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पूर्व चीफ जस्टिस बालाकृष्णन बोले, एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला गलत

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन में एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के विवादित फैसले को...
पूर्व चीफ जस्टिस बालाकृष्णन बोले, एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला गलत

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन में एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के विवादित फैसले को मूल रूप से गलत बताया है। उन्होंने कहा कि इस तरह के फैसले अपराधियों को कानून के शिकंजे से दूर जाने में सक्षम बनाएंगे। देश के पहले दलित मुख्य न्यायाधीश (14 जनवरी 2007 से 12 मई 2010 तक) रहे जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने हिंसा को उसकाया।

उन्होंने कहा कि यह संभवतः पहला मौका है जब सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले ने लोगों को हिंसा के लिए उसकाया है। आमतौर पर, अगर कहीं हिंसा होती है तो उसमें सुप्रीम कोर्ट दखल देता है और लोग फैसले को मान लेते हैं। जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा कि आज स्थिति यह हो गई है कि लोग धरती के सबसे बड़े कोर्ट के फैसले को मानने की स्थिति में नहीं हैं। यह कुछ अजीब तरह का है। इसे हमें समझना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट को ऐसे फैसले करने चाहिए जो बड़ी संख्या में लोगों को मंजूर हों। यह हिंसा फैलाने वाला नहीं होना चाहिए।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश नई दिल्ली में साउथ एशियन माइनॉरिटी लॉयर्स एसोसिएशन और अंबेडकर एजुकेशनल कल्चरल सोसाइटी द्वारा ‘सुप्रीम कोर्ट जजमेट ऑऩ एससी/एसटी काउसेज, इफेक्ट एंड सॉल्यूशन’ विषय पर आयोजित सेमिनार में विचार व्यक्त कर रहे थे।

उन्होंन सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि गिरफ्तारी के लिए कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए पहले से ही दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में प्रावधान हैं। पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि अगर संज्ञेय अपराध करने वाले किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी होनी है तो पुलिस अधिकारी को इस बात के लिए संतुष्ट पड़ता है कि आरोपी ने संज्ञेय अपराध किया है और सीआरपीसी में संशोधन के अनुसार उसे इसे रिकॉर्ड करना होता है। इस तरह से दुरुपयोग रोकने के कई प्रावधान हैं।

इस तरह के मामलों में किसी सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अधिकारी से अनुमति लेने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उदाहरण देते हुए जस्टिस बालाकृष्णन ने कहा कि ऐसा करना व्यवहारिक नहीं है और इससे आरोपी आसानी से बच निकलेगा।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च के अपने एक आदेश में एसएसी/एसटी एक्ट के सख्त प्रावधानों को हल्का कर दिया था। इसके बाद दो अप्रैल को दलित संगठनों ने भारत बंद की अपील की थी। इस दिन दस से अधिक लोग हिंसा में मारे गए थे।

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