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किसानों पर दोहरी मार, इस साल भी कमजोर मानसून की आशंका

नई दिल्‍ली। बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की मार झेल रहे किसानों पर इस साल दोहरी मार पड़ने जा रही है। मौसम विभाग का अनुमान है कि इस साल मानसून सामान्‍य से 7 फीसदी कम रहेगा। मानसून पर अल नीनो का खतरा मंडरा रहा है, जिसके चलते बारिश का इंतजार लंबा खिंच सकता है। गौरतलब है कि पिछले साल भी मानसून सीजन (जून-सितंबर) के दौरान देश में सामान्‍य से 12 फीसदी कम बारिश हुई थी। गौरतलब है कि भारत में 70 फीसदी बारिश मानसून सीजन के दौरान पड़ती है।
किसानों पर दोहरी मार, इस साल भी कमजोर मानसून की आशंका

मौसम विभाग की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार, इस साल मानसून दीर्घ अवधि औसत का 93 फीसदी रहने का अनुमान है। कमजोर मानसून की करीब 33 फीसदी आशंका है, जबकि मानसून सामान्‍य रहने की उम्‍मीद 28 फीसदी है। मौसम विभाग के मानकोें के हिसाब से सामान्‍य से 96 से 104 फीसदी के बीच बारिश को सामान्‍य माना जाता है। भारत में चार महीने के मानसून सीजन में पिछले 50 वर्षों के दौरान औसतन 89  सेंटीमीटर बारिश दर्ज की गई है।

 

अनाज व तिलहन उत्‍पादन को लग सकता है झटका 

मार्च-अप्रैल में हुई बेमौसम बारिश के बाद कमजोर मानसून की मार से देश के गेहूं, धान और सोयाबीन जैसे तिलहन उत्‍पादन को झटका लग सकता है। इसके अलावा गन्‍ने व कपास की खेती को भी नुकसान पहुंचने की आशंका है। हाल के वर्षों में हुए रिकॉर्ड कृषि उत्‍पादन के चलते सरकारी भंडार अनाज से भरे हैं लेकिन कमजोर मानसून किसान के साथ-साथ देश की अर्थव्‍यवस्‍था पर भारी पड़ सकता है।

 

देश की करीब 55-60 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है। देश के करीब 50 फीसदी कृषि उत्‍पादन में खरीफ की फसलों का योगदान है। किसान जागृति मंच के संयेाजन प्रो. सुधीर पंवार का कहना है कि देश की करीब 72 फीसदी खेती पूरी तरह मानसून पर निर्भर है, इसलिए मानसून का सही अनुमान और समय पर किसानों का मदद पहुंचाना बेहद जरूरी है। इस मामले में केंद्र व राज्‍य सरकारों को पुराने ढर्रें से हटकर प्रयास करने होंगे। 

 

राजनैतिक और आर्थिक मोर्चे पर बढ़ेगी मोदी की चुनौती 

भूमि अधिग्रहण और बर्बाद फसलों के मुआवजे में देरी के चलते मोदी सरकार पहले ही किसानों का गुस्‍सा झेल रही है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे विपक्ष दल किसानों के इस विरोध को भुनाने में जुट गए हैं। ऐसे में कमजोर मानसून किसान और अर्थव्‍यवस्‍था के साथ-साथ केंद्र सरकार की मुश्किलें भी बढ़ा सकता है। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्‍ता राकेश टिकैत कहते हैं कि यूपी जैसे राज्‍यों में भी किसानों खुदकुशी करने को मजबूर है, किसानों के प्रति सरकारी उपेक्षा का इससे बड़ा उदाहरण क्‍या हो सकता है। 

 

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