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असहिष्‍णुता के खिलाफ अब इतिहासकारों ने उठाई आवाज

देश में अत्यंत खराब माहौल से उत्पन्न चिंताओं पर कोई आश्वासनकारी बयान न देने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आज 50 से अधिक इतिहासकारों ने आवाज उठाई। दादरी और कलबुर्गी की हत्या जैसी घटनाओं पर लेखकों, कलाकारों, फिल्म निर्माताओं और वैज्ञानिकों के बाद अब देश के इतिहासकारों ने भी सरकार के खिलाफ आवाज उठाई ।
असहिष्‍णुता के खिलाफ अब इतिहासकारों ने उठाई आवाज

रोमिला थापर, इरफान हबीब, केएन पन्निकर और मृदुला मुखर्जी सहित 53 इतिहासकारों ने सहमत द्वारा जारी संयुक्त बयान में हालिया घटनाक्रमों पर गंभीर चिंता जताई। बयान में दादरी घटना और मुंबई में एक किताब के विमोचन कार्यक्रम को लेकर सुधींद्र कुलकर्णी पर स्याही फेंके जाने की घटना का जिक्र करते हुए कहा गया कि वैचारिक मतभेदों पर शारीरिक हिंसा का सहारा लिया जा रहा है। तर्कों का जवाब तर्क से नहीं दिया जा रहा, बल्कि गोलियों से दिया जा रहा है।

 

इसमें कहा गया, जब एक के बाद एक लेखक विरोध में अपने पुरस्कार लौटा रहे हैं, ऐसे में उन स्थितियों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं की जा रही जिनके चलते विरोध की नौबत आई, इसके स्थान पर मंत्री इसे पत्रा क्रांति कहते हैं और लेखकों को लिखना बंद करने की सलाह देते हैं। यह तो यह कहने के समान हो गया कि यदि बुद्धिजीवियों ने विरोध किया तो उन्हें चुप करा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह खासकर उन इतिहासकारों को चिंता में डाल रहा है जो साक्ष्य होने और अपनी व्याख्या पारदर्शी होने के बावजूद पहले ही अपनी किताबों पर प्रतिबंध और बयानों पर अंकुश के प्रयासों का सामना कर चुके हैं।

 

बयान में कहा गया कि शासन जो देखना चाहता है, वह कालक्रम, जांच के स्रोतों और विधियों की परवाह किए बिना एक तरह का नियम कानून वाला इतिहास, भूतकाल की गढ़ी गई छवि, इसके कुछ पहलुओं को गौरवान्वित करना और अन्य की निन्दा करने जैसा है। इतिहासकारों ने मुद्दे पर प्रधानमंत्री की चुप्पी पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, और जब यह उम्मीद की जाती है कि स्थितियों में सुधार के बारे में सरकार प्रमुख कोई बयान देंगे, वह केवल आम तौर पर गरीबी के बारे में बोलते हैं, और इस कारण राष्ट्र प्रमुख को एक बार नहीं, बल्कि दो बार आश्वासनकारी बयान देना पड़ता है।

 

बयान में ऐसा माहौल सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया जो स्वतंत्रा एवं निडर अभिव्यक्ति, समाज के सभी तबकों के लिए सुरक्षा और बहुलतावाद के मूल्यों एवं परंपराओं की रक्षा के लिए हितकर हो जो विगत में हमेशा भारत का एक गुण रहा है। बयान में कहा गया, उन्हें कुचलना आसान है लेकिन यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि एक बार नष्ट हो जाने पर इसका पुनर्निर्माण करने में लंबा वक्त लगेगा और यह वर्तमान प्रभारियों की क्षमता से बाहर होगा।

 

वहीं पद्म भूषण से सम्मानित वैग्यानिक पीएम भार्गव ने गुरुवार अपना पुरस्कार लौटाने की घोषणा की। पद्म पुरस्कार से सम्मानित अशोक सेन और पी बलराम ने भी पूर्व में राष्टपति से आग्रह किया था कि वह समुचित कार्रवाई करें। बढ़ती असहिष्णुता और इसके खिलाफ साहित्य अकादमी की चुप्पी के विरोध में नयनतारा सहगल, अशोक वाजपेयी, उदय प्रकाश और के. वीरभद्रप्पा जैसे अग्रणी नामों सहित कम से कम 36 लेखक अपने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा चुके हैं और पांच लेखक साहित्यिक इकाई के अपने आधिकारिक पदों से इस्तीफा दे चुके हैं। अकादमी को विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा था और आपातकालीन बैठक बुलाकर कन्नड़ लेखक एमएम कलबुर्गी तथा अन्य की हत्या के खिलाफ उसे कड़ा बयान जारी करना पड़ा था। उसने पुरस्कार वापस लौटाने वालों से पुरस्कार वापस लेने को कहा था।

 

वहीं कल एफटीआईआई छात्रों के प्रति एकजुटता व्यक्त करते हुए और देश में बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ 10 जाने माने फिल्मकारों ने अपने राष्ट्रीय पुरस्कार लौटा दिए थे। एफटीआईआई के छात्रों ने अपना विरोध जारी रखने का संकल्प लेते हुए अपनी 139 दिन पुरानी हड़ताल वापस लेने की घोषणा की थी। 

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