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कोरोना का सांप्रदायिक रंग

एक तरफ जहां पूरे विश्व में कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की संख्या और इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा...
कोरोना का सांप्रदायिक रंग

एक तरफ जहां पूरे विश्व में कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की संख्या और इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है, वहीं भारत में इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है। संकट की इस घड़ी में लोगों को ऐसी बातों से बचना चाहिए और वास्तविक सूचनाओं पर तर्कसंगत तरीके से सोचना चाहिए।  दिल्ली के निजामुद्दीन में तबलीगी जमात के कार्य को किसी भी तरीके से उचित नहीं ठहराया जा सकता। जमात के आयोजकों के साथ-साथ सरकार ने अगर समय रहते कार्रवाई की होती तो भारत में कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की संख्या इतनी तेजी से नहीं बढ़ती। पुलिस ने इस मामले में एफआईआर दर्ज की है और उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्दी ही यह बात सामने आ जाएगी कि चूक कहां-कहां और किन-किन लोगों से हुई।

तेलंगाना सरकार ने इसी हफ्ते सोमवार को केंद्र सरकार को सूचित किया की कोरोनावायरस से संक्रमित 5 लोगों की मौत हुई है, और यह सब दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित मरकज बंगलेवाली मस्जिद में तबलीगी जमात में शामिल हुए थे। उसके बाद तो मीडिया और समाज के एक वर्ग को कोरोना में भी सांप्रदायिक रंग मिल गया। मीडिया में यहां तक कहा जा रहा है कि तबलीगी जमात ने जानबूझकर साजिश के तहत यह सब किया। कोरोनाजिहाद, तबलीगीवायरस और कोविड-786 जैसे हैशटैग ट्विटर पर ट्रेंड करने लगे। चीन को कोरोनावायरस का प्रोड्यूसर और मुसलमानों को डिस्ट्रीब्यूटर कहा जाने लगा। सत्तारूढ़ बीजेपी के नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने तो इसे तालिबानी अपराध करार दे दिया। इसलिए तीन दिन पहले जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्विटर पर लिखा था कि अब हर जगह मुसलमानों को दोषी ठहराया जाएगा, जैसे हमने ही कोविड-19 को पैदा किया और पूरी दुनिया में फैलाया।

दिल्ली पुलिस ने बीते 5 दिनों में निजामुद्दीन की मस्जिद से 2361 लोगों को निकाला है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देशभर में जितने लोग अभी तक कोरोनावायरस से संक्रमित पाए गए हैं उनमें 20 फ़ीसदी जमात में शामिल होने वाले या उनके संपर्क में आने वाले लोग हैं। अभी तक तकरीबन 1,800 लोग क्वॉरेंटाइन में रखे गए हैं और 334अस्पताल में भर्ती हैं। जमात से लौटे ज्यादातर लोग तमिलनाडु,तेलंगाना, केरल, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में हैं। दिल्ली पुलिस ने मस्जिद के मौलाना साद समेत कई लोगों के खिलाफ एफआइआर भी दर्ज की है।

मेनस्ट्रीम मीडिया के कुछ अखबारों, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर नजर डालने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे तबलीगी जमात ही भारत में कोरोनावायरस के फैलने का एकमात्र कारण है। यहां कुछ जरूरी तथ्यों पर गौर करने की जरूरत है। भारत में कोरोनावायरस का पहला मामला 30 जनवरी को सामने आया था। इसके बावजूद करीब डेढ़ महीने तक पूरे देश में सब कुछ सामान्य चलता रहा। जब चीन और दूसरे देशों में संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही थी तब भारत में अंतरराष्ट्रीय उड़ानें सामान्य रूप से आ रही थीं। एयरपोर्ट पर स्क्रीनिंग की बात हुई लेकिन ऐसी अनेक खबरें भी आईं की एयरपोर्ट से निकलने के बाद लोगों में संक्रमण पाया गया। कैबिनेट सचिव ने खुद बयान दिया कि विदेश से आने वाले 15 लाख लोग बिना जांच के चले गए।

यह सही है कि जब पूरी दुनिया में कोरोनावायरस से संक्रमण के मामले बढ़ रहे थे तो तबलीगी जमात के आयोजकों को यह आयोजन रद्द कर देना चाहिए था, क्योंकि इसमें सऊदी अरब, मलेशिया, इंडोनेशिया जैसे देशों के लोग भी शरीक हो रहे थे। लेकिन सवाल है कि जब सरकार ने जनवरी से विदेश से आने वाले सभी लोगों की स्क्रीनिंग के आदेश दिए थे तो मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों से आने वाले कैसे प्रवेश कर गए,क्योंकि तब तक इन देशों में संक्रमण का पता चल चुका था। एक और गौर करने वाली बात यह है कि तबलीगी जमात में शामिल होने के लिए ज्यादातर लोग 11 से 13 मार्च के दौरान आए। तब तक सरकार ने कोरोनावायरस को हेल्थ इमरजेंसी घोषित नहीं किया था। यही नहीं 13मार्च के बाद भी करीब एक हफ्ते तक भारत के ज्यादातर प्रमुख धर्मस्थल खुले थे और रोजाना वहां हजारों लोग पूजा पाठ के लिए आ रहे थे। मसलन मुंबई का सिद्धिविनायक मंदिर और उज्जैन का महाकाल मंदिर 16 मार्च तक, शिर्डी का साईं मंदिर और  शिंगणापुर का शनि मंदिर 17 मार्च तक खुले थे। 18 मार्च तक वैष्णो देवीमंदिर में भक्त नियमित रूप से दर्शन के लिए पहुंच रहे थे और 20 मार्च तक काशी विश्वनाथ मंदिर में भी सामान्य तरीके से पूजा हो रही थी। प्रधानमंत्री ने पहली बार 19मार्च को देशवासियों से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने को कहा, इसके बावजूद संसद 23मार्च तक चालू थी।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने 13 मार्च को कहा था कि कोरोनावायरस हेल्थ इमरजेंसी नहीं है। तब इस बात के लिए उसकी आलोचना भी हुई थी कि जब यह संक्रमण दूसरे देशों में तेजी से फैल रहा है तो अब भी इससे इमरजेंसी क्यों नहीं बताया जा रहा। उसी तारीख को दिल्ली सरकार ने आदेश दिया कि राजधानी में कहीं भी 200 से ज्यादा लोग एकत्र नहीं हो सकेंगे। लेकिन 13 मार्च तक तबलीगी जमात में शामिल होने वाले पहुंच चुके थे। यहां आयोजकों की गलती कही जा सकती है कि उन्होंने अति सक्रियता दिखाते हुए जमात में शामिल होने वालों को तत्काल वापस नहीं भेजा। बाद में पहले जनता कर्फ्यू लगा,फिर दिल्ली सरकार की तरफ से लोगों की आवाजाही पर रोक लगी और फिर लॉकडाउन घोषित कर दिया गया। कुछ ऐसा ही मामला दिल्ली के मजनूं का टीला में देखने को मिला जहां 200से ज्यादा लोग गुरुद्वारे में फंस गए थे। मरकज का दावा है कि मस्जिद से लोगों को निकालने के लिए उन्होंने विशेष अनुमति मांगी थी, कर्फ्यू पास के लिए आवेदन भी किया था लेकिन उन्हें यह नहीं मिला। ऐसे समय जब कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए चिकित्सा कर्मी अपने जान की बाजी लगा रहे हैं, देश के ज्यादातर नागरिक लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं,तब इस लड़ाई को भी सांप्रदायिक रंग देना शर्मशाक है, वरना क्या कारण है कि रामनवमी के दिन पश्चिम बंगाल और दक्षिण के राज्यों में पूजा के लिए भीड़ जुटी और उसके नाम पर कोई हैशटैग ट्रेंड नहीं हुआ।

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