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फंसे हुए प्रवासी मजदूरों का सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीं, आरटीआई में खुलासा

केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने एक आरटीआई कार्यकर्ता को बताया है कि मुख्य श्रम आयुक्त (सीएलसी) के कार्यालय...
फंसे हुए प्रवासी मजदूरों का सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीं, आरटीआई में खुलासा

केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने एक आरटीआई कार्यकर्ता को बताया है कि मुख्य श्रम आयुक्त (सीएलसी) के कार्यालय के पास देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासी मजदूरों का कोई डेटा नहीं है। जबकि पिछले महीने ही सीएलसी ने देश में फंसे प्रवासी मजदूरों की गिनती का आदेश दिया था।

कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के आवेदक वेंकटेश नायक ने कहा कि सीएलसी के पास डेटा अनुपलब्ध है। जबकि 8 अप्रैल को सीएलसी ने अपने क्षेत्रीय कार्यालयाें को निर्देश दिया था कि वे तीन दिनों के भीतर हर उस मजदूर की गिनती करें जाे कोरोनोवायरस लॉकडाउन के दौरान फंसा हुआ है।

सीएलसी ने तीन दिन के भीतर डेटा इकठ्ठा करने का दिया था आदेश

मुख्य श्रम आयुक्त (सीएलसी) द्वारा जारी परिपत्र में कहा गया कि लॉकडाउन के कारण बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक प्रभावित हुए हैं। इसमें कहा गया था कि मजदूर राज्य सरकार द्वारा व्यवस्थित राहत शिविरों और आश्रय गृहों में फंसे हुए हैं। कई मजदूर अपने कार्यस्थल और अन्य समूहों में भी हैं। इसमें आगे कहा गया,  "उपरोक्त के मद्देनजर, प्रवासी श्रमिकों के संबंध में व्यापक आंकड़े तीन दिनों के भीतर आने जरूरी हैं।" परिपत्र में कहा गया कि तीन श्रेणियों में डेटा एकत्र किया जाना चाहिए - राहत शिविर, नियोक्ता और जहां मजदूरों का समूह है।

आदेश के दो सप्ताह बाद लगाया आरटीआई

 आरटीआई कार्यकर्ता नायक ने कहा कि उन्होंने गणना अभ्यास के परिणामों की आधिकारिक घोषणा के लिए लगभग दो सप्ताह के इंतजार के बाद सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन दायर किया।

ये जानकारी मांगी गई थी

अपने आवेदन में उन्होंने उन जिलों के राज्य-वार नामों को जानना चाहा जहाँ से फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों के बारे में आंकड़े प्राप्त हुए हैं। उन्होंने सीएलसी से प्रत्येक राज्य से तीन श्रेणियों में से प्रत्येक के पुरुष और महिला प्रवासी श्रमिकों की जिलेवार संख्या प्रदान करने के लिए कहा, पुरुष और महिला प्रवासी श्रमिकों की व्यवसाय-वार संख्या, पुरुष और महिला प्रवासी श्रमिकों की क्षेत्रवार संख्या और पुरुष और महिला प्रवासी श्रमिकों के लिए राज्य-वार संचयी आंकड़े मांगे थे।


सीएलसी के सीपीआईओ पर उठाए सवाल

आरटीआई आवेदन दाखिल करने की ऑनलाइन प्रणाली प्रश्नों को संबंधित पीआईओ को निर्देशित करती है। यदि संबंधित विभाग को इसकी सूचना नहीं है, तो इसे सीपीआईओ को हस्तांतरित कर दिया जाता है जो विषय से निकटता से जुड़ा हुआ है। आवेदन सीएलसी के स्टेट सेक्शन द्वारा प्राप्त किया गया था। यदि सीपीआईओ के पास सूचना नहीं है, आरटीआई अनिवार्य है, तो वह उसे उस विभाग को हस्तांतरित कर देगा, जिसके पास सूचना प्राप्त करने की संभावना है या उस अधिकारी की सहायता लेता है, जिसके पास सूचना होनी चाहिए।

नायक ने कहा, आरटीआई अधिनियम के तहत, सीपीआईओ को जानकारी प्रदान करना है, इसे सही अधिकारी को हस्तांतरित करना है या आरटीआई अधिनियम के छूट प्रावधानों का हवाला देते हुए अस्वीकार करना है। उन्होंने कहा  "सीएलसी के सीपीआईओ ने इनमें से किसी भी कार्रवाई का सहारा नहीं लिया। उसने एक हस्ताक्षरित उत्तर भी नहीं भेजा। अधिकांश अन्य सीपीआईओ अपने नाम और हस्ताक्षर के तहत आरटीआई आवेदक को ईमेल करने के अलावा आरटीआई ऑनलाइन सुविधा पर उनके उत्तर की स्कैन कॉपी अपलोड करते हैं।"

'क्या सरकार की अन्य संस्थाओं के पास भी नहीं है डेटा?'

उन्होंने दावा किया कि सीएलसी सीपीआईओ के " वन-लाइनर जवाब" ने डेटा अभ्यास के शुरू होने के बावजूद प्रवासी श्रमिकों के बारे में डेटा की उपलब्धता पर गंभीर संदेह पैदा किया है। उन्होंने कहा,  "क्या सीएलसी या सरकार में किसी अन्य सार्वजनिक प्राधिकरण के पास फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों की संख्या के बारे में सटीक डेटा है या क्या कोई कारण है कि वह इस तरह की जानकारी को सार्वजनिक नहीं करना चाहता है? मैंने पहले ही केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष इसकी शिकायत दर्ज करा दी है। साथ ही, मामले की जल्द सुनवाई का अनुरोध किया है। "

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