 25 जनवरी को पांच न्यायाधीशों की पीठ का पुनर्गठन किया गया था क्योंकि पहले पीठ में शामिल रहे न्यायमूर्ति यू यू ललित ने मामले में सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने सुब्रमण्यम स्वामी को सुनवाई के दौरान मौजूद रहने को कहा

भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने अयोध्या में विवादित राम मंदिर में पूजा के अपने मौलिक अधिकार पर अमल के लिए दायर याचिका पर शीघ्र सुनवाई का सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया। न्यायालय ने स्वामी से कहा कि वह अयोध्या मामलो की सुनवाई के दौरान मंगलवार को उपस्थित रहें।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ से स्वामी ने अनुरोध किया कि उनकी याचिका पर अलग से सुनवाई की जाये। इस पर पीठ ने स्वामी से कहा कि अयोध्या प्रकरण के मुख्य मामले की मंगलवार को सुनवाई होगी और वह इस दौरान न्यायालय में मौजूद रहें।

पिछले साल स्वामी की याचिका हुई थी खारिज

शीर्ष अदालत ने पिछले साल स्वामी को अयोध्या भूमि विवाद मामले में हस्तक्षेप की अनुमति देने से इंकार कर दिया था और स्पष्ट किया था कि मूल पक्षकारों के अलावा किसी अन्य को इसमें पक्ष रखने की अनुमति नहीं दी जायेगी। हालांकि, पीठ ने स्वामी की इस दलील पर विचार किया था कि वह इस मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध नहीं कर रहे हैं बल्कि उन्होंने तो अयोध्या में राम लला के जन्म स्थान पर पूजा करने के अपने मौलिक अधिकार को लागू कराने के लिये अलग से याचिका दायर की है।    पीठ ने कहा कि चूंकि हम हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दे रहे हैं, इसलिए स्वामी की याचिका पुनर्जीवित मानी जायेगी और इस पर उचित पीठ कानून के अनुसार विचार करेगी।

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