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योग दिवस: आेम नमो नरेंद्र

अब योग किसी एक संस्कृति या धर्म का नहीं रहा। यह क्रिसमस की तरह है, जो भी इसे मनाना चाहें उन सब का है। आधुनिक दौर में हमारे सुस्त और गतिहीन जीवन से उबरने का सबसे बेहतर तरीका।
योग दिवस: आेम नमो नरेंद्र

21 जून 2015 को सुबह 5 बजकर 24 मिनट पर सूर्य की पहली किरणें जब हमें अगले 13 घंटे 58 मिनट 4 सेकंड तक झुलसाने के लिए हमारी पवित्र सरजमीं पर पड़ेंगी तो वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन शासन के दूसरे साल का सबसे लंबा दिन होगा। संभवत: तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एकमात्र प्रत्यक्ष देवता का, जो कि हिंदू देवगणों में एकमात्र ऐसे देव हैं जिन्हें आप अपनी नंगी आंखों से देख सकते हैं, सूर्य नमस्कार से अभिवादन करने में हमारी प्राचीन सभ्यता का नेतृत्व करेंगे। सूर्य नमस्कार हृदयवाहिनियों का व्यायाम है जो कि योगासन शुरू करने के लिए शरीर को तैयार करता है। इस योग दिवस पर बाबा रामदेव को पीछे धकेलते हुए अब ओम नमो नरेंद्र हैं। जिस समय नमो शीर्षासन से बाहर आएंगे कल्पना कीजिए, हममें से कुछ राष्ट्र विरोधियों को छोड़ कर सब कितना गर्व महसूस करेंगे। व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम वगैहरा सब के सब विश्व को नीचे से ऊपर देखते नमो की तस्वीरों से अट जाएंगे। हमारी छाती योग श्‍वसन से फूलकर 56 इंच की हो जाएगी, विश्व पर फिर से यह धाक जमाने के लिए कि हम सनातन ही विश्व में प्रथम हैं, जिन्होंने सबसे पहले सिर का प्रत्यारोपण किया, पुष्पक विमान उड़ाया, सबसे पहले ब्रह्मास्त्र जैसे हथियारों का प्रयोग किया और विश्व को नीचे से देखने वाले भी सबसे पहले हम ही थे।

बीसवीं शताब्दी मध्य के सभी योग गुरु जिस स्रोत से प्रेरित हैं, अर्थात 'पतंजलि योगसूत्र' ही, अपने प्रणेता को लेकर अस्पष्ट है। पतंजलि के उपलब्‍ध विभिन्न संस्करणों या सूत्रों के कथ्य को लेकर एक राय नहीं है। उदाहरण के लिए 400 ई. के पतंजलि संस्कृत व्याकरण की नियमावली  'महाभाष्य' की बात करते हैं। वहीं 600 साल बाद राजा भोज के समय का पतंजलि संस्करण अष्टांग योग और कर्म योग का समर्थन करता है। संभवतः 11वीं शताब्दी के पतंजलि का संस्करण सबसे वृहद है। इसमें योग पर हुए पहले के सभी कार्यों को शामिल किया गया है। इसी तरह 400 ई. के पतंजलि संस्करण ने सिर्फ बौद्ध स्रोतों से उधार लिया होगा जो उस काल का सबसे उभरता हुआ धर्म था। एक दूसरे संस्करण में पतंजलि सूत्र मस्तिष्क को योग से और शरीर को दवाओं से नियंत्रित करता है। भगवद गीता में (जिसका अंतिम संस्करण 300 ई. पू. से 300 ई. के बीच का है ) कृष्ण योग के विषय में अर्जुन को बताते हुए इसकी व्याख्या ज्ञान, प्रेम, क्रिया आदि के जरिए होने वाले किसी प्रकार मेल के तौर पर करते हैं। क्योंकि ये सभी मुक्ति के माध्यम और प्रतीति के साधन दोनों हैं। हालांकि योग या युज शब्द, जिसका अर्थ जोड़ना होता है, गीता में कई बार प्रयुक्त हुआ है लेकिन एक बार भी कृष्ण ने अर्जुन को कोई आसन नहीं सिखाया है।

अष्टांग योग के भौतिक स्वरूप को मध्य काल के बाद देवी-देवताओं के मंदिर की वास्तुकला में पाया जा सकता है। योग की विभिन्न मुद्राएं शरीर की वास्‍तविक गतिविधियों का विस्तार हैं (जैसे योद्धा की मुद्रा यानि एक धनुर्धर को कैसे खड़ा होना चाहिए)। कुछ लोगों के अनुसार हठ योग के प्रवर्तक शिव थे। नटराज की मुद्रा (जिसकी पल्लवों ने 7-9 ई. में कल्पना की थी) अलौकिक नर्तक को इस पतित ब्रह्माण्ड का नाश करने के बाद सौंदर्य की एक अद्भुत योगमुद्रा में प्रस्तुत करती है ताकि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा फिर से सृजन शुरू करें।

योग के इतिहास को न खोदते हुए अगर हम सिर्फ कुछ पीढ़ी पहले जाएं तो हमारे दादा, परदादा पड़ोस के पार्क में लाफिंग क्लबों में नहीं जा रहे थे। उनके जीवन के अधिकतर तौर- तरीके यौगिक थे। उसके बावजूद कभी शोर नहीं हुआ। उदाहरण के लिए पैर पर पैर चढ़ा कर बैठने की अवस्था जो कि पद्मासन कहलाती है। सभी उसी तरह बैठते थे। फिर वज्रासन को लें, यानी उकडूं बैठना। हर भारतीय प्राकृतिक तौर पर यह करता है और इस अवस्था में शौच से लेकर रसोई तक अपने रोज़मर्रा के कई काम होते हैं। हमारे सभी संगीतज्ञ अर्द्ध पद्मासन या वज्रासन में बैठ कर प्रस्तुति देते हैं। पश्चिमोत्तनासन, झुक कर पांव के अंगूठे को छूने की प्रक्रिया जिससे घुटने के पीछे की नस खिंचे और आराम हो। भारतीय इसी अवस्था में रोज पैर धोने के अलावा भी कई काम करते हैं। और पीछे भी जा सकते हैं। जब भारतीय दंतकथाओं के अनुसार हिमालय की बर्फीली गुफाओं में योगी रहा करते थे और सुपरहीरो की तरह नक्षत्रीय योगाएं एवं करतब किया करते थे। 

19वीं सदी के अंत से पूरी 20वीं सदी के दौरान हिंदुत्व और जादुई भारत ने पश्चिम को ‘शहद पर मधुमक्खी’ की तरह आकर्षित करना शुरू किया। विवेकानंद से लेकर कई आध्यात्मिक गुरुओं ने काले पानी को पार कर हिंदुत्व का संदेश फैलाया। उसी तरह कई पश्चिमी विचारक और कलाकार भी अद्भुत भारत देखने आए। उनमें से लगभग सभी लोगों जैसे अलैन दैनिएलो (alain danielau), बीटल्स, स्टीव जॉब्स, यहूदी मेनूहीन की भेंट योग से हुई। तमाम तरह के गुरुओं से निराशाओं के बावजूद योग ने इन लोगों पर अपनी छाप छोड़ी। योग को पश्चिम में विशाल सफलता दिलाने वाले तीन महत्वपूर्ण गुरु हुए हैं, स्वामी शिवानंद (विश्व में आज भी शिवानंद शैली के योग के सबसे अधिक अनुयायी हैं ); बी.के.एस. आयंगर (योग की आयंगर शैली मुद्राओं में प्रवीणता पर बल देता है); और पट्टाभि जोइस। जोइस अमेरिका में सर्वाधिक लोकप्रिय योग शैली, हाइपर इंटेंसिव पावर योग के संस्थापक थे जो अष्टांग का एक अंग है।

वैसे शिवानंद स्वयं योग को लेकर बहुत उत्साही नहीं थे। अनुयायियों की अच्‍छी खासी तादाद के साथ ऋषिकेश में वह एक हिंदू आध्यात्मिक गुरु थे।  उनके प्रसिद्ध शिष्यों में अद्भुद योगासन करने वाले एक पूर्व फौजी विष्णुदेवानंद थे जिन्हें यह नाम शिवानंद ने ही दिया था। अपने चेले की रमणीय मुद्राओं को देखते हुए शिवानंद ने विष्णु से कहा, 'पश्चिम में जाओ, वे लोग योगासनों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।' शिवानंद के दूसरे शिष्य सत्यानंद ने 1964 में बिहार योग विद्यालय की स्थापना की। विष्णु और सत्या दोनों योग गुरु अपनी सरल योग मुद्राओं को पश्चिमी दुनिया में फैलाने में बेहद सफल हुए और अमेरिका सहित पूरे महाद्वीप में उन्‍होंने कई योग केंद्र खोले। इन दो गुरुओं ने योग की जो शैली सिखाई उसमें श्वास के व्यायाम यानी प्राणायाम और शरीर में लचीलेपन के लिए खासतौर पर रीढ़ की हड्डी पर केंद्रित कई आसन शामिल थे। (हठ योग के अनुसार आपकी रीढ़ की उम्र ही आपके शरीर की उम्र होती है।)

योगासनों से पश्चिम की जनता के जुड़ाव की एक प्रमुख वजह योग के साथ आने वाला पूर्व का विदेशीपन है। इसके अलावा भौतिक व्यायाम जैसे एरोबिक्स या वजन घटाने के अभ्‍यास के बनिस्बत योग किसी व्‍यक्ति की सांसों की लय पर निर्भर मंद गति के कारण मस्तिष्क को सुकून का एहसास कराता है। मौटे तौर पर पश्चिमी के लोगों का शरीर मौसम और जीवनशैली की वजह से पूर्व के लोगों की अपेक्षा ज्यादा सख्त हो जाता है। पश्चिम में योग की सफलता की यह वजह भी हो सकती है। इसके विपरीत पट्टाभि जोइस का योग अत्यंत सशक्त और फुर्तीला है। अस्सी के दशक में गठीले और अच्‍छे शरीर की इच्छा रखने वाले अमेरिकी युवाओं के बीच इसने खूब लोकप्रियता हासिल की। स्टिंग और मैडोना अष्टांग शैली के सर्वश्रेष्ठ विज्ञापन बने।

सभी योग गुरु साथ में हिंदु धर्म का उदार अंश परोसते रहे। योग के पैकेज में वेदों की प्रारंभिक शिक्षा, हिंदु पौराणिक कथाएं, कुछ हिंदु मंत्रों का जाप, शाकाहारी भोजन की पाक कला, हवन जैसे वैदिक अनुष्ठान और निश्चित योगासनों का संग्रह हो सकता है। धर्म का अंश केवल छात्रों का यौगिक जीवनशैली से परिचय कराने के लिए होता था। 60 के दशक से ही पश्चिम में योग की भारतीय कहानी में कई कांड भी शामिल रहे। सन 1968 के वसंत में महेश योगी के ऋषिकेश आश्रम में बीटल्स के चर्चित भ्रमण का अंत किसी हिंदु गुरु को डंसने वाले अब तक के सबसे बड़े स्कैंडल के रूप में हुआ। ब्रह्मचारी गुरु अभिनेत्री मिया फर्रो के सामने आत्‍मसंयम नहीं रख सके, और “एक कुत्ते की तरह उसके पीछे लग गए।" हालांकि बीटल्स ने आश्रम में एक माह से थोड़ा अधिक समय बिताया और हमेशा की तरह विरुचित होकर लौटे। उस अनुभव के बाद उन्‍होंने अक्रॉस द रिवर गाना लिखा जो हिंदु रहस्यवाद से बेहद प्रभावित था। ऋषिकेश फिर भी योग और आध्‍यात्‍म की तलाश में आने वाले विदेशियों के लिए बड़ा आकर्षण बना रहा। आध्‍यात्‍म और योग, दो समानार्थी शब्द साथ-साथ बराबर सम्मान और कलंक साझा कर रहे हैं। 

 

 

तीन बड़े योग गुरूओं का अनुसरण करने वाले योग गुरुओं में से कई विवादों में भी फंसते रहे हैं। योग की बढ़ती लोकप्रियता से प्रभावित होकर कई लोग इस धंधे में आ गए। योगासन आपके शरीर को मजबूत करने के लिए है ताकि आप शान्ति से बैठकर ब्रह्म का ध्यान कर सकें। लेकिन आज योग काफी प्रतिस्पर्धात्मक हो चुका है और पूरे विश्व में कई गुरु इसमें सेक्स भी घुसेड़ने लगे हैं। उदाहरण के लिए बिक्रम चौधरी (विवादों की फेहरिस्त में एक और नाम) के हॉट योगा (जो गर्म वाष्‍प कक्ष में किया जाता है) ने अमेरिका और योग के चर्चित केंद्रों में काफी लोकप्रियता हासिल की है। इसी तरह वायु योगा या एयर योगा हवाई जैसी जगहों पर काफी लोकप्रिय है (इसमें छत से एक चादर के अंदर लटकते हुए योग करते हैं)। ऐसे भी योग हैं जो पानी के अंदर गर्दन तक डूबकर किए जाते हैं और तमाम ऊटपटांग तरीकों से भी। आज योग पूरी दुनिया में इतना लोकप्रिय है कि इंटरनेट पर पॉर्न वेबसाइटों के बाद सबसे ज्‍यादा सामग्री इसी से संबंधित है।  

योग शिक्षा का लाइसेंस देने वाली अमेरिकी संस्‍था योगा अलायंस दुनिया भर में कई योग संस्‍थानों द्वारा कराए जा रहे 200 घंटे के टीचर्स ट्रेनिंग कोर्स को मान्यता देती है। आमतौर पर 30 दिन के इस पैकेज पर 2000 से 3000 डॉलर का खर्च आता है। (कोई भारतीय यदि भारत में यह कोर्स करता है तो करीब 28000 रुपये का खर्च आएगा।) इसलिए अगर आप अभी तक अपने योग गुरू से नहीं मिले हैं तो हो सकता है कि वह अब से एक महीने बाद एक सर्टिफाइड ट्रेनर के तौर पर आपके शरीर को ब्रह्म दर्शन हेतु तैयार करने के लिए प्रकट हो जाए। पश्चिम में योग इंडस्‍ट्री पर अब उन गोरे गुरुओं का कब्‍जा है जो मंहगे स्टूडियो चलाते हैं और जिनकी बड़े-बड़े शहरों में शाखाएं हैं। जॉन फ्रेंड जैसे कुछ पश्चिमी उस्‍तादों ने गुरुओं के हठ योग की कुछ मुद्राओं को पश्चिमी शरीरों के अनुरूप ढाल लिया है। महान गुरु कृष्णमाचारी की योग शैली 'विन्यास' (अष्टांग पर आधारित) को भी पश्चिम के कई योग शिक्षकों ने नया स्‍वरूप दिया है।  

भारत में योगासन हमारे जीवन में ठीक वैसे ही दोबारा दाखिल हुए जैसे आधुनिक गुरुओं ने 80 के दशक की शुरुआत में पश्चिम में इसे प्रचारित किया था। तीन महानुभावों ने मैसूर, नैय्यर डैम, उत्तरकाशी, पुणे और मुंगेर में योग केंद्र खोले। फिर भी योग को घर-घर लोकप्रिय करने में बाबा रामदेव का बड़ा योगदान है जिसमें उन्होंने टीवी का बखूबी इस्‍तेमाल किया। हालांकि यह बहस का मुद्दा है कि आज रामदेव जो दवाइयां और रोजमर्रा के उत्पाद  बेचते हैं उससे ज्‍यादा मुनाफा होता है या फिर योग से। बेशक उनके टीवी कार्यक्रमों ने योग को थोड़ा कम कुलीन बनाया और आम लोगों के अधिक करीब लाया है। (यह जानना दिलचस्‍प होगा कि हम में से कितने लोगों ने बाबा रामदेव से पहले कपालभाति का नाम सुना था)। इस शताब्दी की शुरुआत में एक अन्‍य स्‍वघोषित योग गुरु भरत ठाकुर ने भारतीय शहरों में फ्रेंचाइजी जैसे बिजनेस मॉडल की तर्ज पर योग की मार्केटिंग का प्रयास किया। इसे वह आर्टिस्टिक योगा कहते हैं। लेकिन अब यह एक सर्कस जैसा हो गया है। एक राष्ट्रीय पत्रिका के कवर पर ठाकुर की पदमासन की मुद्रा में एक तस्वीर छपी थी जिसमें एक महिला अपने नंगे पैरों को उनके गर्दन में  लपेटे हुए उनके कंधे पर ऐसे बैठी थी मानो वह भी पद्मासन कर रही हो। डबल डेकर योगा! 

प्राचीन भारत की संस्कृति से निकले योगासन पूरे विश्व का भ्रमण कर चुके हैं और 20वीं शताब्दी में ही समन्‍वयात्‍मक प्रकृति के हो गए थे। आज हम जिस तरह के योगासन कर रहे हैं, निश्चित ही उसकी जड़ें पुराने सिद्धांतों में हैं, मगर ये मुद्राएं बहुत से परिवर्तनों से होकर गुजरी हैं और इस दौरान दूसरी संस्कृतियों के विचारों और क्रियाओं को खुद में समेटती गईं। अब योग किसी एक संस्कृति या धर्म का नहीं रहा। यह क्रिसमस की तरह है, जो भी इसे मनाना चाहें उन सब का है। आधुनिक दौर में हमारे सुस्त और गतिहीन जीवन से उबरने का सबसे बेहतर तरीका। आसान और कम जोखिम वाली स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक प्रक्रिया। जी हां, यही है योग। 

 

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