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अखाड़े में बदल चुकी है संसद: राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी

स्वतंत्रता की 68वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देशवासियों का हार्दिक अभिनंदन किया है। राष्ट्र के नाम संदेश में उन्‍होंने संसद में होने वाले हंगामे पर विशेष रूप से टिप्‍पणी करते हुए कहा कि लोकतंत्र की हमारी संस्थाएं दबाव में हैं। संसद परिचर्चा के बजाय टकराव के अखाड़े में बदल चुकी है। अच्छी से अच्छी विरासत के संरक्षण के लिए लगातार देखभाल जरूरी होती है। समय आ गया है कि जब जनता तथा राजनैतिक दल गंभीर चिंतन करें।
अखाड़े में बदल चुकी है संसद: राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी

इस मौके पर उन्‍होंने सशस्त्र सेनाओं, अर्ध-सैनिक बलों और आंतरिक सुरक्षा बलों के सदस्यों का विशेष अभिनंदन करने के अलावा देश का नाम रोशन करने वाले खिला‍ड़‍ियों और नोबल शांति पुरस्‍ताकर विजेता कैलाश सत्यार्थी को खासतौर पर बधाई दी। राष्‍ट्र के नाम संदेश में राष्‍ट्रपति ने सीमा पार से संचालित होने वाले आतंकवाद का मुद्दा उठाते हुए कहा कि यद्यपि हम मित्रता में अपना हाथ स्वेच्छा से आगे बढ़ाते हैं परंतु जान बूझकर की जा रही उकसावे की हरकतों और बिगड़ते सुरक्षा परिवेश के प्रति आंखें नहीं मूंद सकते। भारत, सीमा पार से संचालित होने वाले शातिर आतंकवादी समूहों का निशाना बना हुआ है। हमारी नीति आतंकवाद को बिल्कुल भी सहन न करने की बनी रहेगी। 

 

हिंसा के अलावा आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं 

राष्‍ट्रपति ने कहा कि हिंसा की भाषा तथा बुराई की राह के अलावा आतंकवादियों का न तो कोई धर्म है और न ही वे किसी विचारधारा को मानते हैं। हमारे पड़ोसियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके भू-भाग का उपयोग भारत के प्रति शत्रुता रखने वाली ताकतें न कर पाएं। हमारी नीति आतंकवाद को बिल्कुल भी सहन न करने की बनी रहेगी। राज्य की नीति के एक उपकरण के रूप में आतंकवाद का प्रयोग करने के किसी भी प्रयास को हम खारिज करते हैं। 

 

मिलनी चाहिए भूख से मुक्ति 

राष्‍ट्र की तरक्‍की का जिक्र करते हुए राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि देश की उन्नति का आकलन हमारे मूल्यों की ताकत से होगा, परंतु साथ ही यह आर्थिक प्रगति तथा देश के संसाधनों के समतापूर्ण वितरण से भी तय होगी। पिछले दशक के दौरान हमारी उपलब्धि सराहनीय रही है। परंतु इससे पहले कि इस विकास का लाभ सबसे धनी लोगों के बैंक खातों में पहुंचे, उसे निर्धनतम व्यक्ति तक पहुंचना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि हमारी नीतियों को निकट भविष्य में ‘भूख से मुक्ति’ की चुनौती का सामना करने में सक्षम होना चाहिए।

 

शिक्षा प्रणाली की स्थिति पर उठाए सवाल 

राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्‍ट्र के नाम अपने संबोधन में देश की शिक्षा प्रणाली में गिरावट का मुद्दा भी उठाया। उन्‍होंने कहा कि हमारे शिक्षण संस्थानों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती जा रही है। परंतु नीचे से ऊपर तक गुणवत्ता का क्या हाल है? हम गुरु शिष्य परंपरा को तर्कसंगत गर्व के साथ याद करते हैं; तो फिर हमने इन संबंधों के मूल में निहित स्नेह, समर्पण तथा प्रतिबद्धता का परित्याग क्यों कर दिया? क्या आज हमारी शिक्षा प्रणाली में ऐसा हो रहा है? विद्यार्थियों, शिक्षकों और अधिकारियों को रुककर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। 

 

तकनीक के खतरे से किया आगाह 

राष्‍ट्रपति ने कहा लगातार बेहतर होती जा रही प्रौद्योगिकी के द्वारा त्वरित संप्रेषण के इस युग में हमें यह सुनिश्चित करने के लिए सतर्क रहना चाहिए कि कुछ इने-गिने लोगों की कुटिल चालें हमारी बुनियादी एकता पर कभी हावी न होने पाएं। सरकार और जनता, दोनों के लिए कानून का शासन परम पावन है परंतु समाज की रक्षा एक कानून से बड़ी शक्ति द्वारा भी होती है - और वह है मानवता।

 

शहीदों को किया नमन

देश की रक्षा में अपने जीवन का बलिदान करने वाले सुरक्षा बलों के साहस और वीरता को नमन करते हुए राष्‍ट्रपति ने उन बहादुर नागरिकों की भी सराहना करता हूं जिन्होंने अपने जीवन को जोखिम की परवाह न करते हुए बहादुरी के साथ एक दुर्दांत आतंकवादी को पकड़ लिया।

 

नेहरू का जिक्र करना नहीं भूले 

स्‍वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्‍या पर राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को याद करना नहीं भूले। उन्‍होंने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में भारत एक ऐसा देश है जो ‘मजबूत परंतु अदृश्य धागों’ से एक सूत्र में बंधा हुआ है और ‘‘उसके ईर्द-गिर्द एक प्राचीन गाथा की मायावी विशेषता व्याप्त है; मानो कोई सम्मोहन उसके मस्तिष्क को वशीभूत किए हुए हो। वह एक मिथक है और एक विचार है, एक सपना है और एक परिकल्पना है, परंतु साथ ही वह एकदम वास्तविक, साकार तथा सर्वव्यापी है।’’

 

 

 

 

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